इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

सोमवार, 13 मई 2019

दीप जलेगा

 मिलिंद तिखे 

 अंक 1 दृश्य - 1
निम्न मध्यम वर्गीय परिवार का कमरा - एक मेज़, टेबल लैंप, कुछ किताबें कापियां बिखरी पड़ी हुई - पुराना फर्नीचर। कुछ प्लास्टिक के पौधे गमलों में लगे हुए। एक पुराना टेप रेकॉर्डर। पुराना ए.सी.दीवार पर लगा हुआ। एक पुरानी घड़ी दीवार पर टंगी हुई। एक पुराना कैलेन्डर, एक छोटा- सा मंदिर दीवार से लगा हुआ। भगवान की तस्वीर, मूर्ति। पाँच गद्दे जिन पर चादरें बिछी हुई, आधी - अधूरी, तकिए यहाँ - वहाँ बिखरे हुए। पाँचों बिस्तर आपस में नजदीक। कुछ कपड़े इधर - उधर टँगे हुए - बिस्तरों पर ही बिखरे हुए कमरे की दीवार पर कुछ दरारें। एक खिड़की। एक तिपाई पर फोन।
पर्दा खुलते ही एक नौजवान मंदिर के पास खड़े होकर भगवान की तस्वीर को प्रणाम करता हुआ दिखाई देता है। तस्वीर को प्रणाम कर वो खिड़की की ओर बढ़ता है, खिड़की से बाहर की ओर झाँकता है। बसों की, मोटरकारों के गुज़रने की आवाज़ें सुनाई देती हैं। युवक खिड़की बंद कर देता है, फिर दर्शकों की ओर देखता है। थोड़ा - सा, हल्का - सा स्मित दर्शकों को देकर बात करना शुरू कर देता है। युवक - नमस्कार, सलाम गुड मॉर्निग दोस्तों, मैं डी डी माफ कीजिए धनादेश या डिमाँड ड्राफ़्ट नहीं। मेरा मतलब है धनेश देसाई एम कॉम. एल.एल.बीए उम्र पच्चीस साल, कद- पाँच फुट ग्यारह इंच, वजन - सत्तर के.जी. रंग - गोरा, कार्य अनुभव - नहीं, व्यवसाय यानि काम - बेरोज़गार याने नौकरी तलाश करना। सॉरी दोस्तों मेरी इन सब बातों से आप लोगों को शायद ऐसा लगने लगा होगा कि मैं यहाँ अपना सी वी पढ़ रहा हूँ या इंटरव्यू दे रहा हूँ।
लेकिन दोस्तों मेरा ये मकसद नहीं है, बल्कि मेरा मकसद है आप लोगों को अपनी आपबीती सुनाना,अपने चंद अनुभवों को आपके साथ बाँटना।
मुंबई और दुबई में उतना ही फर्क है जितना कि मु और दु में। शब्दकोश के अनुसार दु शब्द पहले आता है और मु बाद में। चलिए तो शुरु करते हैं दुबई से।
दुबई - सिटी ऑफ गोल्ड, पर्ल ऑफ गल्फ यू ए ई की व्यवसायिक राजधानी- ऐसे अनेक नाम इस शहर को बहाल किए गए हैं। भारतभर में शायद ही ऐसा कोई युवक होगा जिसने दुबई आने का सपना न देखा हो या मौका मिलने पर वो दुबई आना नहीं चाहता हो। हम भारतवासियों का तो यही मानना है कि साहब दुबई में पैसा पेड़ों पर उगता है, बस हाथ बढ़ाया, तोड़ लिया और इस्तेमाल कर लिया।
लंबी और चौड़ी सड़कें, सुनहरे चौक, चौंका देनेवाले पुल, गगनचुंबी इमारतें, सोने हीरे मोतियों की चमक - दमक, अत्याधुनिक अस्पताल, शॉपिंग मॉल्स, सिनेमाघर और समुंदर के किनारे। लेकिन इन सबसे बढ़कर है यहाँ का शांतिपूर्ण वातावरण। न रेलगाड़ियों की आवाज़ न बसों की लंबी कतारें न मोर्चे न आंदोलन, न चोर -जेबकतरों का डर, न भीड़ - भाड़, न धक्का - बुक्की, अनुशासनबद्ध सामान्य जन। दुबई की विशेषताओं की गिनती यहाँ ख़त्म नहीं होती मगर समय के अभाव के कारण मैं अब सीधा मुख्य मुद्दे पर आ जाता हूँ।
