- राजेश जगने ' राज'
ग्राहक को उसने रेल्वे स्टेशन पर घर छोड़ा। उससे पन्द्रह रूपए लेकर दुकान गया और उस पन्द्रह रूपए से आटा लेकर अपने घर के पास पहुंचा। दरवाजा खटखटाने पर उसकी पत्नी ने दरवाजा खोली। बोली - आज तो बहुत देर लगा दिए। पति ने पत्नी से सारा हाल सुनाते हुए लाए आटा को उसे सौंप दिया। घर भीतर प्रवेश करती पत्नी ने कहा - आटा भर से क्या होगा ? इसे पकाने के लिए आग भी तो चाहिए। घर में एक भी लकड़ी नहीं है। बच्चे दिन भर से कुछ खाए नहीं है।
बच्चों का विलाप पिता से देखा नहीं गया। उसने आलमारी से कापियों का बंडल निकाला और पत्नी से कहा - लो, इन कापियों के पन्ने फाड़कर चूल्हा जला लो। इसकी आंच से रोटियाँ बन जायेगी।
पत्नी ने विनम्र भाव से कहा - मैं इसे नहीं जला सकती। ये तो आपकी अमूल्य धरोहर है। इन कापियों में आपकी कविताएं लिखी हुई है।
रिक्शे वाला कवि ने कहा - भूख की आग और कागज पर लिखे आग में जमीन - आसमान का अंतर है। ये मेरी लिखी हुई कविता किसी की भूख नहीं मिटा सकती, पर चूल्हे में जल कर कविता रोटी जरूर बना भूख की आग बूझा सकती है।
पत्नी पन्ने फाड़कर चूल्हा जलाने लगी। कविता की आंच पर रोटियां बनाने लगी। रोटी के बनते तक बच्चे भूख से तड़प रहे थे और कविता के लिए कवि।
- सोला खोली, स्टेशन रोड, नागपुरे सॉ मिल के पास, राजनांदगांव ( छग.)
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