श्वेता गर्ग
फिर भी खुद की तलाश करती हूंँ
जाने किन राहों से गुज़री जिंदगी
फिर से साहिल की तलाश करती हूंँ
ढूंढ रही खुद के ही वजूद को
कुछ तन्हा लम्हों की आस करती हूंँ
लबों की खामोशी कौन समझा हैं
कुछ लफ्जों की तलाश करती हूंँ
जो चल सके चार कदम मेरे साथ में
मैं उस हमकदम की तलाश करती हूंँ
क्यों कशमकश में उलझती है जिंदगी
मैं उन जवाबों की तलाश करती हूँ
जहांँ पा सकूं फिर एक बार खुद को
मैं उस मंजिल की तलाश करती हूंँ
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