सी.बी. वर्मा
मैं तो खुदा को अजानों में ढूढंता था
मुझे क्या पता दरवाजे पर खड़ा था।
जिन्दगी के हादसों ने दहला दिया
अब तो ख़ुदा पर भी यकीं नही होता।
ना जाने किस भेष में छुपे हों वन्दे तेरे
अब तो अपनों पर भी यकीं नही होता।
क्या करें हम अपने यकीन को जो
बार - बार घूम कर तूझ पर टिकता है।
बड़ी मासूमियत से जज्बातों से खेलकर
कहते हैं लोग कुछ भी तो कहा नहीं।
वरना तो खत्म है इन्सानियत जहाँ से
कोई तो मिले जो प्यार से मिल ले गले।
मैं तो खुदा को अजानों में ढूढंता था
मुझे क्या पता दरवाजे पर खड़ा था।
जिन्दगी के हादसों ने दहला दिया
अब तो ख़ुदा पर भी यकीं नही होता।
ना जाने किस भेष में छुपे हों वन्दे तेरे
अब तो अपनों पर भी यकीं नही होता।
क्या करें हम अपने यकीन को जो
बार - बार घूम कर तूझ पर टिकता है।
बड़ी मासूमियत से जज्बातों से खेलकर
कहते हैं लोग कुछ भी तो कहा नहीं।
वरना तो खत्म है इन्सानियत जहाँ से
कोई तो मिले जो प्यार से मिल ले गले।
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