डॉ. मृदुल शर्मा
प्यार न जाने मन पर
क्या जादू कर देता है।
जीवन का सच्चा सुख
ढाई आखर देता है।।
गहन उदासी इसके आगे
तनिक न टिक पाती।
कुहू कुहू कोयल की
कानों में है हर जाती।
टूटी हुई बांसुरी को
अभिनव स्वर देता है।।
यह होता तो जीवन के
दिन रात महक जाते।
अरमानों के जैसे
सौ-सौ पंख निकल आते।
प्राणों को अक्षय
जिजीविषा से भर देता है।।
(2)
रीत रहे घट जैसे
बीत रहे दिन।
रूठ गये अधरों से
हंसमुख संवाद।
मुक्त रहा छूने से
मन को आह्लाद।
चुप्पी की बाड़
लांघना हुआ कठिन।।
पनप रहे
रक्तबीज जैसे संदेह।
लाभ-लोभ सोख रहा
अनवरत स्नेह।
रिश्ते -संबंध
चुभा रहे आल पिन।।
सेवानिवृत्त अधिकारी, भारतीय स्टेट बैंक,
संपर्क : 569क/108/2, स्नेह नगर,
मो.9956846197
परिचय
- जन्म -01-05-1952, शिक्षा-एम.ए., पीएच.डी. , गद्य-पद्य की तेईस
पुस्तकें प्रकाशित। दो कृतिया उ.प्र.हिंदी संस्थान और तीन कृतियां अन्य
साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत। विगत चार दशकों में शताधिक
पत्र-पत्रिकाओं में पांच सौ से अधिक रचनाएं प्रकाशित। उ.प्र.हिंदी संस्थान
द्वारा साहित्य भूषण सम्मान,
वर्तमान में छंद बद्ध कविता की त्रैमासिक पत्रिका "चेतना स्रोत"का अवैतनिक संपादन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें