कविता
झूठी होती आंखन देखी, सच होती अटकलें॥
हाथ हमारे बहुत बौने,
माने या न माने,
आसमान में, पंख लगाकर
उड़ते हैं दाने॥
नारे उगे खेतों में, आंगन में गेहूँ के गमले।
झूठी होती आंखन देखी, सच होती अटकलें॥
आकृतियां हैं आदमी,
नोटों के नपने
देखकर मगन है भोर भी,
खून सने सपने,
जख्मी और, विकृत होती आस्था की शकलें।
झूठी होती आंखन देखी, सच होती अटकलें॥
लगे हैं, गली - गली,
अनुत्तरित प्रश्नों के मेले,
रोज नये करतब है
जी भर कर खेलें,
समाधान सम्मुख, सभी, झांक रहे बगलें।
झूठी होती आंखन देखी, सच होती अटकलें॥
- दादूलाल जोशी '' फरहद ''
झूठी होती आंखन देखी, सच होती अटकलें॥
हाथ हमारे बहुत बौने,
माने या न माने,
आसमान में, पंख लगाकर
उड़ते हैं दाने॥
नारे उगे खेतों में, आंगन में गेहूँ के गमले।
झूठी होती आंखन देखी, सच होती अटकलें॥
आकृतियां हैं आदमी,
नोटों के नपने
देखकर मगन है भोर भी,
खून सने सपने,
जख्मी और, विकृत होती आस्था की शकलें।
झूठी होती आंखन देखी, सच होती अटकलें॥
लगे हैं, गली - गली,
अनुत्तरित प्रश्नों के मेले,
रोज नये करतब है
जी भर कर खेलें,
समाधान सम्मुख, सभी, झांक रहे बगलें।
झूठी होती आंखन देखी, सच होती अटकलें॥
पता - ग्राम - फरहद, पोष्ट - सोमनी
जिला - राजनांदगांव ( छग. )
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