इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शनिवार, 22 मई 2021

चालीस

 सचिन मनन

-  महीने का किराया क्या होगा। उसने अपार्टमेंट के गेट पर ही पूछ लिया।
- वो बाद की बात है मैडम, पहले आप घर तो देख लो। ब्रोकर जानता था किराये की बात माल दिखाने के बाद ही करनी चाहिए।
- यह लिफ्ट नहीं चलती क्या?
           वैसे लिफ्ट वो शायद ही इस्तेमाल करती। कॉलेज के पाँच फ्लोर वो सीढ़ियों से ही तय किया करती थी। कमाल की फिटनेंश थी उसकी और इसी कारण अपनी उम्र से 8 - 10 साल छोटी लगती थी। उसने कई बार सुना था - लगता नहीं है कि आपकी इतनी बड़ी लड़की होगी। उसकी बेटी बाहरवीं में थी और बेटे ने हैदराबाद में हाल ही में एक कंपनी में नौकरी शुरू की थी।
- चलती क्यों नहीं है मैडम, चलती है। रिपेयर का काम चल रहा है। 8 मंजिला टावर है और इस सोसाइटी में 1000 फ्लैट हैं। लिफ्ट के बिना क्या चलेगा यहाँ। ब्रोकर ने सीढ़ियों चिढ़ते हुए कहा।
- किस मंजिल तक जाना है?
- तीसरी।
          हर मंजिल के लिए 24 सीढ़ियाँ थीं। कुल मिलाकर 50 वीं सीढ़ी तक पहुंची तो शालू ने एक बार रूककर सांस लेना ठीक समझा। ब्रोकर उससे पीछे रह गया था। जैसे ही वो उस तक पहुंची शालू ने आगे चलना शुरू कर दिया।
- आप चलो मैडम, मैं साँस लेकर आता हूँ। फ्लैट की चाबी है मेरे पास।
ऊपर पहुंचकर उसने फ्लैट का दरवाजा खोला। शालू ने नजर दौड़ाई - बालकनी नहीं है क्या फ्लैट में ?
- क्या बात कर दी मैडम, आपने कहा था बालकनी वाला फ्लैट चाहिए। इधर आईये, इस तरफ। यह एक यहाँ है। सीधे सामने पार्क की तरफ खुलती है। इलाके का सबसे बड़ा पार्क है यह। तीसरी मंजिल से तो क्या दिखेगा। लेकिन अगर आप 7 वी मंजिल से देखेंगी तो बहुत खूबसूरत नजारा है। लिफ्ट तो है ही मैडम। किराया भी कम होगा। बोलो बात करुँ।
- नहीं, तीसरी ही ठीक है।
- इस तरफ एक और छोटी बालकनी है। टू साइड ओपनिंग है फ्लैट में।
- किराया क्या होगा?
- मैडम किराये की भी बात होती रहेगी। किचन देखिये। किचन में गैस की पाइपलाइन आ रही है। सलेन्डर का चक्कर ही ख़तम मैडम। और बैडरूम के साथ एक अचैच्ड टायलेट। वैसे कितना बड़ा परिवार है आपका।
- बड़ा है, लेकिन फ्लैट में मैं अकेले ही रहूंगी।
- क्यों मैडम, बाकी परिवार। ब्रोकर ने पूछा
- वो लोग नहीं आएंगे। क्यों कोई परेशानी है। शालू ने जवाब देते हुए ब्रोकर की आँखों में आँखे डालकर देखा।
- नहीं मैडम, हमको क्या परेशानी होगी। लेकिन मालिक तो पूछेगा न कि अकेले क्यों रहना है आपको। परिवार क्यों नहीं आ रहा। ब्रोकर ने एक कृत्रिम हंसी के साथ पूछा।
- वो सब मुंबई में हैं। मेरी सरकारी नौकरी है यहाँ।  मैं अकेले ही रहूंगी।
शालू ने झूठ बोला था। उसको फ्लैट चाहिए था। परिवार उसका यहीं दिल्ली में ही था लेकिन वो अपने परिवार से अलग हो रही थी। न कोई लड़ाई झगड़ा, न ही कोई कलह कलेश किर भी अलग हो रही थी
- ठीक! ठीक! किस डिपार्टमेंट में काम करती हैं आप? ब्रोकर ने थोड़ी सी जानकारी मकान मालिक के लिये बटोर लेना ठीक समझा।
- अस्सिटेंड प्रोफेसर हूँ। दिल्ली यूर्निवसिटी में साइकोलॉजी पढ़ाती हूं। पिछले 15 सालों से। बालकनी से बहार की तरफ देखते हुए उसने जवाब दिया।
- तो परिवार कब शिफ्ट हुआ मुंबई। कौन - कौन है परिवार में।
मुड़कर ब्रोकर की तरफ देखकर उसने कहा - परिवार शुरू से ही मुंबई में है। मेरे हस्बैंड जीवन बीमा में हैं। लड़का आजकल हैदराबाद में है और लड़की हस्बैंड के साथ है। मुंबई में पढ़ती है अभी।
- तो आप कब आयीं दिल्ली।
