इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शनिवार, 29 जून 2013

बड़की भौजी




- हरप्रसाद ' निडर '  -

ओ समें के गोठ ए, बरिस ओन्नाइस सौ तीन कोरी आगर तेरा चौदा के। दर्री बांध ले नहर खिसोरा गाँव के पहिरीपारा के बूढ़ती कोती खनावत रहिस। ओई समे हरखू ह मिडिल स्कूल म पढ़त रहिस। हरखू पढ़े ल तो रोज जाय फेर खनाय नहर के खँचवा अऊ माटी पटान हाथी डिपरा पार ल चढ़े उतरे ल परय, एकरे सेती ओकर माड़ी कोहनी ह धर देय, पहिलीच ले तो बतहा रहबे करय। स्कूल ले छुट्टी होवय त रोवत कलहरत माड़ी ल धरे - धरे उठत - बइठत घर जाय अऊ बस्ता ल खूँटी म ओरमा के लझरंग ले खटिया म बईठय अऊ किल्ली पार के पीरा म रोवय। रोवई गवई ल सुनके ओकर बड़की भौजी ह बूता काम ल छोड़ के दउड़त आवय अऊ चुप करावय, पहिली तो भुलवार के भात खवावय फेर डोरी तेल चुपर के गोड़ हाथ ल चपके करय। थोरकन पीरा ह ओरवस होवय तहाँ हरखू खोल कती खेले - बुले ल चल देवय। अइसने ओकर दिन पहावत रहिस।
अवइया बछर कक्षा आठमी के बोड परीक्षा होवइया रहिस तेकरे सेती स्कूल के लघे म कंजी घर म सटे एक ठन कुरमी गौटिया के बड़का परछी रहिच, ओईला एक महीना के पाँच रुपिया किराया म आठ झन टूरा मिलके लीन, उंकरे संग म हरखू घलो ह अपन गाँव ले सवा कोस भूइयाँ रोज रेंगे ल बाचे बर संगी मन संग हो के रहे लागीच। बालभारती के परीक्षा हो गये रहिस। दूसर दिन अंगरेजी के पेपर होना रहिस, ओई रात के हरखू ह जेवन खाके स्कूल के आघू अमरईया कती बनिअई अऊ पटकू पहिर के बूले ल निकलथे, देखथे के एक ठन टरक आमा रुख के खाल्हे नठाय खड़े हे अऊ ओकर खलासी ह भीतरी म खूसर के नट बूलूट ल कसत हावय। हरखू घलो ह टरक के भीतरी  पीछू कती ले कोंघरे - कोंघरे खूसर जाथे अऊ उखरु बइठ के देखे लागथे। उखरु बइठे - बइठे हरखू ल असकट लाग जाथे त चूतर के भार पालथी मोर के बइठ जाथे, ओई बखत सूक्खा झरे आमा पतई के भीतरी म खूसरे भूरी बिछी ह अरई कोचके सही चूतर ल कोचक देथे, तहाँ ले लहू बोहाये लागथे, कइसनो करके टरक ले बाहिर निकल जाथे अऊ पोठ किल्ली पार के रोय लागथे। रोवई गवई ल सुनके टरक के खलासी कथे - का होगे रे टूरा। हरखू कथे - खलासी भइया, मोर चूतर म सजवा अंगरा खूसेरे सही अड़बड़ भरभरावत हे ग।
खलासी कथे - पटकू ल छोर तो ... फेर अपने ह पटकू ल छोर के झर्राथे, फटकारथे। पटकू ल कछू नई गिरय फेर अंजोर म पटकू ल बने निटोर के देखथे, भूरी बिछी अरझे रथे। बिछी के नाव ल सुनके हरखू काँख - काँख के कलहरे लागथे अऊ चिचियाथे  मोला बिछी मार दीस कही के। किल्ली ल सुनके आजू - बाजू के रहइया मनखे मन जूरिया जाथें, एक चीटी  के भीतर हरखू के संगवारी घलो मन का हो गे कहत आ जाथें। हरखू कथे - संगी मन मोला मोर घर अमरा देवा घर जाहूं। संगी मन तियार हो जाथें। दू झन हरखू के चेचा ल धरके नहर पार ले चढ़ाथे अऊ एकक झन ओसरी पारी पीठ म खंघोड़ी पाके राते रात मशाल के अंजोर म घर अमरा देथें।
घर म हरखू के दाई ददा अऊ भइया मन का हो गे कहिके हकमका के अबक हो जाथें। लकठा पारा के मनखे घलो मन का होगे सुनके जूर जाथें। संगवारी मन बताथें हरखू के चूतर ल बिछी मार दे हे कहिके, थिराय लागथें, फेर उलट पाँव हो जाथें। एती हरखू के ददा हा गाँव के बैद बड़का बूढ़वा ल बलाये ल पारा के एक झन टूरा ल पठोथे। चिहुर ल सुनके हरखू के बड़की भौजी नींद ले झकना के जाग जाथे अऊ अपन खोलिया ले आँखी रमजत आ के देखथे। देखके समझत बेर नई लागै। रोनहू - रोनहू धमरस - धमरस रेंगत अपन खोलिया के पठेरा ले नरियर के तेल ला के अपन देवर हरखू के हाथ पांव म मले - मले करथे अऊ माथा ल ठोके - ठोके करथे। थोरकन बिलम के बड़का बूढ़वा ओखद ले के आ जाथे अऊ झार फूंक के ओखद खवा जाथे। अधरथिहा हरखू के बिथा ह हलू - हलू ओरवस होथे अऊ माई पिला सूत जाथें।
हरखू ठढ़ियाये बेरा झकना के जागथे अऊ अपन ददा ल कथे - ददा ग आज मोर अंगरेजी के परीक्षा हे। हरखू के ददा अकबका के कथे - पहिली काबर नई बताये रे, बेरा ठड़िया गे हे। परीक्षा चालू हो गे होही कहत अपन मंझिला टूरा ल सईकिल म अमराये ल जोंगथे। हरखू लकर - लकर सान्द खोर के तियार हो जाथे। फेर दूनो झन सईकिल म खिसोरा चल देथें। रद्दा म सईकिल के चेन गिरई के दुख ल भोगत परीक्षा खोलिया म हबर के खुसरत रथे तभे बड़े गुरुजी ह कथे - अभी कइसे आवत हस जी हरखू ? हरखू नमस्ते सर जी कहत कथे - गुरुजी, बिछी चाब दे रहिस। गुरुजी कथे आधा समे तो खपत हो गे हे, का पेपर बनाय सकबे ? हरखू कथे - हाँ गुरुजी ...।
हरखू परीक्षा खोलिया म प्रश्न पेपर उत्तर पेपर अऊ कलम दवात ल धरे बइठे हे, काबर के मारे बोखार के ओकर मुड़ी ह किंजरत अऊ धमकत रथे, तेकरे सेती ओला कुछु नई सुझत हे। उत्तर पेपर म सिरिफ अपन नाव रोल नंबर अऊ स्कूल के नाव लिख के बाहिर निकल जाथे। अइसने सबो पेपर हो जाथे। तीस अप्रेल के परीक्षा नतीजा आ जाथे। हरखू अपन अंकसूची ल देखथे, अंगरेजी विषय म एक नंबर पाय हे फेर तीसरा दर्जा म पास हो गये हे। अंगरेजी म ओ समे पास होना जरुरी नई रिहिस काबर के अंगरेजी अलमलहा विषय रहिच।
गरमी के छुट्टी म पढ़ईया लइका मन उल्ला हो जाथे। खेलई कूदई म दिन पहाथें। हरखू के ददा एक दिन कथे - अब्बड़ बूलत रथच, तोर भइया मन संग खातू गाड़ा म जाय कर अऊ ओती ले लकरी भरके लाय कर। खेती किसानी म भूला जाबो असाड़ के अदरा ह बरस दिही त अकरस जोताय खेत घलो मन ल बउगे नई पाबो लंदफदा जाबो, एकरे सेती कहत हँव लउहा - लउहा खातू कचरा ल फेंका अऊ लकरी छेना ल सकेला। ददा के सिखोना गोठ सुनके हरखू ह अपन भइया मन संग खातू गाड़ा म जावय अऊ मंझन भर अमरईया म गाँव के टूरा - टूरी मन संग कच्चा आमा ल टोर - टोर के नून मिरचा के बूकनी म खावय अऊ तरिया के पानी ल मूड़ी बोर के डकर - डकर पीयय। अइसने उदीम करई म हरखू ल रात के जर चढ़ा लेवय अऊ माड़ी कोहनी ह अड़बड़ पिरावय। एक दिन रथिया बनेच जर चढ़गे अऊ हाथ गोड़ ह मंझनिया के घाम सही लकलक ले तीप गे। हाथ गोड़ अऊ माथा के पीरा म अधरथिया हँकरे लागीच। दाई के तीर खटिया म बड़की भौजी अंगना म सूते रहय। हरखू के हंकरई ल सुनके के कथे - दाई ओ दाई दऊ के हाथ गोड़ पिरावथे काये, हंकरथे। दाई कथे जा तो देख। बड़की भौजी हरखू के पेट ल टमरथे। ओ तो गोरसी के भोंगरा सही तीपे रथे। फेर नरियर के तेल ला के हाथ गोड़ ल चुपरथे ठोकथे। तरपवाँ अऊ माथा म पानी के पोनहा देथे। एक घरी के भीतर हरखू के बोखार कमती हो जाथे, फेर नींद भर रात के सूतथे। होत बिहनहा नगवा के डाकडर मेर सूजी पानी देवाय जाथे। ये दे दू दिन पाछू हरखू नागर बईला ले के अपन भइया मन संग खूर्रा धाय बोय खेत जावथे अऊ बड़की भौजी रोटी पानी खवाके बड़े - बड़े ढेला ल कुदारी के पासा म पासत हे।

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