हाँ, तो दोस्तों, अपनी बात चल रही थी नौकरी - व्यवसाय की। दुबई आने का मेरा मुख्य उद्देश्य तो यही था - नौकरी हासिल करना - एक अच्छी नौकरी - मतलब अच्छी पोज़ीशन स्टेटस वाली नौकरी,अच्छी तनखा वाली नौकरी। खूबियाँ होने के बावजूद अपने देश में एक अच्छी नौकरी हासिल करना मेरे लिए आसमान से तारे तोड़ लाने के बराबर था। मेरे परिवार में माता - पिता,भाई - भाभी और एक छोटी बहन शामिल हैं। बाबूजी रेलवे में नौकरी करते थे। अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। भैया एक फाइनेंस कंपनी में क्लर्क हैं। भाभी और माँ घरेलू महिलाएँ हैं। दोनों कढाई - बुनाई या कभी - कभार केटरिंग भी कर लेती हैं। बहन पढ़ाई - लिखाई में बहुत होशियार है। पच्चीस साल की हो चुकी है मगर सी ए फाइनल के एग्जाम में 11 बार फेल हो चुकी है। घरवाले उसे पढ़ाने पर जोर देते हैं मगर उससे नौकरी कराने की कोई उम्मीद नहीं रखते। अच्छा - सा लड़का अगर मिल जाए तो उसके हाथ पीले करा दूँ, सबसे कहते रहते हैं। मुझसे काफी उम्मीदें लगाए बैठे हैं सबके सब।
दफ्तरों के चक्कर लगाते - लगाते मैं ऊब गया था, थक गया था। जहाँ देखो वहाँ नो वेकेंसी की तख्ती या फिर एप्लिकेशन भेजने पर नकारात्मक जवाब - आपका आवेदन मिला लेकिन खेद के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि रिक्त स्थान की पूर्ति पहले ही हो चुकी है। इंटरव्यू में गया तो -आप इस पद के उपयुक्त नहीं है। आपके पास पर्याप्त अनुभव नहीं है ... वगैरह - वगैरह। सच पूछिए तो तंग आ गया था मैं ये सब सुनते - पढ़ते। ज्योतिषियों को जनम कुंडली दिखाई। कतारों में खड़े - खड़े पाँवों में बिवाई पड़ गई। झुके - झुके दिन का सूरज डूबा, हरेक सुबह शाम बन गई। उम्मीद हर नाउम्मेदी लाई।
कहते हैं ईश्वर की गति ईश्वर ही जाने। ईश्वर के दरबार में देर है पर अंधेर नहीं और अचानक एक दिन अंधेरी स्टेशन पर पुल पार करते वक्त - के.के.मेरा पुराना दोस्त मुझे मिला। के. के का पूरा नाम - कमल खन्ना। एन एम कॉलेज में एक साथ ही पढ़ते थे दोनों। कमल आउटगोइंग था। देखने में सुंदर कद का ऊँचा सुडौल शरीर। पढ़ाई में भले ही कमजोर था पर खेलकूद डान्स - ड्रामा आदि में चैंपियन। कमल खन्ना के पितामह इंडस्टि्रयलिस्ट थे। बड़े बाप का बड़ा बेटा के के - अबे डीडी तू, मुझे देखते ही खुशी से झूम उठा। क्या करता है आजकल? नौकरी ढूंढ़ रहा है? वो भी यहाँ? इंडिया में। अरे आजकल इंडिया में रहता कौन है? अब मुझे ही देख ले। पापा को गुजरे तीन साल हो गए। धंधे में करोड़ों रुपयों के नुकसान की खबर सुनते ही स्वर्ग सिधार गए। अरे तू तो जानता है, मैं उनका इकलौता बेटा हूँ। कर्जदारों से पिंड छुड़ाते - छुड़ाते अरे मेरी तो हवा निकल गई थी। लेकिन कहते हैं न कि हिम्मत के हिमायती राम। हिम्मत किए बिना कुछ नहीं मिलता। शादी का प्रपोजल आया और मैंने तुरंत हाँ कर दी। कालिंदी से मेरी शादी हो गई। उसके पापा आबूधाबी में नौकरी कर रहे थे। उन्होंने मेरे लिए दुबई में एक नौकरी का इंतजाम कर दिया और मैं पहुँच गया दुबई। गजब का शहर है यार।
- क्या कह रहा है तू? तू और दुबई में? मैंने पूछा।
- हाँ यार,दुबई में। चार हजार दिरहम की नौकरी, फैमिली अकोमोडेशन कंपनी की फोर व्हील ड्राइव। ऐश कर रहा हूँ यार। एक महीने की छुट्टियों पर आया हूँ यहाँ। बस, दो दिन बाद वापस जा रहा हूँ। घर में सब कैसे हैं? उसने पूछा।
- बस ठीक ही हैं। मैंने कहा।
- क्या मतलब? उसने पूछा।
