ज्ञानदेव मुकेश
अवकाश - ग्रहण के दिन कोई उदास होता और तो कोई खालीपन महसूस करता है। मगर दयाल साहब आज बड़े खुश थे। कारण यह था कि उनके सामने एक ऐसी जिम्मेवारी थी जिसे पूरा करने के लिए हर पिता बड़ा उत्साहित रहता है और उसे वह पूरे इत्मीनान से करना चाहता है। वह थी, उनके एकलौते बेटे की शादी।
घर लौटते वक्त वह रास्ते भर यही सोचते जा रहे थे कि बेटे की शादी की बात कहां - कहां करनी है और इधर - उधर बिखरे पैसों को किस तरह इकट्ठा करना है। घर लौटते ही उन्होंने पत्नी से कहा - आज से बेटे की शादी के लिए पुरजोर कोशिश शुरू कर देनी है। आज मैं सरकारी गुलामी से आजाद हो गया हूं। अब मेरे पास समय ही समय है।
रात को डिनर लेने के बाद पति - पत्नी इत्मीनान हुए तो वे उन तस्वीरों को देखने और छांटने लगे,जो उनके बेटे के लिए आए थे। अखिलेश जी और विनय जी की बेटियों की तस्वीरें ज्यादा पसंद आईं। दयाल जी ने पत्नी से कहा - पहले इन्हीं के यहां बात बढ़ाते हैं। देखें, बात कहां बनती है। हम दहेज की कोई बात नहीं करेंगे। इनकी लड़कियां तो खुद साक्षात लक्ष्मी हैं।
पत्नी ने पूछा - शादी धूमधाम से करने का इरादा रखते हो। उसके लिए इतने पैसे कहां से लाओगे?
दयालजी ने कहा - इत्मीनान रखो जी, मैंने सब हिसाब लगा लिया है। मेरा जीपीएफ, पीपीएफ, ग्रैच्युटी, लीव इन्कैशमेन्ट, इन्श्योरेन्स सब मिलाकर चालीस लाख तो हो ही जाएंगे। बीस लाख में लड़का - लड़की के लिए गहने - कपड़े और बीस लाख में बाकी के इंतजाम बात तो आराम से हो जाएंगे।
पत्नी दयाल जी की बातों से आश्वस्त दिखीं। उस रात दोनों ने मीठी नींद का मजा लिया। सपने आते रहे कि वे दोनों अपने पुश्तैनी घर के बड़े फाटक के सामने नई - नवेली बहू का परिछावन कर रहे हैं। स्वप्न का सम्पूर्ण वातावरण रात भर सुगंधित और संगीतमय होता रहा।
सुबह होते ही दयाल ने अपने बेटे को फोन लगाया - बेटा, कैसे हो? हम लोग तुम्हारी शादी के काम में जुट गए हैं। अगले दो - चार महीने के अंदर ही करने की सोच रहे हैं। बेटा, तुम पहले से ही लम्बी छुट्टी के लिए बात करके रखना। हम अखिलेश जी और विनय जी के यहां बात बढ़ा रहे हैं। तुम्हें उनमें से एक लड़की जरूर पसंद आ जाएगी।
फोन पर कुछ पल की चुप्पी रही। फिर बेटा कुछ कहने लगा - पापा, यह सब क्या है? आपने मुझे इतनी मेहनत से पढ़ाया - लिखाया। मुझपर लाखों रुपए खर्च किए। मेरे लिए रात - दिन एक कर दिया। अब इस बुढ़ापे में इतनी जहमत उठाने की क्या जरूरत है? कहां - कहां लड़की देखते फिरेंगे और तैयारियों में कितनी मशक्कत करेंगे।
दयाल जी ने कहा - नहीं बेटा, अपने पिता को कम मत आंको। अभी भी इन बाजुओं में भरपूर ताकत है। तुम्हारी शादी के लिए पूरे पैसे भी हैं और ढेर सारा उत्साह भी। जरा देखो तो सही, मैं क्या कमाल करता हूं।
