इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

बढ़ोना



भोलाराम सिन्हा 

      छत्तीसगढ़ की अधिकांश संस्कृति एवं परंपरा कृषि संस्कृति पर आधारित है धान का कटोरा के नाम से जग प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ में धान को अन्नपूर्णा के रूप में प्रतिष्ठित कर पग-पग पर पूजन वंदन किया जाता। सर्वप्रथम धान की बुवाई के पूर्व बैशाख माह में अक्ती पर्व के दिन दोना में  . धान भरकर ग्राम देवता ठाकुर दीया में चढ़ाया जाता है ।बैगा द्वारा पूजा करने के बाद दोना  के धान को किसान अपने खेत में ले जाता है। और पूजन वंदन करके उस दोने के धान को बीज के रूप में बोकर धान बुवाई का मुहूर्त कर देता है बुवाई के बाद समय आने पर वर्षा होती है धान जगता  है और पौधे बढ़ते हैं ।।इस तरह धान का पेड़ बढ़ जाने का गर्भाशय की स्थिति में आ जाने पर गर्व पूजा करने की प्रथा है।
      गर्भ पूजा के इस कार्य को भी गांव के बैगा के साथ किसान लोग सामूहिक रूप से करते हैं। अधिकांश गांव में भादो माह में मनाया जाने वाला पोला पर्व के पूर्व रात्रि में खेतो के देवी देवताओं में धूप दीप जलाकर गर्भ पूजा किया जाता है।
गर्भ पूजा के कुछ दिनों बाद धान के पौधों में बालियां निकल आती है फिर बाल बांधने की पूजा प्रक्रिया पूरी की जाती है।
इस कार्य को भी गांव के पुजारी बैगा द्वारा ही किया जाता है सबसे पहले गांव के सभी देवी देवताओं में धान की बाली चढ़ाई जाती है उसके बाद बैगा ही गांव के सभी किसान भाइयों के घरों में जाकर धान की एक एक दो दो बालियां बांधते हैं।
इस तरह खेतों के धान पक कर जब काटने लायक तैयार हो जाता है तब हूम धूप जलाकर खड़ी फसल की पूजा करके कटाई प्रारंभ करते हैं।
      इस प्रकार पूरे फसल की कटाई की अंतिम दिन बढ़ो ना किया जाता है। बढ़ोना का तात्पर्य बढ़ोतरी करना है इस दिन धान की कटाई करने वाले सभी महिला पुरुष मजदूर प्रतिदिन की भांति समय पर खेत पहुंच जाते हैं इधर खेत मालिक किसान भी हूम, धूप गुलाल अगरबत्ती नारियल आदि पूजा सामग्री और प्रसाद के लिए मिठाई मुर्रा जो भी बन पड़ता है लेकर अपने परिवार के साथ खेत पहुंचता है खेत के एक कोने में धान की खड़ी फसल रहता है जहां खेत मालिक किसान धूप दीप जलाकर वह नारियल तोड़कर पूजा करता है फिर सभी मजदूर और किसान एक दूसरे के माथे पर गुलाल का टीका लगाकर यथा योग्य अभिवादन करते हैं किसान अपने सभी मजदूरों को धान फसल का एक-एक बीड़ा
       इनाम के रूप में देता है, तथा प्रसाद का वितरण किया जाता है और फिर बढ़ो ना बाढ़गे कहते हुए सभी जयकारा लगाते हैं।
इस कड़ी में धान ढुलाई के कार्यों में लगे बैलगाड़ी में फंदे हुए बैलों की भी पूजा की जाती है।
इसके बाद किसान परिवार और सभी मजदूर बाजा गाजा के साथ आतिशबाजी करते हुए घर आते हैं।
       इस प्रकार बढ़ोना बढ़ोने की यह परंपरा अन्नपूर्णा माता का सम्मान और किसानों की समृद्धि के लिए किया जाने वाला प्रथा का प्रतीक है।



भोलाराम सिन्हा 
डाभा, मगरलोड़ 
जिला, धमतरी
मो०न9165640803

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