- मैं दिल्ली में ही हूँ। शुरू से, जॉब है न यहाँ।
         ब्रोकर को कुछ अटपटा लगा। हजम होने लायक बात भी नहीं थी। कैसा परिवार हुआ भला जहाँ औरत शादी के बाद से ही अलग शहर में रहती हो। लेकिन उसको अपनी ब्रोकरेज की शायद ज्यादा चिंता थी।
उसने बात का रुख मोड़ दिया - मेरी कमीशन 1 महीने का रेंट है मैडम।
- 15 दिन। शालू ने दो टूक उत्तर दिया।
- ठीक है जी जैसी आपकी मर्जी। हम लोग तो वैसे भी सेवा का काम करते हैं। ब्रोकर को सौदा पटता दिखाई दिया।
- किराया क्या है।
- सस्ता ही है, 12 हजार महीना। 3 महीने का एडवांस लेगा।
- मुझे फ्लैट सिर्फ 6 महीने के लिए चाहिए। एडवांस 1 महीने का दे सकती हूँ। ट्रांसफर होने के चांस हैं इसलिए 6 महीने से ज्यादा का वादा नहीं करती।
- मैडम मालिक तो लम्बे समय के लिए किरायेदार ढूंढ रहा है। आप एक काम करो, उसको यह सब मत बोलो। खाली करना होगा कर देना, अभी से क्यों बोलना है मैडम, और 2 महीने का एडवांस के लिए मैं मनवा लेता हूँ।
- ठीक है और किराया 11 हजार। मैं इतवार को शिफ्ट करूंगी।
- मैं संडे को शिफ्ट हो रही हूं। यहाँ से थोड़ा दूर है। थोड़ा दूर होना भी चाहिए। यहाँ तो सब जानते हैं। एक रूम सेट है 12 हजार महीने का। 4 - 6 महीने रहूंगी। ठीक लगा तो आगे भी रहूंगी नहीं तो हो सकता है लौट जाऊंगी। शालू ने रात के खाने के बाद बर्तन समेटते हुए कहा।
- अब यह क्या बचपना है। कुछ बताओगी की यह सब क्यों कर रही हो? उसके हस्बैंड ने पूछा।
- मैंने ब्रोकर को बोला है कि मेरा पूरा परिवार मुंबई में रहता है। बेटे हैदराबाद में है और बेटी तुम्हारे साथ मुंबई में। इसलिए भूलकर भी तुम मुझसे मिलने नहीं आ जाना। शालू उसकी सुने बिना अपनी हिदायतें देती जा रही थी।
- मैं क्या पूछ रहा हूँ, और तुम क्या बोल रही हो। आखिर यह सब क्यों कर रही हो?
- अच्छा सुनो, मम्मी पापा को तुम बताओगे और कल सुबह सुबह बता देना। मुझे पता है वो बिना मतलब का इशू किए करेंगे। उसको संभालना तुम्हारा काम। बोलो क्या बोलोगे?
- तुम वापस तो आओगी न ? ऐसा नहीं था कि शालू और उसके पति के बीच इस बारे में पहले बात नहीं हुई थी। कई महीनों से शालू कह रही थी की वो 4 - 6 महीने के लिए अलग रहना चाहती है लेकिन कान तक को कभी नहीं लगा कि एक दिन शालू सचमुच जाएगी। उसको पता था कि अब जब शालू ने फैसला कर लिया है और घर किराये पर ले लिया है तो कुछ नहीं बदलने वाला
- आऊँगी। शायद 4 - 6 महीने बाद का अभी से नहीं कह सकती। रहकर देखती हूंँ। क्या पता न भी आऊ।
- शालू यह क्या चल रहा है। अगर माँ पापा को कुछ बताना भी है तो पता तो हो कि बताना क्या है। एक काम करते हैं उन्हें कहते हैं कि तुम ऑफिस की पोस्टिंग पर 6 महीने के लिए जा रही हो। इसके इलावा कोई और तरीका मुझे नहीं पता।
- नहीं, झूठ मत बोलो। मुझे नहीं पता कि 4 - 6 महीने बाद मै लौटूंगी या नहीं। सीधे - सीधे बोलो कि मैं शिफ्ट हो रही हूं। अकेले।
- और कारण क्या बताऊँ ?
- बोलो कि तुम्हें नहीं पता, क्योंकि तुम्हें नहीं पता।
- फिर वो तुमसे नहीं पूछेंगे ?
- हाँ तो उसका जवाब है। मेरा मन नहीं लगता यहाँ। शायद 4 - 6 महीने अकेली रहूं तो लौट आऊगीं।
- शालू तुम यह सब क्या कर रही हो। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।
- मैंने तुम्हें महीना भर पहले बता दिया था न कि मैं अकेले रहना चाहती हूँ। 4 - 6 महीने, अब हम फिर से यह सब क्यों शुरू कर रहे हैं ?
- यार इतना आसान है क्या ? लोग क्या कहेंगे ? माँ पापा हैं, बच्चे हैं। अच्छा एक बात बताओ। बच्चों से क्या कहेंगे? 
- यही की मुझे अकेले रहना है, 4 - 6 महीने। बच्चे, बच्चे तो नहीं हैं अब।
- यह क्या बात हुई। यार सब पूछेंगे हुआ क्या है... समझेंगे कि कोई न कोई लड़ाई हुई है। तुम क्या नहीं जानती यह सब।
- वो सब मैनेज करना तुम्हारा काम है। मंै संडे को शिफ्ट हो रही हूँ।
बातें तो चलती रहीं इसके बाद भी लेकिन निचोड़ इतना ही कि शालू संडे को शिफ्ट होने वाली है, अकेले। किराये के मकान में। उसी शहर में जहाँ उसका अपना एक घर है। परिवार है। कोई कलह कलेश नहीं। कोई लड़ाई नहीं। न सास से परेशानी न ससुर से कोई खटपट। ठीक ठाक कमाता है। घर पर कोई कमी नहीं। बच्चे ठीक हैं। सब कुशल मंगल। लेकिन शालू संडे को शिफ्ट हो रही है। 
- तू पागल हो गयी है। माँ को चलने में तकलीफ होती थी। जा कहाँ रही हो?
- यहीं, इसी शहर में ही हूँ। लेकिन यहाँ से थोड़ा दूर, संडे का दिन, शालू अपना जरूरी सामान पैक कर रही थी।
- पापा पूछ रहे हैं कोई लड़ाई झगड़ा हुआ है क्या?
- आपको पता है हम लड़ते नहीं हैं। कुछ नहीं हुआ है माँ, सच में। मैं आती रहूंगी। और फिर 4 - 6 महीने की ही तो बात है।
          शालू ने फ्रिज से दही निकालकर एक कटोरी में अपने लिए डाला और तवे से परांठा उठाकर सामने ही कुर्सीे पर बैठ खाने लगी। - और तुझे क्या हुआ है? शालू ने अपनी बेटी की तरफ देखकर कहा।
- क्यों जा रही हो माँ ? बेटी ने भी वही सवाल किया जो सब कर रहे थे।
- आती रहूंगी बीच - बीच में। क्यों का कोई जवाब नहीं है मेरे पास। पराठा खाते - खाते शालू ने उत्तर दिया - तू कब प्लान कर रही है भाई के पास जाने का? छुट्टियां होने वाली हैं तेरी। हो आ महीने भर को।
- देखूंगी। शायद अगले महीने।
- बस तो तू जब तक वापस आएगी शायद मैं भी आ जाऊं। शालू कोशिश में थी कि माहौल जितना कम भारी हो उतना अच्छा। उसको आशा थी कि उसके ससुर कुछ कहेंगे। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं पूछा। वो चुपचाप सोफे पर बैठे थे और टी.वी. को म्यूट करके देख रहे थे।
- सुनो गाड़ी आ गयी है। मैं चलती हूँ, एक काम करो जरा यह 2 - 3 अटैचियाँ रखवा दो गाड़ी में। शालू ने पति की तरफ देखकर कहा। 
शालू अटेचियाँ गाड़ी में रखवाकर वहीं से निकल गयी।
- मैंने किराये पर अपने लिए घर लिया है। 4 - 6 महीने के लिए। शालू ने फोन पर कहा
- ओह तेरी! सच में ? दूसरी तरफ से आवाज आयी। 
- तू पहली है जिसने यह नहीं कहा कि पागल हो गयी है। क्या हुआ, वगैरह -  वगैरह। सीरियसली बोल रही हूं। 
अदिति से शुरू किया था अलफाबेटिकल आडटर में। और कनिका तक से पहले 30 नंबर डायल कर चुकी हूँ। मुझे सबसे पहले तुझे ही करना चाहिए था। शालू ने कनिका का जवाब सुना तो उत्साह के साथ बोला।
- कहाँ लिया है मकान। कनिका ने पूछा।
- यहीं इसी शहर में। घर से 30 - 40 किलोमीर दूर है। आज शिफ्ट हो रही हूँ। तू आएगी, आ पायेगी? उसने पूछा।
- कब आऊ। कनिका ने जवाब में सवाल किया और फिर बोली - सुन अगले फ्राइडे आती हूँ। एक मिनट रुक देखती हूँ।
कि टिकट कब की मिल रही है, सबसे सस्ती वाली
- और रवि ?
- वो तो वैसे ही नोएडा में है। सालों से। एक काम करती हूँ। थर्सडे को आती हूँ। टिकट सस्ती है। आएगी एयरपोर्ट लेने ?
