इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

सोमवार, 20 अप्रैल 2020

जैसी करनी वैसी भरनी

          शादी की सुहागसेज पर बैठी एक स्त्री का पति जब भोजन का थाल लेकर अंदर आया तो पूरा कमरा उस स्वादिष्ट भोजन की खुशबू से भर गया रोमांचित उस स्त्री ने अपने पति से निवेदन किया कि मांजी को भी यहीं बुला लेते तो हम तीनों साथ बैठकर भोजन करते। पति ने कहा छोड़ो उन्हें वो खाकर सो गई होंगी, आओ हम साथ में भोजन करते है। प्यार से उस स्त्री ने पुनः अपने पति से कहा कि नहीं मैंने उन्हें खाते हुए नहीं देखा है। तो पति ने जवाब दिया कि क्यों तुम जिद कर रही हो शादी के कार्यों से थक गयी होंगी इसलिए सो गई होंगी, नींद टूटेगी तो खुद भोजन कर लेंगी। तुम आओ, हम प्यार से खाना खाते हैं। उस स्त्री ने तुरंत तलाक लेने का फैसला कर लिया और तलाक लेकर उसने दूसरी शादी कर ली और इधर उसके पहले पति ने भी दूसरी शादी कर ली। दोनों अलग - अलग सुखी घर गृहस्थी बसा कर खुशी - खुशी रहने लगे।
          इधर उस स्त्री के दो बच्चे हुए जो बहुत ही सुशील और आज्ञाकारी थे। जब वह स्त्री 60 वर्ष की हुई तो वह बेटों को बोली मैं चारो धाम की यात्रा करना चाहती हूँ ताकि तुम्हारे सुखमय जीवन के लिए प्रार्थना कर सकूं। बेटे तुरंत अपनी माँ को लेकर चारों धाम की यात्रा पर निकल गये। एक जगह तीनों माँ बेटे भोजन के लिए रुके और बेटे भोजन परोस कर मां से खाने की विनती करने लगे। उसी समय उस स्त्री की नजर सामने एक फटेहाल, भूखे और गंदे से एक वृद्ध पुरुष पर पड़ी जो इस स्त्री के भोजन और बेटों की तरफ  बहुत ही कातर नजर से देख रहा था। उस स्त्री को उस पर दया आ गईं और बेटों को बोली - जाओ पहले उस वृद्ध को नहलाओ और उसे वस्त्र दो फिर हम सब मिलकर भोजन करेंगे। बेटे जब उस वृद्ध को नहलाकर कपड़े पहनाकर उसे उस स्त्री के सामने लाये तो वह स्त्री आश्चर्यचकित रह गयी, वह वृद्ध वही था, जिससे उसने शादी की सुहागरात को ही तलाक ले लिया था। उसने उससे पूछा कि क्या हो गया जो तुम्हारी हालत इतनी दयनीय हो गई ? तो उस वृद्ध ने नजर झुका के कहा कि सब कुछ होते ही मेरे बच्चे मुझे भोजन नहीं देते थे, मेरा तिरस्कार करते थे, मुझे घर से बाहर निकाल दिया। उस स्त्री ने उस वृद्ध से कहा कि इस बात का अंदाजा तो मुझे तुम्हारे साथ सुहागरात को ही लग गया था, जब तुमने पहले अपनी बूढ़ी माँ को भोजन कराने के बजाय उस स्वादिष्ट भोजन की थाल लेकर मेरे कमरे में आ गए और मेरे बार - बार कहने के बावजूद भी आप ने अपनी माँ का तिरस्कार किया। उसी का फल आज आप भोग रहे हैं।
           जैसा व्यवहार हम अपने बुजुर्गों के साथ करेंगे उसी को देख - देख कर हमारे बच्चों में भी यह गुण आता है कि शायद यही परंपरा होती है। सदैव माँ बाप की सेवा ही हमारा दायित्व बनता है। जिस घर में माँ - बाप हँसते है, वहीं प्रभु बसते है।

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