इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

मंगलवार, 30 अगस्त 2022

निर्णय

 टीकेश्वर सिन्हा ’ गब्दीवाला’

तीन - चार बरस ही हुए थे संजना को ससुराल आये कि सास - ससुर काल - कवलित हो गये। पति रमेश पर मित्र संगति का बुरा असर पड़ा। वह भटक गया। सारे अवगुण उसमें समा गये। फिर घर का सारा जिम्मा संजना पर आ गया। अब राहे - ज़िंदगी पर कदम रखते हुए वह घर - परिवार की गाड़ी अकेली खींचने लगी।
अब तो रमेश अपनी बुरी आदतों के चलते स्वयं से ही पूरी तरह छिन गया। कुंठा उस पर पूरी तरह हावी हो गयी। संजना पर चारित्रिक लांछन तक लगाने लगा। आज उसने आधी रात को शराब के नशे में संजना से खूब मारपीट की। संजना पूरी तरह टूट गयी। दुःख का पहाड़ गिर गया उस पर, क्योंकि किसी औरत की आबरू अपने ही पति के द्वारा उछाली जाय, इससे ज्यादा बदनसीब औरत दुनिया में कोई नहीं हो सकती। इसीलिए तो संजना नशे में धुत्त पति व अपने सोते हुए तीन बच्चों को छोड़कर घर से निकल गयी।
घनी अँधेरी रात को संजना रेल्वे लाइन पर खड़ी थी। हृदय का दुख - दरिया उफान पर था। आँखें लबालब थीं। उसे मौत का इंतजार था। तभी एक समीपस्थ गाँव से एक गीत की स्वर - लहरियाँ उसके कानों को छू गयी :
मत रो ... मत रो ...
 मत रो ...आज राधिके
सुन ले बात हमारी
तू सुन ले बात हमारी
जो दुख से घबरा जाये
वो नहीं हिंद की नारी
मत रो ... मत रो ...।
फिर संजना ने अपने दाएँ हाथ से अपनी साड़ी का पल्लू बाएँ कंधे पर फेंका। उंगलियों से आँसू पोंछे। सर के केश सम्हाले। घर की ओर चल पड़ी।
उस रात को आसमान के तारों ने संजना को इस तरह पहले कभी नहीं देखा था।

घोटिया - बालोद (छत्तीसगढ़)
सम्पर्क : 9753269282

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