- हाँ, अच्छा सुन, रखती हूँ। घर आ गया है। सामान है साथ। सेट होकर बाद में बात करेंगे।
घर के मालिक ने शालू को घर की चाबी देते हुए पूछा - सामान बस इतना ही है।
- जी, यहाँ हमेशा से पी जी में ही रहती रही हूँ। कभी ज्यादा कुछ सामान बटोरा ही नहीं। आसानी होती है। आपका घर भी फर्निश्ड था इसलिए ज्यादा किराये पर भी ले लिया। शालू ने जवाब दिया।
- नहीं किराया तो ज्यादा नहीं है। ब्रोकर बता रहा था आपके हस्बैंड मुंबई में हैं।
- जी हाँ। यहाँ आना - जाना होता है उनका महीने दो महीने में एक आध बार। अगली बार आएंगे तो मिलवाऊँगी आपसे। शालू ने मालिक मकान को आश्वस्त करने के लिए यूँ ही कह दिया।
         घर फर्निश्ड था लेकिन फिर भी संडे का बाकी बचा दिन धूल मिट्टी झड़ने में ही चला गया। 3 - 4 घंटे तक यह कार्यक्रम चलता रहा और इस दौरान मेहँदी हसन से जगजीत और जगजीत से जाने कौन - कौन यूट्यूब पर चलते रहे। बीच में कनिका का फोन आया - टिकट बुक कर लिए हैं मैंने, वीरवार आ रही हंू। सुबह 10 बजे लैंड करुँगी। रवि से बात हुई, लेकिन थर्सडे वो बिजी है। तू आएगी लेने।
- हाँ। लेकिन फिर मेरा लेख्र है 11 बजे। छुट्टी नहीं लूंगी।
- ठीक,कोई बात नहीं। सुन क्या कर रही है अभी।
- पिछले तीन घंटे से अपने मन के गाने सुन रही हूँ। किसी ने कुछ नहीं कहा, किसी ने कुछ नहीं माँगा, किसी ने एक बार भी नहीं पुकारा। किसी को मेरी चॉइस से कोई तकलीफ नहीं हुई। उसने उत्तर दिया।
- सही है। चल थर्सडे बात करते हैं। मुसकुराते हुए कनिका ने फोन रख दिया।
           पहली रात उसने कुछ नहीं पकाया। एक अकेली के लिए फिर बनाती भी क्या। नीचे उतरकर अप्पार्टमेनट के सामने वाली दूकान से एक ब्रेड और बटर की टिक्की ले आयी थी। चाय के साथ वही खाया और सो गयी। सोने से पहले उसने जब आखरी बार देखा तो पति की मिस्ड कॉल का काउंट 12 था। उसने सिर्फ एक मैसेज किया - ठीक हूँ। आल सेटर्ल्ड। चिंता मत करो। मैं फोन करुँगी। जब भी करुँगी। मैसेज करके फोन स्विच ऑफ किया और सो गयी।
कनिका ने कैब में बैठते ही कहा - सुन तू कॉलेज से कब फ्री होगी?
- मैंने लेख्र कैंसिल कर दिया आज। छुट्टी ले ली। कहाँ चलें? शालू ने पूछा
- घर, या एक काम करते हैं बे्रकफास्ट करते हुए चलते हैं। कनिका ने कहकर ड्राइवर से कहा - एक काम करो सी.पी छोड़ दो और फिर शालू से पूछा किया कैसे?
- तू पहली है जो क्यों की जगह कैसे पूछ रही है।
- क्यों का क्या है और जो भी कारण हो उसका करना क्या है। लेकिन कैसे किया। मैं पिछले 5 साल से कैसे करूँ से जूझ रही हूँ मुझसे तो नहीं हुआ। इसलिए मेरी लिए कैसे ज्यादा बड़ा सवाल है। 
           शालू और कनिका कॉलेज के दिनों की दोस्त थीं। जब कॉलेज में थीं तो करीब थीं फिर कॉलेज के बाद काफी अरसे तक कांटेक्ट नहीं रहा और फिर फेसबुक ने अचानक दोबारा मिला दिया। दोबारा जब कांटेक्ट हुआ तब तक 15 सालों का फासला पड़ गया था। 15 साल के अरसे ने और चाहे कुछ भी बदला हो दोनों के बीच की मित्रता नहीं बदली थी।
           शालू जब 15 साल बाद कनिका से मिली थी तो उसने पहला सवाल किया था - रवि कैसा है ? कनिका और रवि सालों से साथ - साथ थे। इतने सालों से साथ - साथ कि जब उनकी शादी हुई तो लोगों को छोड़ो उन दोनों को भी शादी को लेकर कोई उत्साह नहीं था। कनिका ने शालू से कहा था - क्या शादी। वैसे कौन सी शादी नहीं हो रखी। हर वीकेंड तो इसके ही घर होती हूँ। आंटी को तो वीकेंड पर ब्रेकफास्ट के लिए मेरा इंतज़ार होता है। और जब शालू ने बोला कि अब तो आंटी कहना छोड़ दे तो कनिका ने हंसकर कहा ठीक है - माँ सही।
          कनिका ने रवि कैसा है? के उत्तर में कहा था - छोड़ न उसका, वो ठीक है। तेरे शहर दिल्ली में ही है आजकल। पिछले कई सालों से शहर - शहर घूम रहा है। उसकी जॉब ही ऐसी है। और मेरी जॉब ने मुझे यहाँ रोक रखा है।
- आता रहता है तेरे पास।
- हाँ! आता है कभी - कभी। 2 - 4 महीने में एक आध बार। ऐसा ही चल रहा है। कभी मैं भी चली जाती हूँ।
- तू दिल्ली ही क्यों नहीं आ जाती।
- नहीं होगा शालू। मुश्किल है। शुरू - शुरू में कोशिश की थी। एक नहीं दो - दो शहर बदले थे उसके साथ लेकिन अब लगता है उसको अलग रहना ही ज्यादा अच्छा लगता है। ठीक है न, उसका दिल्ली में चल रहा है। मैं भी अब डिसटर्ब नहीं करती। कनिका की बात सुनकर शालू ने फिर कोई सवाल नहीं किया। आज फिर मिले तो औपचारिकता निभाते हुए उसने फिर रवि का हाल चाल पूछा। चलता रहता है उसका। आजकल गिल्ट में है।
- किस बात का गिल्ट।
           हम दोनों के साथ चलता रहता है शालू। कभी मुझे लगता है क्या बिना मतलब की भसड़ डाल रक्खी है लाइफ में और कभी उसको लगने लगता है कि वो अपनी फैमली को निग्लेक्ट रहा है। कनिका ने कहा -आसान नहीं है समझ पाना।
            शालू ने महसूस किया कि रवि का जिक्र आते ही कनिका थोड़ी असामान्य हो गयी थी। सामान्य से क्षण भर अधिक चुप्पी रही दोनों के बीच। इतने भर में ही शालू ने भांप लिया था कि रवि को लेकर कनिका वैसी नहीं रही जैसी कॉलेज के दिनों में थी। मित्रता के भाव से प्रेरित ही होगा कि उसने पूछ लिया - सब ठीक है न कनिका ? 
