राजकुमार मसखरे
घपटे करिया बादर
पवन हिलोरत हे आगर,
सावन ह अधियागे
पानी गिरत नइहे काबर !
किसान ह करियागे
निचट...संसो म दुबरागे,
कर्जा ल सरेख के
अंग अंग म पीरा अमागे !
किसान के किसानी
दूभर होगे जी जिनगानी,
इतरावत ब्यपारी
नेता करत हे मनमानी !
किसान हे दाहरा म
रात-दिन खेत के पाहरा म,
मानसून के जुआ
भरोसा..ओखरे लाहरा म !
रजधानी सुलगत हे
उद्योगपति मन कुलकत हे ,
नेता जी मेछरावत
बिच्छल होके बुलकत हे !
गिर पानी सरकार
इंकर करिया मुख ल टार,
उंखर का बिस्वाँस
हमर बाँहों भरोसा हे सार !
तँय अतेक शरीफ़ !
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तँय अतेक शरीफ़
कभू तँय दारू के
छिटका नइ लेयेस !
रोज दरूवाहा मन के
ओखर खानदान के
तँय का का नइ कहेस !
तँय आज भी नइ पियस
येला...अपराध मानथस
रंग रंग के भासन देयेस!
तँय अतेक के शरीफ
दारू के पियई छोड़
शीशी ल नइ छुयेस !
पड़गेस चुनाव के सपड़
पेटी,पेटी अउ ड्राम ड्राम
का नइ जुगाड़ धरेस !
नइ सोचेस पियंव नही
त पियाहूं मँय काबर
नाम के शरीफ बनेस !
तोर ले बने मंदहा हे
जेन खुद बिगड़े हे
तँय का...नइ करेस !
अब तहिं बता कोन बने
पिअइया के पिलवइया
कइसे रे ! पापी धनेश !
पापी नही,पाप ले डर
उपर- छावा रे सिधवा
तँय अइसे गोबर गनेस !
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