राज़ नवादवी
धीरे - धीरे ही सही, गाँव नगर बनता है,
जिस जगह खेत था, खलिहान था, घर बनता है।
लोग मर जाते हैं भूखे ही,ख़बर है किसको,
जब कि इक रोटी चुराना भी ख़बर बनता है।
हौसला देखना है सामने जब बिल्ली हो,
वरना पीछे में तो चूहा भी निडर बनता है।
आजकल वो ही सफल होता है सच पूछो तो,
जिसको कुछ भी नहीं आता है मगर बनता है।
हम तो जन्नत की ख़बर रखते हैं हमसे पूछो,
इश्क में आदमी मरकर भी अमर बनता है।
ईंट पत्थर से मकाँ हम भी बना लें पर राज़
रहने वालों की मुहब्बत से ही घर बनता है।
राज़ नवादवी
धीरे - धीरे ही सही, गाँव नगर बनता है,
जिस जगह खेत था, खलिहान था, घर बनता है।
लोग मर जाते हैं भूखे ही,ख़बर है किसको,
जब कि इक रोटी चुराना भी ख़बर बनता है।
हौसला देखना है सामने जब बिल्ली हो,
वरना पीछे में तो चूहा भी निडर बनता है।
आजकल वो ही सफल होता है सच पूछो तो,
जिसको कुछ भी नहीं आता है मगर बनता है।
हम तो जन्नत की ख़बर रखते हैं हमसे पूछो,
इश्क में आदमी मरकर भी अमर बनता है।
ईंट पत्थर से मकाँ हम भी बना लें पर राज़
रहने वालों की मुहब्बत से ही घर बनता है।
राज़ नवादवी
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