लम्बे समय से जो चल रहा हो, उन स्थितियों के साथ खुद को घसीटते रहो तो सब कुछ ठीक ही लगने लगता है शालू। यह एहसास नहीं रहता कि इससे अलग भी कुछ हो सकता है, किया जा सकता है। इसलिए तेरे सवाल का जवाब तो यही है कि सब कुछ ठीक है। क्योंकि अगर मैंने कहा कि ठीक नहीं तो फिर क्या ठीक नहीं,यह बताना होगा और क्या ठीक नहीं,यह नहीं बता सकती। जानती ही नहीं कि क्या ठीक नहीं। तू बता तेरे से पूछूँ कि क्या सब ठीक है तो तू क्या यह कहेगी कि नहीं कुछ ठीक नहीं। फिर अगला निवाला मुंह में डालने से पहले रूककर उसने अपनी बात पूरी की। रवि के बारे में क्या बात करूँ  4- 6 महीने में एक वीकेंड पर आता है। हफ्ते में 3 - 4 बार फोन पर बात हो जाती है। ऐसी मुलाकातों और बातों में जितना भर जरूरी है उतना भर ही निपटता है। और रिश्तों की गर्माहट तो जरूरी के निपटने के बाद के पलों, बाद की बातों में होती है। वो सब नहीं है बहुत सालों से। इसलिए मुझे नहीं पता कि वो कैसा है। अब और क्या कहूं इसके सिवा की ठीक ही होगा?
          माहौल झटके  में ही भारी हो गया। दोनों ने खाना खत्म करके एक कप कॉफी आर्डर की। शालू ने कनिका की बात का एक सिरा पकड़कर उसमें अपना सिरा बांधते हुए कहा - कॉलेज में कभी सोचा था कि ऐसे हो जायेंगे?
- कैसे। शालू ने कॉफी का एक सिप खींचते हुए पूछा। वो कॉफी ऐसे पीती थी जैसे सिगरेट का छोटा कश खींच रही हो। जैसे हैं आजकल। तू सोच कनु यह तमाशा जब शुरू हुआ था तो कैसे रंगबिरंगे कपड़े पहनकर स्टेज पर पहुंची थी हम। क्या पता था कि कुछ अदृश्य डोरियाँ हैं जो हमको चलाती रहेंगी। 
           और सच मान शालू कभी - कभी तो लगता है कि अपनी आवाज ही नहीं है कोई और है जो हमारे अंदर आवाजें भरता जा रहा है और हम उगलते जा रहे हैं। मैं तो किसी किसी दिन शाम को खुद को साइड पर खड़ी करके खुद को देखती हूँ। तो पूरा जीवन एक कठपुतली का जीवन लगता है। क्यों नाचे और किसके लिए नाचे क्या पता और पूरे शो के दौरान यही लगता रहा कि परफेक्ट शो होना चाहिए। कनिका ने शालू की बात को पूरा करते हुए कहा।
           शालू परफेक्ट शो वाली बात पर मुस्कुरा दी। कनिका ने उसकी तरफ देखा तो धीरे से गाली देते हुए कहा - बड़ी बईमान है जिंदगी यार। और सबको परफेक्ट शो देना है, इस एक जिंदगी में किसका शो? कौन देख रहा ? किसके पास टाईम है मेरा शो देखने का ? लेकिन लगे हैं परफेक्ट शो प्रस्तुत करने की लिए। मराओ फिर ...
