इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शनिवार, 16 जुलाई 2022

बूढ़े पाखी

 कमल कपूर
‘ स्मृति पार्क ‘ के लंबे-चौड़े ‘ वॉकिंग -ट्रैक ‘ के चार चक्कर लगाकर…थककर सुस्ताने के लिए बैंच पर बैठी ही थी बेला कि उसकी नज़रों को बांध लिया , सामने से चली आ रही एक नैनाभिराम सी वृद्ध जोड़ी ने । वृद्ध सज्जन सफ़ेद-नीले ‘ ट्रैकसूट ‘ में थे और अपनी सुदर्शना वृद्धा पत्नी का हाथ थामे संभल-लंभलकर पग धर रहे थे । लाल पाड़ की़ श्वेत साड़ी पहने थी वह वृद्धा । उनके गोरे ललाट पर चवन्नी के आकार की सुर्ख़ बिंदिया दमक रही थी और धवल रेशमी बालों के बीच चटक सिंदूरी रेखा खिंची हुई थी ।उन्हें मुग्ध दृष्टि से निहारते हुए बेला ने सोचा , ‘ हे प्रभु ! मुझे बुढ़ापा देना तो इतना ही सुंदर देना , नहीं तो न ही देना।’
वे कुछ देर टहलकर छोटे-छोटे कदम रखते हुए पास आए और बेला की बग़ल वाली बैंच पर बैठ गए । पति ने अपनी जेब से रुमाल निकालकर पत्नी के माथे का पसीना पौंछा और बॉस्केट से एक पानी की बॉटल निकालकर उसके हाथ में थमा दी । बेला के कनखियों के प्रहरी सजग हो गए और कर्णद्वय सतर्क । वे दोनों अब अपने विदेश में बसे बच्चों की बातें कर रहे थे और स्मार्ट फ़ोन पर पोते -पोतियों की तस्वीरों देख-कर ख़ुश हो रहे थे…हँस रहे थे । सहसा वृद्ध सज्जन खाँसने लगे तो पत्नी ने तुरंत अपना पर्स खोला और एक गोली निकालकर , पानी की बॉटल के साथ उनके हाथ में थमा दी , एक मीठी फटकार के साथ,” मना किया था न आपको कि ना खाओ तीखी चाट-पकौड़ी पर आप तो…अरे कितनी बार समझाया है कि अपनी उम्र देखकर खाया-पिया करें पर नहीं…”
“ सॉरी बेगम ,” इतना भर कहा उन्होंने …हाथ जोड़कर । बेला के नयन भी नम हो गए और मन भी । इन कुछ पलों में ही , वह समझ गई थी कि ये वो दो बूढ़े पाखी हैं, जिनके चुरुगन पंखों में प्राण पड़ते ही , उड़कर सात समंदर पार जा बसे हैं और ये कसकर एक-दूसरे का हाथ थामे…एक-दूसरे को सँभाले एक …प्यारी सी सौम्य-संतुष्ट ज़िन्दगी जी रहे हैं…मिठास से बच्चों के याद करते हुए…बिना किसी शिकवे-शिकायत के ।
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कमल कपूर

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