डॉ सरला सिंह '' स्निग्धा ''
जीवन उपवन यह झूम उठे
भरदे सबमें नवजीवन।
आशाओं के फूल खिलें हों
जीवन बन जाये मधुवन।
मन मयूर नाचे जी भरकर
खुशियां खिलखिल झरनों सी।
रोज तराने नये नये फिर
नेह झरे नित नयनों सी
कान्हा की वंशी धुन छाये
खिल जाये मन का उपवन।
दुनिया में सब दिल मिल जायें
कटुता सारी हो बंजर ।
सच्चाई सबके मन उपजे
हाथ नहीं किसी के खंजर।
भाईचारा की सुगंध हो
मिल जायें सारा जनमन।
रिमझिम बारिश की बूंदों सी
वाणी से अमरित बरसे।
धुल जाये सारा ही कलुषित
मन में फिर खुशियां सरसें।
कोरे पृष्ठों पर कोरी सी
नित्य पढ़े कविता ये मन।
डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली
9650407240
sarlasingh55@gmail.com
जीवन उपवन यह झूम उठे
भरदे सबमें नवजीवन।
आशाओं के फूल खिलें हों
जीवन बन जाये मधुवन।
मन मयूर नाचे जी भरकर
खुशियां खिलखिल झरनों सी।
रोज तराने नये नये फिर
नेह झरे नित नयनों सी
कान्हा की वंशी धुन छाये
खिल जाये मन का उपवन।
दुनिया में सब दिल मिल जायें
कटुता सारी हो बंजर ।
सच्चाई सबके मन उपजे
हाथ नहीं किसी के खंजर।
भाईचारा की सुगंध हो
मिल जायें सारा जनमन।
रिमझिम बारिश की बूंदों सी
वाणी से अमरित बरसे।
धुल जाये सारा ही कलुषित
मन में फिर खुशियां सरसें।
कोरे पृष्ठों पर कोरी सी
नित्य पढ़े कविता ये मन।
डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली
9650407240
sarlasingh55@gmail.com
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