सुनकर शालू ने हँसते हुए कि आराम से आराम से। इतनी भावुक मत हो मेरी जान ? शालू ने पर्स से अपना डेबिड कार्ड निकाला और वेटर को बिल ले आने का इशारा किया। रवि को पता है तू आयी है, दिल्ली या उसको बताया ही नहीं।
- बताया तो है। लेकिन आज तो बिजी है। शायद वीकेंड पर उसके पास जाऊंगी। कनिका ने कहा।
शालू ने कैब में बैठकर ड्राइवर को ओ.टी.पी. दिया और दोनों कैब में बैठकर घर की ओर चल पड़ीं। सुबह जल्दी उठी होगी? शालू ने पूछा - हां 3 बजे की आसपास। फ्लाइट 5.30 की थी।
- तू घर चलकर थोड़ा आराम कर ले। हम कनिका गाड़ी में ही शीशे पर सर रखकर सो गयी।
घर पहुँचते - पहुँचते दोपहर का 1 बज गया था। कनिका जब सोकर उठी तो साढ़े पांच बज रहे थे। शालू ने पूछा - पहले फ्रेश होगी या चाय पीयेगी।
- कॉफ़ी, चाय नहीं पीती अब। टेस्ट बदल लिया है मैंने। तू बना। मैं फ्रेश होकर आती हूँ। कनिका ने अपने बालों का बन बनाते हुए कहा - शाम का क्या प्रोग्राम है?
- अभी तो कुछ नहीं। तू बता, कहीं चलें बाहर।
- देखते हैं, तू कॉफ़ी बना, फिर बात करते हैं ? कहते हुए कनिका फे्रश होने चली और जाते - जाते बोली - मौसम कैसा है।
- बाहर गर्मी है। चहलकदमी लायक नहीं है। लेकिन किसी मॉल में चल सकते हैं। शालू ने कॉफी मेकर का स्विच ऑन किया। 
- घर फर्निश्ड ही लिया या कुछ सामन लायी है अपने साथ?
- नहीं कुछ लायी नहीं। फर्निश्ड है। सब मालिक मकान का है।
- अच्छा है। ज्यादा झंझट नहीं है। चल आती हूँ। 10 मिनट में। कनिका ने बाथरूम का दरवाजा बंद करते हुए कहा
अभी कनिका फे्रश होकर बाहर आयी ही थी कि डोरबेल बजी। शालू किचन में थी इसलिए कनिका ने उठकर दरवाजा खोला - जी?
- प्रोफेसर साहिबा हैं?
- जी हैं, आप कौन ? कनिका ने पूछा - कनु दिब्येंदु है क्या? अंदर से शालू की आवाज आयी और दरवाजे पर खड़े व्यक्ति ने कहा - हां, दिब्येंदु ही हूँ। धीमे से मुस्कुराते हुए उसने पूछा - अंदर आ जाऊं।
- हाँ वही हैं। कनिका ने फिर दरवाजे से हटते हुए कहा - आइये।
- अपना परिचय मैं खुद दूँ, या मेरा परिचय आपको मिल चुका है? दिब्येंदु मुस्कुराते हुए बैठक में दाखिल हुआ और पीछे मुड़कर कनिका को अपना परिचय दिया - पी एस के साथ उनके कॉलेज में हिंदी पढ़ाता हूँ। 
- पी एस कौन ? कनिका ने अपना सवाल पूरा भी नहीं किया था कि शालू ने अंदर से कहा - कनु मुझे प्रोफेसर साहिबा कहकर बुलाते हैं। पी एस.प्रोफेसर साहिबा 
- आइये बैठिये। जब तक पी एस चाय बनातीं हैं, तब तक हम औपचारिकताएं पूरी कर लेते हैं। कुर्सी पर बैठते हुए दिब्येंदु ने कहा कनिका को दिब्येंदु कुछ अल्हड़ लगा लेकिन उसकी शख्शियत हलकी नहीं थी। हिंदी का प्रोफेसर सुनकर जैसी छवि बनती है - झोला उठाये कुर्ता पहने हल्की दाढ़ी बढ़ाये। उससे अलग था दिब्येंदु। उसकी आँखें बोलती थीं और उसकी आवाज़ खासी गढ़ी थी। उसकी हर बात में कविता का मजा था जैसे हर शब्द उसने वर्षों की मेहनत से माँझ कर जुबान पर तरतीब से रखा हुआ हो। न एक शब्द ज्यादा और न एक शब्द कम।
जितनी देर में शालू चाय के साथ बैठक में आयी, उतनी देर में दिब्येंदु और कनिका ने संवाद की आरंभिक औपचारिकताएं पूरी कर ली थीं। शालू को मण्डली में शामिल होने के लिए बस इतना भर जोड़ना पड़ा -दिब्येंदु हौसला नहीं देता तो शायद मैं यह कदम नहीं उठा पाती। इसके बाद बातों ने एक मोड़ काट कर दूसरा ही रास्ता पकड़ लिया।
- जितने शोर में थीं, कहाँ इनको अपना मौन सुनाई देना था। आदमी 360 डिग्री शोर से घिरा हो तो फिर क्या करें। मैंने कहा आप मौन सुनने को घर से निकल आईये। गलत कहा ?
कनिका पर दिब्येंदु की बातों का रंग चढ़ने लगा था।
- हम सबने यही करना है। आखिर में। सब निकल आएंगे शोर से मौन में और जो नहीं निकल पाएंगे,जिस भी पी एस को दिब्येंदु नहीं मिलेगा। वो धीरे - धीरे चिड़चिड़ा हो जायेगा। पहले हम चिड़चिड़े होने लगते हैं और फिर यकायक बूढ़े हो जाते हैं। क्यों मानती हो?
