इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

ग़जब के लोग हैं पैसों की लाचारी दिखाते हैं

सत्येन्द्र गोविन्द
 
 

ग़जब के लोग हैं पैसों की लाचारी दिखाते हैं
टिकट माँगो अगर तो कार्ड सरकारी दिखाते हैं
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डुबोता है उन्हीं की कश्तियाँ अक्सर समंदर भी
ज़रूरत से ज़ियादा जो समझदारी दिखाते हैं
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हरेक वो काम मुमकिन है जो शिद्दत से किया जाए
बहानेबाज़ हैं जो लोग दुश्वारी दिखाते हैं
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जिन्हें अच्छा लगे रोना पकड़ना पाँव घिघियाना
हमें ऐसे भी अब कुछ लोग सरदारी दिखाते हैं
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हितैषी हैं वहीं बेह्तर मिलेंगे तो लगेगा यूँ
फ़रेबी लोग भी अद्भुत अदाकारी दिखाते हैं
                         
-सत्येन्द्र गोविन्द
mob : 6200581924

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