इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शनिवार, 29 जून 2013

फूटहा छानी



- सुरेश सर्वेद  -

गाँव भर चरचा चले लगिस। अब पंचाइती चुनाव म सरपंच महिला ल चुने जाही। कोन अपन माई लोगन ल चुनाव म उतारही। दिन - रात इही बात होय लगिस। कम पढ़े लिखे गाँव म जइसे माईलोगन ल चूल्हा फुंकइया अउ बंस बढ़हइया के संग कोरा म लइका खेलइया समझे जाथे ये गाँव उही श्रेणी म आये। गाँव म बइसका होय अउ कोन चुनाव लड़ही ये गोठ आये अउ जाये पर निरनय नई होय पाय। काबर के कोनो मरद बइठका म अपन घरवाली ल चुनाव म खड़े करे के बात नई करय। खिलावन बिन बलाय बइठका म आवय अउ मने मन कामना करय के ये ओ बेरा कभू झन आवय जब कोनो गाँव के मरद उठके कहे कि ओकर माईलोगन चुनाव लड़ही ? ओकर मंशा अपन माईलोगन ल चुनाव लड़वाय के रिहीस। पर बइठका म ऐकर सेती फुरिया नइ सके के ओला गाँव आये अभी जुम्मा - जुम्मा एक बरिस होय होही। दुसंधा म रहय कि गाँव वाले मन ओकर बात ल मानिस के नई मानिस। इही उधेड़बुन म ओहर अपन बात नई रख पात रिहीस। ओहर चाहत रिहीस के गाँव वाले मन सवांगे ओला कहाय। पर गाँव वाले मन के कहना तो दूरिहा के ओकर डहर हिरक के नई देखय। देखतिन भी काबर, ओहर बाहिर ले आये हे अउ गाँव के जिम्मेदारी ओला सउंपे के कइसे विचार गाँव वाले मन करतीन। पुराना सरपंच घलोक सुधवा। अपन सियानी के दिन म कभू दू पइसा के गबन नई करिस। गाँव के बिकास म जतका हो सकीस करे के परयास करिस। एक दिन के बइठका म ओकर माईलोगन के सरपंची चुनाव म खड़ा कराय के बात अइस त पुराना सरपंच कहे लगिस - मोर बाई कम पढ़े लिखे हे। पंचायत म लाखों रुपिया के काम आथे। मंय तो जइसे तइसे चला लेत रहेंव पर बाई कर पाही ऐमा मोला संदेह हे। अउ फेर आजकाल जनपद के बाबू भइया मन खांव - खांव करथे। एक एक काम म कमीशन मांगथे। मंय तो लड़ झगर लेत रहेंव पर डौकी परानी का करही ?
पुराना सरपंच के बात ल गाँव वाले मन सुनके कहिन - तोर बाई नाव के सरपंच रही, काम बूता तंय करबे।
गाँव वाले मन के सलाह घला पुराना सरपंच ल नइ जमिस। पढ़े - लिखे सरपंच के बात आते ही खिलावन के मुंह म पानी आय लगिस। ओहर मने मन बिचारे लगिस के गाँव वाले मन जानतेच हे के ओकर बाई पढ़े - लिखे हे। ओ चाहे लगिस कि कोनो उठे अउ ओकर बाई के नाव धर दे, पर ओकर डहर ले गाँव बेखबर रिहीस।
अब तो दिन अउ रात कोनो बेरा अइसन नई रिहीस जब माईलोगन के ये चुनाव म सरपंची चुनई के बात नई चलत रिहीस होही। जहाँ दू झन आदमी सकलाय बस एके च चरचा - कोन अपन माईलोगन ल चुनाव म खड़ा कराही ?
पीपर के पेड़ तरी बने चउंरा म बइठे हिरामन गोठयाय अउ बीच - बीच म सुकदेव हुंकारु भरय। अब गाँव डउकी सियानी म चलही। सरकार ल घला पता नई का - का होवत रहिथे। कते - कते मेर ले नियम कानून लाथे अउ सउप देथे, हमला भोगे बर। जब डउकी परानी गाँव के सियानी करही त घर के चउका - चूल्हा कोन देखही। कोठा के गोबर कोन हेरही। गोबर के छेना कोन थोपही ?
- आज समय बदल गे हे हिरामन। कब तक माइलोगन मन घर बइठे रहही ? सरकार जउन करथे, सोच - समझ के करथे जी।
- तोर बात ल मंय मानत हंव पर जब माइलोगन गाँव के सियानी करही, तब घर परिवार कते डहर जाही ?