- हर सवाल का जवाब देने की मत सोचना कनु। इस आदमी की आदत है हर बात के आखिर में सवाल छोड़ने की।
शालू ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा - मौन बूढ़ा नहीं करता।
- एकाकीपन करता है, मौन नहीं करता। पी एस अब मौन में हैं एकाकी नहीं। और फिर मौन से शोर में लौटना तो इनके अपने हाथ में है। जब चाहें लौट जाएँ।
- इतना आसान होगा लौटना ? जब चाहें लौट जाएँ। वक्त ठहरा तो नहीं रहेगा। अब जब लौटेंगी तो सब कुछ वहीं तो नहीं होगा, जहाँ छोड़ कर आयी थीं। और फिर जब लौटना ही है तो क्या फायदा।
- फायदा सिर्फ इतना कि जब तक मौन में हैं अपनी मर्जी से जीवन गवायाँ, जब शोर में हैं तो अपनी मर्जी नहीं थी।
- आखिर में तो सब गंवाना ही है। नहीं क्या?
- सब गवां देना है, सही में।
- क्यों तुमने सुना नहीं क्या लेकर आये हो क्या लेकर जाओगे। और फिर मुस्कुरा दिए - हम सब मक्कार हैं दोस्त। तुम मुझको और मैं तुमको बार - बार यह यकीन दिलाएंगे कि हम खर्च नहीं हो रहे बल्कि जोड़ रहे हैं। और दूसरे के इस जोड़ से परेशान होकर फिर खुद को और खर्च करेंगे लेकिन कहते यही रहेंगे कि जोड़ रहे हैं। फिर इतना खर्च हो जायेंगे कि लगने लगेगा क्या पाया? तो जब आखिर में खर्च हो जाने का रोना ही है तो अभी ही क्यों सा संभल जाएँ? क्या कहती हो?
शाम देर तक बातें होती रहीं।
- कार्तिक का साथ होना मेरे अकेलेपन का इलाज़ तो नहीं। किसी तर्क के तर्क पर शालू ने कहा
- क्यों ?
- क्योंकि हम कभी एक नहीं होते। हम हमेशा दो होते हैं। हमारा एक हम साझा करते हैं और हमारा दूसरा हम दबा लेते हैं। पी एस का कहना है कि कार्तिक के होने पर भी उसका दूसरा अकेला है। कहते हुए दिब्येंदु ने जॉन एलिया को कोट किया।
- तुम तो मेरे साथ रहोगी, मैं तनहा रह जाऊँगा।
- तो यह तो हमारी गलती हुई। किसने रोका है कि दूसरा दबाये रखते हो?
- किसी ने नहीं। लेकिन हम एक नहीं दो हैं यह एहसास कभी भी दोनों को एक साथ नहीं होने देगा। अब पी एस की ही बात देख लो। उनको एहसास हो गया कि उनमें कोई एक और भी है लेकिन अभी कार्तिक को नहीं हुआ। जब उसको होगा तब तक हो सकता है, मामला ही बिगड़ गया हो। और अभी पी एस कार्तिक को समझाने की कोशिश भी करेगी तो कार्तिक को समझ आने वाला नहीं। दिब्येंदु ने जवाब दिया और यकायक खड़ा हो गया - चलता हूँ। अब भी नहीं निकला तो घरवाले कहेंगे रात भर कहाँ थे। रात के ढलने से पहले अगर घर पहुँच जाओ तो बहुत से लांछनों से बच जाते हैं। और फिर मुस्कुरा दिया।
दिब्येंदु को रुखसत कर शालू ने दरवाजा बंद किया और टेबल पर पड़े खाली गिलास उठाकर कीचन की तरफ ले जाते हुए कहा - कॉफी पीयेगी ?
- हाँ, बना ले। तुझे सोने वोने की जल्दी तो नहीं है न ? कनिका ने पूछा और फिर साथ ही बोली - यह इंटरेस्टिंग आदमी है शालू। 
- किस्सा क्या है यार ?
- किस्सा तो इतना सा है कि मेरी पसंद बदल रही है। कनिका को इतने बेबाक जवाब ने अचंभित कर दिया। 
- पसंद बदल रही है? मतलब ?
शालू ने बिना किसी हिचकिचाहट के पूछा - पसंद बदलनी गलत है क्या? नहीं बदल सकती?
- और कार्तिक ? कनिका ने सहसा पूछ लिया।
- कार्तिक, क्या, कार्तिक की तो इसमें कोई बात ही नहीं है। बात तो मेरी पसंद बदलने की है न। नहीं हुआ तेरे साथ कभी। 
          इस जवाब के बाद दोनों की बातें पेंडुलम के एक छोर जहाँ नैतिकता शील और पुण्यशीलता जैसे तर्क होते हैं से झूलकर दूसरे छोर स्वच्छंदता, स्वावलम्बन सोच और जीने की आजादी जैसी शह होती हैं आती जाती रहीं।
- रवि के साथ तेरा सम्बन्ध भी तो बदला है।
- बदला तो है शालू। बदला तो है। लेकिन हम अलग नहीं हुए।
- मैं भी नहीं। सिर्फ सबाटिकल पर हूँ। तेरे लिए सबाटिकल आसान था। रवि वैसे ही दूसरे शहर में रहता है। मेरे लिए कोई चारा नहीं था। सबाटिकल ख़तम होगा वापस चली जाउंगी।
- और दिब्येदु।
- वो भी वापस चला जायेगे। शायद।
- और इस बीच जो सब बिगड़ जायेगा उसका क्या?
