इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

मंगलवार, 14 मई 2019

मतदान

डॉ. मृदुला शुक्ला


 सोकर उठते ही सबेरे - सबेरे पारुल अपनी छोटी बहिन प्रिया को लगातार थप्पड़ पर थप्पड़ मारती चली जा रही थी और जोर-  जोर से डांट रही थी कि पहली बार वोट डालने की मेरी बारी आई तो तूने मेरी आलमारी से मेरा आधार कार्ड ही निकाल कर फाड़ डाला। तेरी उम्र तो अभी 18 वर्ष हुई नहीं, इसलिए तू तो मतदान कर नहीं सकती तो मैं भी मतदान न करूँ। यही सोचकर तूने मेरा आधार कार्ड फाड़ दिया।
प्रिया रोती हुई बार - बार कहे जा रही थी - दीदी सुनो तो, मैंने तुम्हारी आलमारी छुई तक नहीं और न ही तुम्हारा आधार कार्ड निकाला और न ही उसे फाड़ा है। भला मैं उसे क्यों फाडूंगी ? दीदी प्लीज, मेरी बात पर यकीन करो।
तेज - तेज आवाजों को सुनकर माँ सरिता हड़बड़ाकर पारुल के कमरे में आई। जब उन दोनों को आपस में लड़ते हुए देखा, तब वह हैरान रह गई, क्योंकि पारुल और प्रिया, दोनों बहनों में अथाह प्यार था। एक - दूसरे पर जान देती थीं, पर आज ये सब क्या हो गया।
जो पारुल अपनी छोटी बहिन प्रिया के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए हरदम तैयार रहती थी, उसी पारुल ने प्रिया को थप्पड़ मारे ! और इतना ही नहीं, आधार कार्ड फाड़ने का आरोप भी लगा दिया।
सोचते - सोचते माँ सरिता ने आगे बढ़कर बड़ी मुश्किल से पारुल को शान्त करके पारुल और प्रिया को अपनी बाहों में भर लिया।
फिर माँ ने बताया कि किसी ने भी किसी का आधार कार्ड नहीं फाड़ा है। सभी के आधार कार्ड मेरे पास बॉक्स में रक्खे हैं और बॉक्स के ताले की चाबी भी मेरे पास है।
पारुल बेटा, तुमने सपने में प्रिया को आधार कार्ड फाड़ते देखा होगा। जिसे तुम हकीकत समझ कर झगड़ा करने लगीं और अगर हकीकत में भी फट गया होता, तब भी आधार कार्ड नया बन जाता। फिलहाल तुम अपने वोटर कार्ड  से वोट डाल देतीं। कोई भी एक पहचान पत्र से मतदान किया जा सकता है।
बेटा, सपना और हकीकत में काफी फर्क होता है। वैसे भी किसी समस्या का हल लड़ाई - झगड़ा नहीं होता। सोच - समझ और प्यार से जटिल से जटिल समस्या सुलझाई जा सकती है।
पारुल को अब अपनी गलती और नासमझी का एहसास हो चुका था। वो अपने अन्दर ग्लानि का अनुभव कर रही थी। प्रिया को अपने गले से लगाकर पारुल फूट  - फूटकर रोने लगी।
तभी प्रिया बोल उठी - क्या दीदी, जल्दी तैयार हो चलकर। अपना कीमती वोट डालने नहीं चलना है क्या? अगर देर हो गई तो कड़क धूप में लम्बी कतार में खड़े होकर अपनी बारी आने का इंतजार करना पड़ेगा।
पारुल, प्रिया और माँ सरिता तीनों तेजी से खिलखिलाकर हँसती हुई मतदान करने के लिए मतदान केंद्र पर जाने की तैयारी करने लगीं।

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