दीपिका गहलोत ( मुस्कान )
कभी - कभी कुछ रिश्ते यूं ही बन जाते है जो जिंदगी भर निभाने का मन करता है। यह उन दिनों की बात है जब कॉलेज के बाद मैंने नयी - नयी जॉब शुरू की थी। रोज़ सुबह ऑफिस जाने के लिए मुझे बस का इंतज़ार करना पड़ता था। उस इंतज़ार के दौरान छाया मे खड़े होने कि लिए मैं चाय की स्टाल के पास खड़ी हो जाया करती थी । वो चाय की स्टॉल एक आंटी चलाती थी। मेरी ये दिनचर्या वो आंटी भी देख रही थी । रोज़ की तरह मै फिर से चाय की स्टाल के पास खड़ी हो गयी, तभी अचानक एक आवाज़ आयी " कुर्सी पे बैठ जाओ बेटी " मैंने पलट के देखा तो वो वही चाय वाली आंटी थी। मैंने मुस्कुरा के देखा और मैं भी बैठ गयी।. ये सिलसिला एक - डेढ़ साल यूं ही चलता रहा और हमारी जान पहचान सिर्फ एक मुस्कराहट के लेन - देन से बातचीत में बदल गयी।
फिर कुछ साल बाद जॉब और रहने की जगह दोनों ही बदल गए । कुछ साल बाद उसी जगह से गुजरते वक़्त फिर वही चाय कि स्टॉल को देखकर मेरे पैर अपने आप थम गए। अभी भी वो आंटी वही चाय की स्टॉल चला रही थी। मैं, मेरे पति के साथ उनसे मिलने चल पड़ी। मेरे मन की हिचक उनके द्वारा ना पहचाने जाने की उस वक़्त दूर हो गयी, जब उन्होंने दौड़ कर खुशी से मुझे गले लगा लिया।.
कुछ देर बात करके चाय पीने के बाद हम निकलने लगे और मेरे पति ने उन्हें चाय के पैसे देने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। बदले में उनका जवाब सुन कर मेरी आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए - " ये तो मेरी बेटी है, और बेटी से कोई चाय के पैसे लेता हैं " . उल्टा उन्होंने हम दोनों को शादी के बाद पहली बार मिलने के अवसर पर नेक दिया।. उनकी इस बात ने और रिश्ते निभाने के
अंदाज़ ने हम दोनों का दिल छू लिया . .।
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