- क्या बताऊँ? मुझे नौकरी न मिलने की वजह से घर में सब परेशान हैं। बाबूजी रिटायर हो चुके हैं और भैया की आमदनी में सबका गुजारा मुश्किल से होता है। फ्लैट का किराया, बिजली पानी,राशन इत्यादि का खर्चा उठाना कठिन हो गया है। पता नहीं कब मुझे अच्छी नौकरी मिलेगी और घर के हालात सुधरेंगे। मैं उदास होकर बात कर रहा था। मेरी उदासी की वजह वह जल्दी भाँप गया।
- मैं तेरे लिए दुबई में ट्राय करुँ? तेरी पासपोर्ट कॉपी और सीवी घर आकर दे जाना। घर का पता तो याद है ना? उसने बड़े प्यार से पूछा। मैंने हामी भर दी।
- ठीक है, तो कल मिलते हैं। पक्का आज जरा जल्दी में हूँ। माफ करना यार। कहकर वो कब चला गया इस बात का मुझे पता तब चला जब सेंग गरमा - गरम सेंग ले लो। मूँगफल्ली बेचनेवाला आकर मुझसे टकराया।
मैं सोच रहा था अँधेरे के पाँव नहीं होते। अँधेरा उजाले का आँचल थामकर चलता है। मेरे मन को मैं समझा रहा था - मत निराश हो, फिर फूल खिलेगा, सूरज उगेगा, फिर दीप जलेगा और अंधेरा ढलेगा।
मैं घर गया। किसी से कुछ न कहा। परदेस जाने का मतलब था खर्चे को आमंत्रण देना। बाबूजी और भैया की बात चल रही थी निरुपमा ( मेरी बहन ) की शादी कराने की। दहेज नहीं हो ना सही लेकिन शादी के दूसरे खर्च करने के तो रुपए होने चाहिए जेब में। यहाँ तो कंगाली छाई हुई है और अपना छोटू ,यानि मैं, नालायक निकम्मा ना काम का ना काज का, दुश्मन अनाज का। भाभी रो रही थी- देखना बाबूजी एक दिन वही लायक साबित होगा। माँ कह रही थी- पता नहीं वो दिन कब आएगा। मैं तो उम्मीद खो चुकी हूँ। बाबूजी ऊँची आवाज में गरज रहे थे - कंबख्त पता नहीं दिन भर कहाँ गायब रहता है। शर्माजी बता रहे थे नुक्कड़ पर खड़े - खड़े सिगरेट के कश लेते - लेते बिल्डिंग के लोगों को खबरें देकर सबका मजाक उड़ाता रहता है। कम से कम जर्नलिस्ट ही बन जाता। प्यून बनने के लायक नहीं है वो। माँ के रोने की आवाज सुनाई दी।
एक - एक करके सब ड्राइंग रूम से चले गए। मैं वहाँ गया। अलमारी से कंबल निकालकर सोफे पर ही सो गया। वही जगह थी मेरे सोने की लेकिन वक्त नहीं हुआ था सोने का। भूख जो पेट में अंगार उगल रही थी। कंबल को सिर से पाँव तक ओढ़ लिया था ताकि मेरा चेहरा कोई देख न सके। आज मुझे अनुभव हुआ था कि अपने देश में पढ़ा - लिखा ग्रेज्यूएट बेरोजगार अपने घरवालों का कितना बड़ा मुजरिम है। मुझे अपने बेरोजगार होने पर शर्म आ रही थी। माँ बाबूजी की आवाज सुनाई दी - उस धन के ईश्वर से कह दो के आकर खाना खा ले। अभी तक उसका बाप जिंदा है। भूखे पेट सोने की जरूरत नहीं। मेरी आँखों से आँसू छलक गए। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं। भाभी माँ निमा एक के बाद एक मेरे पास आए। मुझे जगाने की कोशिश करने लगे - धनेश, थोड़ा खालो देवरजी। कुछ खा ले बेटा, भैया उठो खाना खा लो! पर मैंने खाना न खाने की कसम खा ली थी इसलिए मैंने अपनी बंद आँखें नहीं खोलीं।
सुबह बाबूजी की आवाज ने मुझे जगा दिया। धनेश, कमल खन्ना का फोन है तेरे लिए। मैंने रिसिवर उठाया तो कमल ने कहा - चल मैं ही आ जाता हूँ तेरे यहाँ। याद है न तेरी सीवी और पासपोर्ट कॉपी तैयार रखना। कालिंदी और केतन भी साथ ला रहा हूँ। कालिंदी का तो मुझे उसने बताया था कि उसकी पत्नी थी पर ये केतन?
