- रूपेन्द्र पटेल
बिरवा लगा के रूखवा सिरजाईलो मिलही सुख सरग के समान हो
गुनौ गा भइया सुन लौ बहिनी, रूखवा भुइंया के भगवान ये..
रूखवा ले बादर के पानी ओरवाती ले चुहत धार हे
पानी ले खेती खेत म धान ददरिया गावत किसान हे
रूखवा ये खिनवा पैरी करधन, एही धरती के सिंगार ये गुनौ गा...
रूखवा ले संसा संसा ले हंसा रूखवा ले बाढ़त परान हे
रूखवा उजारे जिनगी बिगारे रूखवा बिन छूट जाही परान रे
दू नही त चला एक - कल गावन, एही हम सबके ईमान ये गुनौ गा...
जेठ महीना नवातपा के घाम लीम छंइहा संगी जुड़ा लेबे
डहर रेंगत - रेंगत थक जाबे संगी बइठ मया - पिरीत गोठिया लेबे
कहूं बिमरहा हो जाही तन, रूखवा के अंगो अंग दवाई ये गुनौगा...
माटी के आखर अंव..
दया मया भरे मोर जिनगानी,सोनहा माटी संग मोर मितानिन ,
सावन अस बरसत बादर अंव,माटी के आखर अंव मय
कोरा पोथी नहीं रे संगी करम के गीत पढ़थव ना
मोर मया के किसन बरोबर अजुर्न जस वीरता रचथव ना
मोर महतारी मंय लइका अंव, माटी के आखर अंव मय
बढ़ भागमानी जीव रे संगी ए भारत मं जनम धरेंव
एकर मान गुमान रखे बर सरबस अरपन करेंव ना
ऐकर चरन के धुर्रा् बने हवं, माटी के आखर अंव मय
मोर नागर देख रे संगी बलदाऊ घलो घबरावय ना
मोर करम के मोल धरेबर पुलकत लक्षमी आवय ना
मन निरमल तुलसी बिरवा अंव, माटी के आखर अंव मय
पता - ग्राम - लोहारा, डाकघर - पंडरिया,जिला - कबीरधाम (छग)
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