- तेरे और रवि के बीच जो बिगड़ गया उसका क्या? और तुमने तो कभी सबाटिकल अन्नोउंस भी नहीं किया। फिर भी रिश्ता बदल गया न? रिश्ते बदलने से पहले अनाउंसमेंट नहीं मांगते कनिका। बस बदल जाते हैं। फिर हम रिश्तों को निभाने का तरीका भी बदलते जाते हैं। अब देख पहले कार्तिक की टूर वाली नौकरी नहीं थी, फिर महीने में 5 - 7 दिन टूर पर रहने लगा। किर 10 दिन। जब टूर शुरू हुए थे तो हम हर शाम लम्बी लम्बी बात करते थे और हर बात के अंत में दोनों एक दूसरे से कहते थे कि बस यह टूर ख़तम हो जल्दी से जल्दी। फिर एडजस्ट हो गया। अब वो 10 -10 दिन बैंगलोर रहता है और कभी - कभी तो एक भी दिन बात नहीं होती। हो गया न सब एडजस्ट, हो जायेगा। कुछ नहीं बिगड़ेगा।
           कनिका चुप रही फिर कुछ देर बाद किसी कड़ी को पकड़कर फिर बातें चल निकलीं। बातों का उतना ही वजन था जितना समय भरने के लिए बातों का होता है।
फिर कुछ देर बाद बातें ऐसी हो गयीं कि शालू कुछ कहती तो कनिका अपने दिमाग में जवाब तैयार करती रहती और कनिका जवाब देती तो शालू प्रतिउत्तर तैयार कर रही होती। कोई किसी की सुन नहीं रहा होता। फिर जैसा अमूमन ऐसी स्थिति में होता है दोनों आखिरकार थक गयीं और तय किया कि अब सो जाना चाहिए।
शालू की नींद कच्ची थी। हलकी सी आहट से उसकी नींद उचट जाती थी। कनिका के फोन पर एक के बाद एक मैसेज गिर रहे थे और हर मैसेज के साथ एक तीखी आवाज हो रही थी। शालू ने लेटे लेटे ही उसका मोबाइल साइलेंट पर करने को उठाया। कुल 30 मैसेज। और आखिरी मैसेज के पहले 5 - 7 शब्द जो सक्रीन पर दिख रहे थे। फिर तुमने कुछ कहा तो नहीं। नंबर पहचाना था। कार्तिक का। शालू ने फोन पर ऊँगली फेरी अनलॉक करने के लिए। फोन पर कोई पासकोड नहीं था। फोन खुल गया। कार्तिक के मैसेज थे। कनिका के फोन पर।
- शायद। 
- सो गयीं क्या? जवाब क्यों नहीं दे रही ?
- अब जो दलेही में हो तो क्या रवि से मिलोगी।
          कार्तिक के मैसेज पढ़े। जब समझ नहीं आया तो फिर ऊपर स्क्रॉल करके सिलसिलेवार चैट को पढ़ा।
-दिब्येंदु है। उसके साथ कॉलेज में।
- वो हिंदी प्रोफेसर।
- हम।
- वो क्या कर रहा था वहां।
         दोनों में बातचीत है। इंटरेसि्ंटग कैरेक्टर है दिब्येंदु। तुम यूँ ही परेशां थे कार्तिक। हमारे बारे में शालू को कुछ नहीं पता।
- लेकिन तुमने कहा उसने बैंगलोर के  टूर का जिक्र किया था।
- मैंने कुरेदा था उसे। जानने को कि कहीं उसको कुछ पता तो नहीं। लेकिन मुझे नहीं लगता उसे पता है। 
- और क्या कहा उसने?
- वही जो हम हर बार कहते हैं, जब मिलते हैं। यही की चालीस के आसपास क्या सबकी पसंद बदल जाती है।
- उसने यह कहा?
- ऐसा ही कुछ। तुम्हें उससे कभी कोई शिकायत नहीं रही। मुझे रवि से शिकायत नहीं रही। उसको तुमसे शिकायत नहीं रही। लेकिन हम सब अपनी अपनी वजह से एक दूसरे से दूर तो होते ही गए। और उसी पल में किसी एक के पास भी।
- और ?
- वो सबाटिकल पर है। वापस आ जाएगी।
- शायद।
- सो गयीं क्या ?
- जवाब क्यों नहीं दे रही?
- अब जो दलेही में हो तो क्या रवि से मिलोगी
           शालू ने चुपचाप फोन साइलेंट पर कर दिया और कमरे से बाहर निकलकर बालकनी में आकर बैठ गयीं।
ठंडी हवा सबाहटिकल की दूसरी सुबह उसको अच्छी लग रही थी।

पता : 277 278 सेक्टर 3 रोहिणी दिल्ली - 110085
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शिक्षा : बी एस सी (ब) दिल्ली युनिवर्सिटी

संप्रतिः director wyzmindz solutions pvt ltd

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