- केतन कौन यार? मैंने पूछा।
- अरे हाँ उस दिन बताना ही भूल गया था। केतन मेरे बेटे का नाम है। पूरे एक साल का हो गया है। ठीक है ... मिलते हैं, मैं फोन रखता हूँ। कहकर उसने फोन काट दिया। मैं सोच रहा था तीन साल कैसे गुजारे थे मैंने पिछले तीन साल। मेरे बैचमेटस मेरे दोस्त सब तरक्की कर चुके थे और मैं वहीं नुक्कड़ पर खड़ा था सिगरेट के कश लेते। बिल्डिंग के लोगों का मजाक उड़ाते। शर्माजी को देखते और शर्माजी मुझे देखते बाबूजी से शिकायत करते। दोस्तों, कितना फर्क होता है ना दो इंसानों के नसीबों में - जमीन आसमान का फर्क। अमीरी -गरीबी का फर्क, मुंबई - दुबई का फर्क, रोजगार - बेरोजगार का फर्क। मुझे याद है बाबूजी मेरे परिवार का हर्षोल्लास अपनी चरम सीमा पर था। कमल खन्ना से घर के सारे लोग बड़े प्यार से मिले। दुबई की बातें सुनकर खुशी के बारे में फूले नहीं समाए। उसकी पत्नी तथा बेटे पर प्रेम का हुआ वर्षा देखकर मैं फिर सोच रहा - मेरा नंबर कब आएगा?
कुछ दिन गुजर गए। केके का न तो कोई फोन आया और न ही कोई खत। अरे फोन करके पूछ ले बेटा तेरे बाबूजी रोज पूछते रहते हैं। माँ कहा करती थी। और मैं कहता था - माँ, बेकार पैसे बर्बाद हो जाएँगे। अगर कुछ होना होता या हुआ तो केके खुद ही फोन करता। मनीष भैया चूकि खानदान को पालने का बोझ अकेले उठाने की भावना रखते थे। कह देते - माँ क्यों उसके पीछे पड़ी हो। आप तो जानती हो वो आलसी है अगर उसे कुछ करना होता तो यहीं पर कुछ करता। दुबई का टिकट कटाने की क्या जरूरत है। उनकी बात सही थी जो करता है वही सुनाता है। मनीष भैया अपना अधिकार खोना नहीं चाहते थे और मौका पाते ही खरी - खोटी सुना देते। बाबूजी भी दिन भर घर बैठे वर्तमान पत्र पढ़कर ऊब जाते और फिर भविष्य की सोच में पड़ जाते। निमा की शादी एक बार हो जाए तो सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाऊँगा। धनेश चाहे जिए या मरे मुझे उसकी कोई चिंता नहीं है।
माँ कहती- तंग आ गई हूँ मैं रोज - रोज की किटकिट से। हे भगवान मुझे अपने पास बुला ले। एक भाभी ही थी दया की मूर्ति। घर पर सारा दिन काम करते रहती कभी जरूरत पड़े तो अपने मैकेवालों से रुपया, कपड़ा - लत्ता ले आती और मेरी झोली भर देती। शर्ट पुरानी हो गई हो फट - कट गई हो पैंट की हालत माय गॉड हर मेरी चीज का ध्यान देती। मुझे अपना बेटा मानती। शादी को पूछो तो आठ साल हो गए थे मगर संतान का लोभ नहीं था उसे। कभी किसी ने उसे बांझ कह दिया तो लड़ने - झगड़नें में पीछे नहीं हटती - धनेश मेरा बेटा है। मुझे संतान की क्या जरूरत। और हाँ मनीष भैया के कंधे पर सिर रखकर सिसकियाँ देते हुए कहती - धनेश को बुरा - भला मत कहो। वो मेरा बेटा है। जब तक इस परिवार की हालत सुधर नहीं जाती तब तक मैं माँ नहीं बनूँगी।
