बरस उठती हैं आँख
आज भी न जाने कितनी बस्तियाँ
बस जाती हैं हृदय में जब भी सोचता हूँ तुम्हें
बैठकर एकान्त में
आज भी दिखाई देने लगता है
वह मुस्कराता हुआ चेहरा ,
यादों के उन झरोखों से
जो रहता था कभी आँखों के सामने
आज भी महसूस होती है ,
तुम्हारे आने की आहट
जब टकराती है पवन, धीरे से दरवाजे पर
आज भी स्मृतियों के सहारे
आँखे,चली जाती हैं छत के उस छज्जे तक
जहाँ दिन में भी उतर आता था चाँद
शब्दातीत है जिसके दीदार की अनुभूति
आज भी हृदयाकाश में जब
उमड़ - घुुमड़ कर उठते हैं स्मृतियों के मेघ
जिनमें ओझल होता दिखाई देता है वह चाँद
तो अनायास ही बरस उठती हैं आँखें।
आदमी
मुश्किल हो गया है आज
समझना आदमी को
वैसे ही जैसे
नहीं समझा जा सकता है
बिना छुए,गर्म होना पानी का
बिना सूँघे, सुगन्धित होना फूल का
और बिना खाए स्वादिष्ट होना भोजन का
क्योंकि जैसे देखना
नहीं करता है प्रमाणित
पानी की गर्माहट
फूल की सुगन्धि
और स्वादिष्टता भोजन की
वैसे ही सिर्फ आदमी की शक्ल
नहीं करती है प्रमाणित
आदमी का,आदमी होना।
ऊँचाइयाँ
ऊँचाइयाँ नहीं मिलतीं हैं अनायास
पाने के लिए इन्हें
बनाना पड़ता है स्वयं को लोहा
बनाना पड़ता है स्वयं को सोना
रक्त रंजित होना पड़ता है
माटी बन,भिड़कर शोलों से
करनी पड़ती है जबरदस्त मुठभेड़,
पत्थरों से
क्योंकि ऊँचाइयाँ नहीं होती हैं
ख्वाबों की अप्सराएँ
ऊँचाइयाँ नहीं होती हैं,
महबूबा के गाल का चुम्बन
ऊँचाइयाँ, ऊँचाइयाँ होती हैं, ठीक वैसे ही
जैसे आकाश के तारे और मुठ्ठी में रेत।
मोहनपुर, लरखौर, जिला - इटावा (उ .प्र.)
पिन - 206103
मोबा.ः 09410427215
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