फोन पर फिर एक क्षण की चुप्पी। बेटा ने फिर चुप्पी तोड़ते हुए कहा - पापा, आप नाहक परेशान हो रहे हैं। आपके संजोए पैसे और आपकी बची ताकत आपके बुढ़ापे और मां के लिए जरूरी पूंजी हैं। उन्हें मुझपर क्यों जाया करेंगे? उन्हें अपने पास रखिए। मैं बताता हूं आपको अपनी शादी की योजना - हम वर्किंग लोग हैं। हमारे सर्किल में ऐसी कई अन्य वर्किंग लड़कियां आ जाती हैं, जिनके साथ काम करते हुए हमें अच्छी तरह से समझ में आ जाता है कि उनमें किसके साथ हमारा सही तालमेल बैठेगा और जीवन भर का साथ परफेक्ट रहेगा। आप जिसे ढूंढेंगे उसे समझने में ही काफी समय लग जाएगा। इसलिए पापा, लड़की तय करने का काम छोड़ ही दीजिए। मैं वादा करता हूं, आपको एक अच्छी बहू ही लाकर दूंगा। अब रही बात इंतजाम की। वो भी आप क्यों करेंगे घ् यहां कई इवेन्ट मैनेजमेन्ट वाले बैठे हुए हैं। पैसा फेंकोए तमाशा देखो। आप दोनों के आशीर्वाद से आपके बेटे के पास पैसों की भी कोई कमी नहीं है। सारा इंतजाम मैं खुद कर लूंगा। और घर पर शादी क्या होगी? आज जमाना है डेस्टीनेशन मैरेज का। मैं एक बेहद अच्छी जगह भी तय कर लूंगा। बस मुझे थोड़ा समय दीजिए। सब कुछ फर्स्ट क्लास होगा। बस, आप दोनों पूरा तैयार होकर आना, जमकर इनज्वाय करना और दिल खोलकर आशीर्वाद देना। अच्छा पापा, रखता हूं।
फोन कट गया। दयाल जी के हाथ से फोन गिरते - गिरते बचा। उनका स्वप्न भंग हो चुका था। उन्हें लगा, वे एक पिता से एक मेहमान भर बनकर रह गए थे, जो अन्य मेहमानों के साथ निमंत्रण मिलने पर दुल्हे - दुल्हन को सिर्फ आशीर्वाद देने जाएंगे।
फ्लैट संख्या 301, साई हॉरमनी अपार्टमेन्ट,
अल्पना मार्केट के पास,न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी
पटना.800013 ( बिहार)
घर लौटते वक्त वह रास्ते भर यही सोचते जा रहे थे कि बेटे की शादी की बात कहां - कहां करनी है और इधर - उधर बिखरे पैसों को किस तरह इकट्ठा करना है। घर लौटते ही उन्होंने पत्नी से कहा - आज से बेटे की शादी के लिए पुरजोर कोशिश शुरू कर देनी है। आज मैं सरकारी गुलामी से आजाद हो गया हूं। अब मेरे पास समय ही समय है।
रात को डिनर लेने के बाद पति - पत्नी इत्मीनान हुए तो वे उन तस्वीरों को देखने और छांटने लगे,जो उनके बेटे के लिए आए थे। अखिलेश जी और विनय जी की बेटियों की तस्वीरें ज्यादा पसंद आईं। दयाल जी ने पत्नी से कहा - पहले इन्हीं के यहां बात बढ़ाते हैं। देखें, बात कहां बनती है। हम दहेज की कोई बात नहीं करेंगे। इनकी लड़कियां तो खुद साक्षात लक्ष्मी हैं।
पत्नी ने पूछा - शादी धूमधाम से करने का इरादा रखते हो। उसके लिए इतने पैसे कहां से लाओगे?
