हमीद कानपुरी,
खुद ब खुद इश्क़ के रास्ते मिल गये।
प्रेम के जब मुझे क़ाफिल मिल गये।
प्रेम के जब मुझे क़ाफिल मिल गये।
सामने धुंध अज़हद घनी थी मगर,
जब चले दो क़दम रास्ते मिल गये।
जब चले दो क़दम रास्ते मिल गये।
ख़ूबसूरत ग़ज़ल सामने आ गयी,
क़ाफ़िये जब मुझे बोलते मिल गये।
जब ग़लत रास्ते पर चला दो क़दम,
बाप माँ तब वहाँ रोकते मिल गये।
बाप माँ तब वहाँ रोकते मिल गये।
फूल उसने दिये थे मुझे जो कभी,
कल किताबों में वो सब छुपे मिल गये।
कल किताबों में वो सब छुपे मिल गये।
हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
179 ,मीरपुर, कैण्ट, कानपुर-208004
ahidrisi1005@gmail.com
अब्दुल हमीद इदरीसी,
179 ,मीरपुर, कैण्ट, कानपुर-208004
बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएं