डॉ. सुरेश देशमुख ने माइक के बाद कलम से रचा नया इतिहास
वीरेन्द्र बहादुर सिंह
आज
से लगभग 50 वर्ष पूर्व हजारों की संख्या में उपस्थित भीड़ को संबोधित करते
हुए सूट, बूट, टाई धारी 23 वर्षीय एक नवयुवक ने जब यह ऐलान किया कि चंदैनी
गोंदा कोई नाचा, नाटक, गम्मत या तमाशा नहीं है , कदापि नहीं है । चंदैनी
गोंदा एक दर्शन, एक विचार है, तो समूचा छत्तीसगढ़ सहसा चौक गया था। तब शायद
उस नवयुवक को भी नहीं मालूम रहा होगा कि छत्तीसगढ़ के लोक मंच के सबसे
बड़े शिल्पी दाऊ रामचंद्र देशमुख की सर्वाधिक प्रभावी प्रस्तुति चंदैनी
गोंदा के माध्यम से वह नया इतिहास रच रहे हैं। इतिहास गवाह है चंदैनी गोंदा
छत्तीसगढ़ी लोक मंच का राजमुकुट और छत्तीसगढिय़ा स्वाभिमान का पर्याय बन
गया था। छत्तीसगढ़ की दिग्विजयी सांस्कृतिक यात्रा पूर्ण करने उपरांत
दिसम्बर 1980 में फिंगेश्वर की विराट प्रस्तुति के बाद मंच से गूंजने वाली
वह आवाज खामोश हो गई। लगभग 4 दशकों की लंबी चुप्पी के बाद उम्र के 73 वें
पड़ाव में वह आवाज एक बार फिर मुखर हुई है, लेकिन इस बार प्रस्तुति का
माध्यम बदल गया है। माइक्रोफोन पर कभी अपने प्रभावशाली उदघोषणा के माध्यम
से हजारों लोगों को पिन ड्रॉप साइलेंस कर देने वाले चंदैनी गोंदा के प्रथम
यशस्वी उद्घोषक डॉ. सुरेश देशमुख ने इस बार कलम पकड़ कर एक नया इतिहास रचा
है। देहाती कला विकास मण्डल से लेकर चंदैनी गोंदा की निर्माण प्रक्रिया और
उसके विसर्जन तथा कारी की सर्जना तक की रामचंद्र देशमुख की सांस्कृतिक
यात्रा को उन्होंने 488 पृष्ठों के अपने ग्रंथ में समाहित कर छत्तीसगढ़ के
बौद्धिक वर्ग को दोबारा चौकाया है। इस बार अपने ग्रंथ के संपादकीय में
उन्होंने लिखा है, जिनकी उम्र 65 वर्ष से अधिक है वहीं चंदैनी गोंदा की
भव्यता, उसके सम्मोहन, उसकी उद्देश्य परकता, उसके सामाजिक सरोकार तथा
छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढिय़ों के शोषण, उत्पीडऩ और तिरस्कार के विरुद्ध उसके
तीखे प्रहार को जानते हैं। 65 वर्ष की कम उम्र की पीढ़ी जिसे अब अपना
राज्य मिल गया है, खोया स्वाभिमान मिल गया है और बहुत सीमा तक मिल गई है
शोषण से मुक्ति, वह इस बात से अनभिज्ञ हैं कि दाऊ रामचंद्र देशमुख ने
छत्तीसगढ़ में सांस्कृतिक क्रांति का शंखनाद करके छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण
के लिए एक वातावरण निर्मित किया था। इस ग्रंथ में वस्तुत: इसी पीढ़ी को दाऊ
रामचंद्र देशमुख के व्यक्तित्व और कृतित्व से समग्र रूप से परिचित कराने
का प्रयास किया गया है।
चंदैनी
गोंदा छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक यात्रा स्मारिका का प्रकाशन 7 दिसंबर सन
1976 को चंदैनी गोंदा के 25 वें प्रदर्शन के अवसर पर हुआ था। इसके संपादक
धमतरी के साहित्यकारद्वय नारायण लाल परमार और त्रिभुवन पांडे थे। प्रकाशक
चंदैनी गोंदा के संयोजक और निर्देशक रामचंद्र देशमुख थे। इस स्मारिका के 45
वर्षों के उपरांत डॉ सुरेश देशमुख ने स्मारिका के द्वितीय संस्करण को
संशोधित और परिवर्धित रूप में प्रकाशित किया है। कुल 488 पृष्ठों का यह
वृहद ग्रंथ 16 अध्यायों में विभक्त है। ग्रंथ का प्रथम खंड अध्याय एक से
सात तक 1976 में प्रकाशित स्मारिका का संशोधित द्वितीय संस्करण है।
स्मारिका का द्वितीय खंड दाऊ रामचंद्र देशमुख के व्यक्तित्व का दस्तावेज
है, जो अध्याय 10 से 16 तक विस्तृत रूप से फैला है।
‘चंदैनी
गोंदा : छत्तीसगढ़ की एक सांस्कृतिक यात्रा’ प्रथम संस्करण (संपादक-
नारायण लाल परमार एवं त्रिभुवन पांडेय) में लिखा गया है, वहां गए तो
अलग-अलग 50 हजार लोग थे लेकिन लौटते वक्त सब एक कैसे हो गए? एक सुबह इतनी
सार्थक और नई कैसे हो गई? चंदैनी गोंदा के प्रथम प्रदर्शन के बाद की गई
सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी है ,जो चंदैनी गोंदा की सफलता को प्रमाणित करती है
। चंदैनी गोंदा छत्तीसगढ़ की आत्मा से साक्षात्कार के साथ ही आत्म
परिष्कार का एक सांस्कृतिक प्रयोग भी है । दैनिक समाचार पत्र महाकौशल
(रायपुर) की यह टिप्पणी कि अभी तक मंच के इतिहास में लोकगीतों के माध्यम
से कोई भी कथानक प्रस्तुत नहीं किया गया। यह मंच की सर्वथा नई विधा ही होगी
महत्वपूर्ण टिप्पणी है। अध्याय एक की शुरूआत दाऊ रामचंद्र देशमुख के नाचा
पर शोधपूर्ण ऐतिहासिक आलेख छत्तीसगढ़ी नाचा का क्रमिक विकास से हुआ है।
संपादक का दावा है कि नाचा पर यह लेख पहली बार प्रकाशित हुआ था। बाद में
नाचा पर जो कुछ भी लिखा गया वह सब इस आलेख पर ही आधारित है । इसमें नाचा की
प्रारंभिक प्रस्तुति से लेकर उसमें आई सांस्कृतिक क्षरण की तथा कथा है।
दाऊ रामचंद्र देशमुख ने नाचा में आ रही विकृति को देखकर लिखा है कि नाचा
देख सुनकर छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति के बारे में कोई गौरवपूर्ण धारणा नहीं
बनती थी। राजकुमार शर्मा ने अपने आलेख में चंदैनी गोंदा के बहुविध आयामों
की चर्चा की है। त्रिभुवन पांडेय की कलम से ‘छत्तीसगढ़ एक आत्मसाक्षात्कार’
- चंदैनी गोंदा की द्वितीय प्रस्तुति पर लिखा गया विस्तृत रिपोतार्ज है।
जगन्नाथ शाही का चंदैनी गोंदा एक आत्मीय साक्षात्कार का यह वाक्य ‘देखूँ ,
सुनूं और महसूस भी करूं। चंदैनी गोंदा तुम बहुत ज्यादती कर रहे हो।
तुम्हें इतना सजीव नहीं होना था।’ गागर में सागर भरता है। उन्हें पढ़ते हुए
व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल का भ्रम होता है। डॉ.गणेश खरे की दृष्टि में
चंदैनी गोंदा जनरंजन भर नहीं करता वरन अंचल र्में जन जागरण का शंखनाद भी