दयालजी ने कहा - इत्मीनान रखो जी, मैंने सब हिसाब लगा लिया है। मेरा जीपीएफ, पीपीएफ, ग्रैच्युटी, लीव इन्कैशमेन्ट, इन्श्योरेन्स सब मिलाकर चालीस लाख तो हो ही जाएंगे। बीस लाख में लड़का - लड़की के लिए गहने - कपड़े और बीस लाख में बाकी के इंतजाम बात तो आराम से हो जाएंगे।
पत्नी दयाल जी की बातों से आश्वस्त दिखीं। उस रात दोनों ने मीठी नींद का मजा लिया। सपने आते रहे कि वे दोनों अपने पुश्तैनी घर के बड़े फाटक के सामने नई - नवेली बहू का परिछावन कर रहे हैं। स्वप्न का सम्पूर्ण वातावरण रात भर सुगंधित और संगीतमय होता रहा।
सुबह होते ही दयाल ने अपने बेटे को फोन लगाया - बेटा, कैसे हो? हम लोग तुम्हारी शादी के काम में जुट गए हैं। अगले दो - चार महीने के अंदर ही करने की सोच रहे हैं। बेटा, तुम पहले से ही लम्बी छुट्टी के लिए बात करके रखना। हम अखिलेश जी और विनय जी के यहां बात बढ़ा रहे हैं। तुम्हें उनमें से एक लड़की जरूर पसंद आ जाएगी।
फोन पर कुछ पल की चुप्पी रही। फिर बेटा कुछ कहने लगा - पापा, यह सब क्या है? आपने मुझे इतनी मेहनत से पढ़ाया - लिखाया। मुझपर लाखों रुपए खर्च किए। मेरे लिए रात - दिन एक कर दिया। अब इस बुढ़ापे में इतनी जहमत उठाने की क्या जरूरत है? कहां - कहां लड़की देखते फिरेंगे और तैयारियों में कितनी मशक्कत करेंगे।
दयाल जी ने कहा - नहीं बेटा, अपने पिता को कम मत आंको। अभी भी इन बाजुओं में भरपूर ताकत है। तुम्हारी शादी के लिए पूरे पैसे भी हैं और ढेर सारा उत्साह भी। जरा देखो तो सही, मैं क्या कमाल करता हूं।
फोन पर फिर एक क्षण की चुप्पी। बेटा ने फिर चुप्पी तोड़ते हुए कहा - पापा, आप नाहक परेशान हो रहे हैं। आपके संजोए पैसे और आपकी बची ताकत आपके बुढ़ापे और मां के लिए जरूरी पूंजी हैं। उन्हें मुझपर क्यों जाया करेंगे? उन्हें अपने पास रखिए। मैं बताता हूं आपको अपनी शादी की योजना - हम वर्किंग लोग हैं। हमारे सर्किल में ऐसी कई अन्य वर्किंग लड़कियां आ जाती हैं, जिनके साथ काम करते हुए हमें अच्छी तरह से समझ में आ जाता है कि उनमें किसके साथ हमारा सही तालमेल बैठेगा और जीवन भर का साथ परफेक्ट रहेगा। आप जिसे ढूंढेंगे उसे समझने में ही काफी समय लग जाएगा। इसलिए पापा, लड़की तय करने का काम छोड़ ही दीजिए। मैं वादा करता हूं, आपको एक अच्छी बहू ही लाकर दूंगा। अब रही बात इंतजाम की। वो भी आप क्यों करेंगे घ् यहां कई इवेन्ट मैनेजमेन्ट वाले बैठे हुए हैं। पैसा फेंकोए तमाशा देखो। आप दोनों के आशीर्वाद से आपके बेटे के पास पैसों की भी कोई कमी नहीं है। सारा इंतजाम मैं खुद कर लूंगा। और घर पर शादी क्या होगी? आज जमाना है डेस्टीनेशन मैरेज का। मैं एक बेहद अच्छी जगह भी तय कर लूंगा। बस मुझे थोड़ा समय दीजिए। सब कुछ फर्स्ट क्लास होगा। बस, आप दोनों पूरा तैयार होकर आना, जमकर इनज्वाय करना और दिल खोलकर आशीर्वाद देना। अच्छा पापा, रखता हूं।
फोन कट गया। दयाल जी के हाथ से फोन गिरते - गिरते बचा। उनका स्वप्न भंग हो चुका था। उन्हें लगा, वे एक पिता से एक मेहमान भर बनकर रह गए थे, जो अन्य मेहमानों के साथ निमंत्रण मिलने पर दुल्हे - दुल्हन को सिर्फ आशीर्वाद देने जाएंगे।
फ्लैट संख्या 301, साई हॉरमनी अपार्टमेन्ट,
अल्पना मार्केट के पास,न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी
पटना.800013 ( बिहार)
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