(1)
बोझिल अहसासों के आगे, गहरा चुम्बन सूख गया
मुरझाई मुस्कान दिखी तो, प्यारा दरपन सूख गया
नाजुक कंधे बोझ उठायें, धोयें ढाबे पर बर्तन
बाप मरा तो दुनिया बदली,भोला बचपन सूख गया
नैहर छूटा, सखियां बिछड़ीं,इक कमरे की दुनिया अब
पीला जिस्म, धंसी हैं आंखें, गद्दर यौवन सूख गया
इन्सानों के घर में जब से,नागफनी के पांव पड़े
सहमा - सहमा तुलसी पौधा, सारा गुलशन सूख गया
कागज के टुकड़ों की खातिर, बीवी - बच्चे भूले थे
देह थकी तो मुड़कर देखा, सारा जीवन सूख गया
दर्द भरी वो लम्बी रातें, अंधियारे की परछाई
तू - तू, मैं - मैं मार - कुटाई,भाव समर्पण सूख गया
नीम कटी तो क्षुब्ध परिंदे, ख़ामोशी को छोड़ गये
झिंगली खटिया,तन्हा अम्मा, घर का आंगन सूख गया
( 2 )
सहमा - सहमा सोच रहा हूं, क्या अपने सर आएगा
आज दुआएँ आएँगी या, कोई पत्थर आएगा
तेरी खुशियाँ गैर के सपने, प्यार - वफ़ा से क्या हासिल
मेरे अरमानों के हिस्से, तन्हा बिस्तर आएगा
चुन चुनकर वो बदला लेगा,जिससे उसको ख़तरा है
संसद की ऊंची चौखट पर, जो भी चुनकर आएगा
बैठ सको तो बैठो वर्ना, अपना रस्ता नापो तुम
एक बजेगा तब जा करके, बाबू दफ़्तर आएगा
जोड़ रहे हो जिससे रिश्ता, उसकी कुछ तफ़्तीश करो
सीधा है या धूर्त कमीना, छनकर बाहर आएगा
कोर्ट - कचहरी में मत पड़ना,न्याय वहाँ कब मिलता है
इस रस्ते पर जो भी जाये, समझो लुटकर आएगा
चौराहे पर शोर मचा है, इतना सबको याद रहे
नज़्म कहीं पर चूं भी होगी, सीधा ख़ंजर आएगा
356 केसी - 208,कनकसिटी, आलमनगर, लखनऊ - 226017
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