एक दिन फोन की घंटी बजी। नीमा दौड़ी - दौड़ी नुक्कड़ तक आई - धनेश भैया, केके का फोन आया था। उसने तुम्हें फोन करने को कहा है। बाबूजी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। मैं दौड़ा - दौड़ा गया और फोन किया केके को। केके! हाँ दोस्त कैसा है। क्या हुआ। कुछ हुआ। क्या कहा तूने विजिट वीसा अरेंज किया है। नौकरी मैं खुद आकर ढूँढ़ लूँ? तू और भाभी मेरी हेल्प करेंगे थैंक यू यार बी इन टच श्योर। अरे ये भी कोई कहने की बात है आंटीजी से जरूर मिलकर आऊँगा। और सब ठीक है। ओके यार जितनी जल्दी हो सके काम कर देना यार। यहाँ बहुत बोअर हो रहा हूँ। रिसीवर नीचे रखा ही था कि ओरल एक्ज़ाम शुरू हो गए। क्या कह रहा था। बाबूजी,कुछ हुआ? माँ नीमा तो बस बिल्डिंग में खबर देने ऐसे भागी जैसे मैंने कोई चुनाव जीत लिया हो। भाभी मंदिर पहुँच गई गणेश जी को प्रसाद चढ़ाने। रेडिओ पर पुरानी फिल्म दो बीघा जमीन का सुमधुर गीत बज रहा था - दुख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे, रंग जीवन में नया लायो र ...
रेडियो के पास जाकर रेडियो ऑन करने का अभिनय करता है। थोड़ी देर गीत बजने के बाद जब भी मैं बहुत खुश या उदास होता तो पहुँच जाता चिकी - चिकी के घर। दोस्तों, आप पूछोगे ये चिकी - चिकी क्या है? चिकी मेरी गर्ल फें्रड, उमर में मुझसे आठ साल बड़ी थी। तलाकशुदा थी। पर दिखने में जितनी सुंदर थी उससे भी कहीं ज़्यादा सुंदर उसका दिल था। मेरे परिवारवालों की मुझसे नाराजगी की एक वजह या यों कहिए प्रमुख वजह चिकी ही थी। मैं कितना ग़ैर जिम्मेदार था इस बात का एहसास दिलाती थी वो मुझे। बाबूजी पूछते थे ना कि ये लड़का दिनभर कहाँ गायब रहता है तो दोस्तों, उनको भी पता था और आपको भी बता देता हूँ कि चिकी के घर। चिकी स्वतंत्र विचारों वाली लड़की थी। इंटरकास्ट लव मैरेज की थी उसने मगर लव सिर्फ बिफोर मैरेज तक ही रहा आफ्टर मैरेज लड़ाई - झगड़े फिर तलाक। ये मॉडर्न विचारों वाली लड़की नालायक या निकम्मी नहीं थी। होटल में नौकरी करती थी रिसेप्शनिस्ट की। शादी के ग्यारह साल बाद उसके पति ने उसे ये बताया कि वो उससे प्यार नहीं करता। तलाक लेकर अपनी छः साल की मासूम बच्ची को अपने माँ के घर छोड़कर मुंबई में अकेली फ्लैट लेकर रह रही थी हमारी बिल्डिंग में।
होटल से घर लौटते वक्त फोन कर देती मुझे - आज फिल्म देखने चलना है। टिकट बुक कर आई हूँ। साथ में डिनर करेंगे। पाँच गार्डन चलेंगे। रेस कोर्स जाएँगे। वगैरह - वगैरह। मुझे एँटरटेन करना उसे बहुत अच्छा लगता था। मैं भी इंतजार करता रहता उसके फोन का। उसकी बातें गुड़ या शहद से कम मीठी नहीं थी। उसे गाना नहीं आता था और न ही संगीत का शौक। मैं उसे गाकर सुनाता तो कहती - तुम यार प्लेबॅक सिंगर क्यों नहीं बन जाते? वैसे हीरो भी बन सकते हो। मॉडेलिंग कर सकते हो। देअर आर सो मेनी ऑप्शन्स यार। धनेश यू आर द बेस्ट तुम कोशिश क्यों नहीं करते? और हाँ, अब कोशिश करने का वक्त आ गया था। मुंबई में नहीं बल्कि दुबई में अपनी किस्मत आजमाने का मौका मुझे मिल गया था। आशा की एक किरण ने मुझपर अपनी रोशनी बिखेरी थी अब पूरे सूरज को हासिल करना मेरा लक्ष्य बन गया था।