- तोरेच बात ल मंय करथो। तँय का करथस घर म। भउजी तोर संग खेत म जाथे। लइका बच्चा ल तियार करके पढ़े खातिर भेजथे अउ तो अउ तोला दोहदोहों ले खवाथे घलो। अउ तंय ये काबर बिसरत हस- शहर के माइलोगन मन नउकरी - चाकरी करथे। अपन परिवार ल घला सकेलथे।
- तंय सिरतोन कहत हस संगवारी, मोर मति मारे गे रिहीस ...।
हिरामन अउ सुकदेव के जोड़ी ल का कहिबे - नानपन म दूनों जउन संगवारीी बनीन ओला अब तक निबाहत हे। दूनों के जोड़ी ल टोरे के जलनखोर मन कई उपाय गढ़हीन। परपंच रचिन पर उंकर जोड़ी नई टुटिस। अब तो उमर साठ ले पार कर ले हे अउ नानपन ले एको दिन अइसन नइ गिस होही जब दूनों संगी अलग होय  होही। कोनो गाँव जाना रहय त दूनों संगे जाय। चाहे सुकदेव के सगा घर बर बिहाव, मरनी- हरनी के काम कारज राहय या फेर हिरामन के सगा घर। जवानी के दिन म जतका उतलंई ओमन करिन होही ओतका कोनो अउ करे होही अइसन सुने ल गाँव म नई मिलिस। चाहे तरिया म डूबक - डूबक के नाहय के होय या फेर भैरी के बखरी ले बिही - खिरा चोराय के होय।
अभी उंकर मन के बातचीत चलत रहिस के सायकल म नरोत्तम आवत दिखिस। नरोत्तम सुकलिया के गोसइया ये। नरोत्तम चार कक्षा पढ़े के बाद पढ़ई ल छोड़ नांगर - बख्खर के काम काज म जोतागे। ओकर बाई सुकलिया दसवीं कक्षा पढ़े रहय पर कभू अइसन नई लगिस के सुकलिया ल अपन पढ़े - लिखे के गरब गुमान होही। बड़े ल बड़े अउ छोटे ल छोटे माने म कभू अनाकानी नई करिस। अइसन बेरा घला कभू नई आइस जब ओकर संग कोनों माईलोगन के लड़ई - झगरा होय होही। दसवीं पढ़े के बाद भी ओहर गाँव के रंग म रच बसगे ... नरोत्तम हिरामन मन कर अइस। सायकल म चढ़े - चढ़े कहिस - का गुनतारा चलत हे दूनों संगवारी म ?
- अरे नरोत्तम तंय कहाँ ले आवत हस बाबू। आ, बइठ। हिरामन कहिस।
- नहीं बबा, मोला बड़ बेर होगे घर ले निकले। गाय - गरु ल पेरा भूंसा दे के बेरा हो गे, फेर कभू बइठबो।
- हव रे भई, हमन तो होगेन ठेलहा, तंय कमइया। काबर समे खराब करबे हमर मन तीर।
- अइसन बात नोहे बबा।
- त अउ कइसन बात ये ? हिरामन तिखारिस।
- तहूं अतका ल नई जानस हिरामन। बड़ बेर होगे घर ले निकले बिचारा ल। काम - धाम नइ करही त बहू ठठाही नहीं ? अउ दूनों संगी खलखला के हंसे लगिन। नरोत्तम तहूं न बबा कहत सायकल के पाइडिल ल ओंट आगू डहर बढ़गे
हिरामन अउ सुकदेव के बात फेर चले लगिस।
दिन सरकते गिस अउ चुनाव बर परचा भरे के दिन लकठियाते गिस। गाँव म बइठका होइस। कोनो अपन माईलोगन ल चुनाव म उतारे  बर तियार नई होइस। खिलावन समे के ताक म रहिस। कोतवाल समे कथे - हमर मेर जादा समे नई हे। कोनो न कोनो ल परचा भरवाये के निरनय ले ल परही। नई ते हमर गाँव म सरपंच चुनई म देरी के साथ बिकास काम म घलो देरी होही।
कोतवाल के बात सिरतोन रिहीस। बिन सियान के भला गाँव के समस्या सरकार तक कइसे पहुंचतिस अउ कइसे समस्या के निदान होतिस। पर इहां तो बिकट समस्या उपस्थित रहिस। कोनो ये कहे बर तियार नई रिहीस के मोर बाई हर चुनाव म उतरही। अभी गाँव म बइठका चलते रहिस के गाँव के समारु अउ जीवन अइन। ये दूनों के दिन कटे खिलावन के घर। इंकर माईलोगन मन पर के खेती म बनी भूती करे अउ बाल बच्चा के साथ अपन गोसइयां के पेट घलोक पोसे। एक - एक चेपटी म अतका ताकत रिहीस के दूनों के दूनों खिलावन के परम भक्त बनगे रिहीन। खिलावन इही दूनों ल अपन पक्ष म बोले बर तियार करे रिहीस। अउ आज बइठका म आ के ये दूनों अपन बात ल बकर डरिन। कहिन - हमर गाँव म कोनो तियार नई होवत हे, अपन बाई ल सरपंची चुनाव म उतारे बर ता काबर खिलावन के माइलोगन ल नई उतार देव चुनाव म ... ?