करता है। अपने कर्तव्य तथा अधिकारों के प्रति सचेष्ट कराने वाला एक प्रकार
का रेनेसॉ है। नारायण लाल परमार का लेख छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक कार्यक्रम
चंदैनी गोंदा की प्रतीकात्मकता चंदैनी गोंदा के प्रतीकों की सटीक व्याख्या
करता है। डॉ. हनुमंत नायडू ने चंदैनी गोंदा को छत्तीसगढ़ी आंसुओं का
विद्रोह कहां है। डा. शेष नारायण चंदेले ने अपने आलेख में चंदैनी गोंदा के
संगीत पक्ष का व्यापक विश्लेषण किया है। डॉ. मनराखन लाल साहू ने अपने आलेख
चंदैनी गोंदा छत्तीसगढ़ की खोज यात्रा में कार्यक्रम की व्यापक समीक्षा की
है। सतीश जायसवाल अपने लेख छत्तीसगढ़ का चंदैनी गोंदा में लिखते हैं खुले
मौसम की किसी भी रात सडक़ किनारे ठठ के ठठ स्त्री-पुरुष किसी एक गांव की तरफ
चलते दिखाई दे तो समझिए गांव में चंदैनी गोंदा का आयोजन है।
अध्याय
5 में कलाकारों का सचित्र परिचय है। अध्याय 6 चंदैनी गोंदा गीत कुंज लोक
संगीत के उन रसिकों के लिए महत्वपूर्ण है जो गीतों को शिद्दत के साथ सुनते
हैं। इस अध्याय में चंदैनी गोंदा में गाए गए 65 गीतों का दुर्लभ संग्रह है।
जो उनके रचनाकारों के चित्रों के साथ दिए गए हैं। इनमें 34 गीत अकेले
प्रदेश के लोकप्रिय गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया के हैं । अध्याय 6 में
चंदैनी गोंदा का कथानक है । साथ में प्रसंग अनुरूप मंचीय प्रस्तुतियों के
चित्र चार चांद लगाते हैं। जिन्होंने मूल चंदैनी गोंदा नहीं देखा है, वे
इसके माध्यम से चंदैनी गोंदा रूपी गंगा में डुबकियां लगा सकते हैं। ‘एक रात
का स्त्री राज’ और ‘देवार डेरा’ के कथानक को भी इस में पहली बार शामिल
किया गया है। साथ में ‘कारी’ का कथासार भी देकर दाऊ रामचंद्र देशमुख के
कृतित्व को पूर्णता प्रदान की गई है।
दाऊ
रामचंद्र देशमुख की सांस्कृतिक यात्रा का पहला पड़ाव छत्तीसगढ़ देहाती कला
विकास मंडल के गठन और उस के माध्यम से प्रस्तुत गम्मतों पर इस ग्रंथ के
संपादक डॉ.सुरेश देशमुख ने विस्तृत आलेख लिखा है जो नाचा के परिष्कार के
लिए दाऊजी की जिजीविषा और जुनून को प्रमाणित करता है। उन प्रस्तुतियों में
गाए जाने वाले गीत समृद्धशाली नाचा का अलहदा एहसास कराते हैं। स्मारिका के
प्रथम खंड का समापन अध्याय 9 में संपादक डॉ. सुरेश देशमुख की अनसुनी अध
सुनी से हुआ है ,जिसमें चंदैनी गोंदा के सृजन की परिस्थितियों और उनके
पहलुओं तथा घटनाओं पर रोचक प्रसंग है। डॉक्टर देशमुख का संस्मरण विशेष रूप
से पठनीय है।
स्मारिका
का द्वितीय खंड अध्याय 10 से शुरू होता है । जो दाऊ रामचंद्र देशमुख के
व्यक्तित्व पर आधारित है। संपादक डॉ. सुरेश देशमुख से सहमत हुआ जा सकता है
