इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

रविवार, 29 मई 2022

राजनीति बना व्यापार जी

राजकुमार मसखरे

देखो आज  इस  राजनीति को
कैसे  बना  गया  ये व्यापार जी,
लोक - सेवक अब गायब जो हैं
मिला बड़ा उन्हें रोज़गार जी!
राजनीति अब स्वार्थ- नीति है
कर रहे अपनों का उपकार जी,
कुर्सी में चिपके रहने की लत
बस एक ही इनका आधार जी!
चमचा बनो व जयकारा लगाओ
फलफूल रहा है ये बाज़ार जी,
छुट -भैये नेता पीछे झंडा उठाये
इस धंधे का है ख़ूब पगार जी!
कुछ नहीं करते तो नेता बनो
या नेता के अच्छे चाटुकार जी,
जनता, देश से न कोई मतलब
बस बन तो जाये सरकार जी!
कई पीढ़ियों के भर लिए खजाने
सोना-चांदी है इनका आहार जी,
इन बंगलों में खूब गुलछर्रे उड़ाते
वो वोटर बीच फँसे मझधार जी!

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