गाँव भर के जुरायाये लोगन ल समझ आत देरी नई लगिस के ये खिलावन के दारु बोलत हे। हिरामन तिलमिलागे। कहिस - खिलावन ल अभी जुम्मा - जुम्मा चार महीना होय हवे गाँव म बसे अउ तुमन एकर माइलोगन ल गाँव के सियानी सौंपे के गोठ गोठियाथो। ये गोठियाये के पहिली सोचो समझो काबर नई ?
- तोर कहिना ठीक हे बबा, पर तहीं बता जब कोनों गाँव के माईलोगन तियार नई हे चुनाव लड़े बर तब अउ हमर मेर रद्दा हे तेला तहीं फुरिया। कोन अपन माईलोगन ल चुनाव म उतारे बर तियार हे ?
हिरामन चुप होगे। नाव ले त ले आखिर काकर। कोनो तो मुँह फुटकार के कहत नई हे के मोर माईलोगन चुनाव म उतरही। गाँव के सियानी करही। हिरामन कहिस - पराया ल सियानी सौपे के बजाय हम चाहत हन हमरे सियानी करे।
- पर कोन हे तेन ल तो बता बबा ?
- तुमन पर ल गाँव के सियानी सौपे के जघा म अपन माईलोगन ल सियानी सौपे के काबर नई सोंचव ?
- पर हमर बाई तो पढ़े - लिखे नइ हे, ये सरपंची बिना पढ़े - लिखे करही ता गाँव के का होही, तहड्डूं जानथस अउ महूं।
बात सिरतोन रिहीस। जउन जतका जादा पढ़े लिखे रहिथे। ओहर ओतकेच अच्छा अधिकारी मन संग बात करे ल जानथे अउ गाँव के समस्या ल रख के ओकर निदान के उपाय सुझाथे। पर इहां दूनों दरुवाहा के माईलोगन मन तो एक कक्षा नई पढ़े रिहीन। इंकरो मुड़ म गाँव के सियानी देना मने अपन गाँव के बिकास ल रोकना ये। दूनों दरुवाहा के बात ल सुनके खिलावन मंद - मंद मुसकाये लगिस पर हिरामन के अड़ंगा म ओला गुस्सा घलोक आये लगिस। पर करतीस ता करतीस का। एक डहर पूरागाँव रिहीस एक डहर खिलावन अउ ओकर दू पोसवा दरुवाहा। तीन झन से काम बनने वाला नई रिहीस। खिलावन तो चहत रिहीस - कम से कम आधा गाँव ओकर पक्ष म आये फेर आधा ल बात मानेच ल परही पर इहां आधा गाँव तो दूरिहा के रिहीस। दू के सिवा तीसरा ओकर पक्ष म नई रहिस।
वइसे जब ले पर्चा भरे अउ चुनाव होय के चर्चा गाँव म होय लगिस तब ले खिलावन सक्रिय होगे रहिस अउ गाँव के अइसन कोनो मनखे नई होही जउन ल अपन जाल म फांसे के परयास नई करे होही। गाँव वाले मन ओकर दारु तो पी गे पर ये दूनों दरुवाहा के बाद तीसरा कोनो ओकर जाल म नई फसीन। गाँव म जतका बेर बइठका होइस, कोनो ओकर पक्ष नई लिन। अब निरनय के घड़ी तिरयागे रिहीस। अपन बात ल अपन मुंह न रख के दूनों दरुवाहा के द्वारा रखना उचित समझ ओहर तीन दिन ले ओमन ल अतका पीयात हे के गाँव में बिरोध के बावजूद ओमन अपनेच बात म अड़े रहय संगे संग गाँव वाले मन ल भी अपन बात माने बर तियार कर ले। खिलावन जतका आसान बात बने के सोचत रहिस ओतका आसान नई होत रहिस। घुम फिर के बात घेरीबेरी अपनेच गाँव के माईलोगन ल चुनाव म उतारे के आ जाय।
अभी गुनताड़ा चलत रिहीस। उही बेरा नरोत्तम अइस। नरोत्तम ल देखके हिरामन के आँखी चमकगे। नरोत्तम ल अपन तीर म बलइस। कहिस - नरोत्तम, तोर माईलोगन पढ़े - लिखे हे। तंय अपन माईलोगन ल सरपंच चुनाव के फारम भरवा दे।
- मंय गरीब आदमी बबा। दूनों परानी मेहनत - मजदूरी करके घर - परिवार ल चलाथन। फेर गाँव के सियानी कइसे अपन मुड़ म लेबो। घर के छानी फूटहा हे। पानी टपकथे। अपनेच छानी ल टपराये के मोर ताकत नई हे तब कइसे गाँव भर के छानी ल टपरा सकत हंव।
- तोला अपन फूटहा छानी के चिंता हे ? इहां गाँव भर के साबुत छानी घलोक निथरे लागही, ऐकर चिंता - फिकर नई हे ?