कि व्यक्तित्व एवं कृतित्व परस्पर संबद्ध होते हैं । एक को समझे बिना
दूसरे को समझना कठिन होता है। आधार लेख पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं संक्षिप्त
परिचय दाऊ रामचंद्र देशमुख को स्वयं संपादक डॉ. सुरेश देशमुख ने लिखा है।
दाऊ रामचंद्र देशमुख पर प्रख्यात साहित्यकार हरि ठाकुर की टिप्पणी सर्वाधिक
प्रासंगिक है। उन्होंने लिखा है ‘वास्तव में दाऊजी पद्मश्री अथवा राज्यसभा
सदस्य के रूप में सम्मान प्राप्त करने के अधिकारी थे, किंतु उस राजनीति का
तत्वज्ञान उन्हें नहीं था जो किसी को ऐसा सम्मान दिलाते है। उन्हें
राजनीतिक कलाकारी नहीं आती थी।’ जाहिर है छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान को जगाने
वाला अपने स्वाभिमान के साथ समझौता तो कर ही नहीं सकता था।
परितोष
चक्रवर्ती लिखते हैं। रामचंद्र देशमुख ने जितना कुछ लोक संस्कृति के लिए
किया है उतना अगर कोई दूसरा शो मैन करता तो संभव था आज वह अलंकरणों से लाद
दिया जाता, किंतु लोककला के इस वट वृक्ष को किसी अलंकार से कोई सरोकार
नहीं है। दाऊ रामचंद्र देशमुख का एक और आलेख सामाजिक परिवर्तन के संबंध में
है जो लोककला मंच पर उसके चिंतन को स्पष्ट करता है। अध्याय 12 में दाऊ
रामचंद्र देशमुख को विभिन्न साहित्यकारों द्वारा लिखे गए 19 महत्वपूर्ण
पत्रों को शामिल किया गया है। इनमें छत्तीसगढ़ के स्वप्नदृष्टा डॉ खूबचंद
बघेल, स्वामी आत्मानंद, पूर्व सांसद चंदूलाल चंद्राकर, पुरुषोत्तम कौशिक,
आचार्य नरेंद्र देव वर्मा, संत कवि पवन दीवान, गणपत लाल साहू, साहित्यकार
श्यामलाल चतुर्वेदी, स्वतंत्रता सेनानी केयूर भूषण, घनश्याम प्रसाद तिवारी,
नारायण लाल परमार, चंद्रशेखर साहू, साहित्यकार हरि ठाकुर एवं प्रमोद वर्मा
के पत्र महत्वपूर्ण है। इनमें दाऊजी द्वारा परितोष चक्रवर्ती को लिखा गया
पत्र और गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया द्वारा डॉ. सुरेश देशमुख को लिखा गया
पत्र भी महत्वपूर्ण है। इन पत्रों से तत्कालीन परिस्थितियों को समझा जा
सकता है । दाऊ रामचंद्र देशमुख को 22 फरवरी 1969 को उनके ससुर और तत्कालीन
राज्य सभा सदस्य डॉ. खूबचंद बघेल का लिखा अंतिम पत्र भी है । यह पत्र
चंदैनी गोंदा के निर्माण का प्रमुख प्रेरणास्रोत है। इस पत्र में डॉ.बघेल
ने अपने दामाद को लिखा है। हमें आपकी नाटकीय प्रतिभा की बहुत जरूरत है ।
हमें छत्तीसगढ़ का हर हालत में नव निर्माण करना होगा।
अध्याय
13 में दाऊ रामचंद्र देशमुख के व्यक्तित्व को समग्र रूप से अभिव्यक्त करने
वाले पांच लेख दिए गए हैं, जिनमें हरि ठाकुर और जमुना प्रसाद कसार का लेख
दाऊजी के जीवन काल में लिखे गए थे। जबकि रामह्रदय तिवारी, परदेशी राम
वर्मा और विनोद साव के लेख दाऊजी के अवसान के बाद लिखे गए। इन लेखों में
दाऊजी का बहुआयामी व्यक्तित्व उभर कर सामने आया है। अध्याय 14 में दाऊजी के
व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचित 13 व्यक्तियों से लिए गए साक्षात्कार
संकलित हैं, जिनमें शिवकुमार दीपक, रामाधार कश्यप, रामसहाय, जागेश्वर
प्रसाद, डॉ. संतराम देशमुख, डॉ. बिहारी लाल साहू, पारितोष चक्रवर्ती, सुशील
भोले, रंजीत भट्टाचार्य, अनुराग चौहान, डॉ. शैलजा ठाकुर और कविता वासनिक
के साक्षात्कार है। एक साक्षात्कार दाऊजी की रचना प्रक्रिया की साक्षी
चंदैनी गोंदा का है, जिनसे नम्रता सिंह ने बातचीत की है। साक्षात्कार लेने
वालों में दुर्गा प्रसाद पारकर, देवधर महंत, चंद्रशेखर चकोर, पंचराम सोनी,
रामेश्वर शर्मा, डुमनलाल धु्रव, डॉ. सुधीर शर्मा, जयंत साहू ,रामविलास
अग्रवाल, विनायक अग्रवाल, कृष्ण कुमार चौबे और विजय मिश्रा जैसे लोककला और
लोक साहित्य के अध्येता शामिल हैं। अध्याय 15 में दाऊ रामचंद्र देशमुख से
परितोष चक्रवर्ती, रचना परमार,मनराखन लाल साहू, विनोद साव और डॉ. महावीर
अग्रवाल द्वारा ली गई भेंटवार्ताएं हैं जो अपने समय की लोकप्रिय राष्ट्रीय
साप्ताहिक धर्मयुग और दैनिक समाचार पत्र युगधर्म, अमर किरण और देशबंधु में
प्रकाशित हुई थी। अध्याय 16 में इस ग्रंथ का उपसंहार इन पंक्तियों के
लेखक (वीरेन्द्र बहादुर सिंह) द्वारा स्मारिका के संपादक डॉ. सुरेश देशमुख
से लिए गए साक्षात्कार से किया गया है।
संपादक
डॉ. सुरेश देशमुख ने अपने शोधपूर्ण ग्रंथ में दाऊ जी और उनकी कृतियों से
जुड़े छोटे बड़े सभी कलाकारों और साहित्यकारों को बड़ी शिद्दत के साथ याद
किया है और उनके अवदानों को भी रेखांकित किया है। चूंकि वे दाऊ रामचंद्र
देशमुख के भतीजे हैं तथा उनकी रचनाप्रक्रिया के साथ मन से जुड़े हुए थे इस
कारण भी उनका यह ग्रंथ प्रमाणिक बन गया है। संपादक श्री देशमुख स्वयं
चंदैनी गोंदा के प्रमुख स्तम्भ रहे हैं और वे प्रस्तुति की भव्यता और गरिमा
को समझते हैं। यही कारण है कि इस ग्रंथ को तैयार करने में उन्होंने अपनी
सारी शक्ति लगा दी और छत्तीसगढ़ में लोककला, संगीत और लोकसंस्कृति को जानने
और समझने का प्रयास करने वालों को अनुपम उपहार दिया है। यह ग्रंथ न केवल
पठनीय अपितु संग्रहणीय भी है । भविष्य में लोककला के शोधार्थियों के लिये
यह संदर्भ ग्रंथ का काम करेगा। पुस्तक का आवरण प्रमोद यादव (दुर्ग) और
कमलेश कुमार साहू (राजनांदगांव) ने तैयार किया है जो आकर्षक है। मूल्य 800
रूपये है । प्रकाशक रानी सूर्यमुखी देवी सम्पदा न्यास राजनांदगांव (
छत्तीसगढ़) है ।
4/5, बल्देव बाग़ वार्ड क्रमांक 15, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
मोबाइल - 9407760700
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