- अइसे कइसे होही बबा, भला साबुत छानी कइसे निथरे लगही ?
समारु गुमशुम बइठे कुछ सोचे लगिस। ओकर दारु के निशा उतरे लगिस। फेर डगमगावत उठीस अउ कहे लगीस - हिरामन बबा सिरतोन कहत हे नरोत्तम ...।
समारु के बात ल सुनके खिलावन के संगे संग गाँव वाले मन घलो अकबकागे। समारु अपन कहना जारी रखिस - तोर घर के छानी ले पानी टपकथे ता का होगे। गाँव घर के सरपंच बनही त छानी छवा जाही अउ पानी के टपकना घला रुक जाही पर पराया के हाथ सियानी जाय म साबुत छानी ले पानी टपकना शुरु हो जाही ... समारु जीवन ल देखके कहिस - कइसे जीवन,का मंय गलत कहत हंव।
- बिलकुल गलत नई कहत हस संगवारी ...। जीवन हर समारु के साथ देय लगीस। उंकर बात ल सुनके खिलावन के गुस्सा भड़के लगीस पर करे त करे का ? गाँव के जुरयाये लोगन के बीच फुटकार के ये थोरे कहय कि मंय तुम्मन ल तीन दिन ले दारु अइसने कहे बर पीयाय हंव रे ? ओकरे फजीहज होतिस। मन मारके बइठे रहिस ...।
गाँव के सियानी, गाँव च के हा करही तभे गाँव म बिकास होही। दारु पीयाके जउन सियानी चाही, वो अपन बिकास ल सोचही ... कइसे समारु ? जीवन किहीस।
- सिरतोन कहत हस संगवारी ...। समारु हुंकारु भरिस।
खिलावन दू ठन आदमी पोसे रहिस, उही मन ओकर बिरोध म होगे। अब खिलावन ल लगे लगिस - ओकर पोलपट्टी खुले के बेरा आगे। ओहर बइठा ले सलटे के जुगत म रहीस। समारु ओकर कर अइस। कहिस - कइसे खिलावन, तंय हमर बिचार ले सहमत हस नहीं ?
खिलावन का कहे। चुप रिहीस। जीवन किहिस - अरे समारु, खिलावन का कहही। ये हमर गाँव के मामला ये। ये माटी म जनमे, ये माटी म खेले कूदे हन। नानपन ले हमर तन अउ मन म ये माटी समाय हे। पराय ल पूछे के काबर ? निरनय हम्मन ल लेना हे। नरोत्तम घर के भउजी सरपंच बनही, मतलब उहिच बनही ...।
- कइसे नरोत्तम, अब तोला का कहिना हे ? हिरामन पूछिस।
- अब मंय का कहवं बबा, गाँव वाले मन जउन चाहही उही होही।
नरोत्तम के कथन म स्वीकृति रहिस। पहली थपड़ी जीवन पीटिस अउ फेर बइठका भर थपड़ी के आवाज म गूंजे लगिस। थपड़ी के आवाज खिलावन के कान के परदा चीरे लगीस। ओहर बइठका ठउर ले उठके अपन घर डहर चल परिस, पर थपड़ी के गूँज ओकर कान के संग नई छोड़िस ....।
  • पता - शास्त्री चौक, वार्ड नं. - 16, तुलसीपुर, राजनांदगांव [छ.ग.]

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