दुबई की उड़ान का समय करीब आ रहा था। हवाई अड्डे को रवाना होने से पहले दोस्तों ने, घरवालों ने, पड़ौसियों ने मेरे प्रति जिस प्रेम और विश्वास का प्रदर्शन किया उन सबसे मैं बहुत ही प्रभावित हुआ। मेरा मन हर्ष और उल्लास से गदगद हो उठा। खास करके शर्माजी,जो हमेशा मेरी निंदा और शिकायत करने में लगे रहते थे उन्होंने आकर मुझे गले लगाया और कहा - जीवन में सदा सफल रहो। बाबूजी ने एक सफेद लिफाफा दिया जिसमें कुछ रुपए और डॉलर्स थे - बेटा, काम आएँगे। जरूरत पड़ने पर और मंगा लेना अपने आप को किसी तकलीफ़ में मत डालना। उनका मेरे प्रति ये प्रेम मेरे बचपन की यादें दिला गया। वे सारे पल जो मेरी सफलता के समय उन्होंने खुशी मना कर बिताए थे वो मेरी आँखों के सामने आ कर खड़े हो गए और कहने लगे- धनेश, तुम्हें एक बार और सफल होना है और फिर लगातार सफलता के मार्ग पर ही चलना है। पीछे मुड़कर कभी नहीं देखना। मनीष भैया ने भी नम्र स्वर में कहा था - नीमा की शादी के लिए जो रुपए बाबूजी ने जोड़े थे आज तुम्हारे सुपुर्द कर रहे हैं। हम लोगों की न सही, कम से कम उन रुपयों की लाज जरूर रखना। मेरे पाँव तले की धरती खिसक गई थी। जाते वक्त भी शब्दों के बाण। नीमा की आँखों में आँसू थे। भैया फोन करना, खत लिखना। माँ ने तो खाने की चीजें इस तरह पैक की थीं कि जैसे में दुबई नहीं अंदमान - निकोबार जा रहा था - बेटा, ये कमल के लिए है और ये तुम्हारे लिए। अपना खयाल रखना। यहाँ की चिंता बिल्कुल मत करना। भाभी रो पड़ी थी। माँ से भी बढ़कर जो ममता थी उसकी। कुछ बोली ही नहीं। अपने आँचल से आँसू पोंछती रही। मैं ही उसके करीब गया और मैंने कहा - भाभी, चिक्की का खयाल रखना। हो सके तो ताश और शतरंज खेलने चले जाना उसके घर। भाभी ने सुमधुर आवाज में कहा - जल्दी आना बेटा, अगली बार आओगे तो चिक्की से तुम्हारी शादी कराके ही रहूँगी। रह गई चिक्की। होटल से छुट्टी ले रखी थी उसने- एक को मैं छोड़ आई हूँ और दूसरा मुझे छोड़कर जा रहा है। इतना दुःख तो उस दिन भी नहीं हुआ था जिस दिन मैंने अपने पति को छोड़ने का फैसला किया था। चिक्की ने पहली बार अपने प्यार का इकरार किया था शब्दों में।
दुबई के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर आपका स्वागत है। हवाई सुंदरी की सुमधुर वाणी जब कानों ने सुनी तब जाकर पूरा विश्वास हो गया कि मैं दुबई पहुँच चुका था। सपनों का शहर दुबई अपनी बाहें फैलाकर मेरा स्वागत कर रहा था। अस - सलाम, आलेकुम, सब्बाहे- खेर,गुड मार्निंग, आदि अरबी शब्दों के माहौल ने समा बाँध लिया था। डयूटी फ्री के ब्लैक लेबल, शिवास रिगल और छोटी - मोटी चीजों की फरमाईश कमल ने की थी सो शॉपिंग खतम कर अराइवल लाउंज से बाहर निकला तो केके और केके मेरा मतलब है केके और श्रीमती केके मेरे आने की खुशी में मुस्कुराहट बिखरते हुए नजर आए थे। फोर व्हील ड्राइव में बैठने की बारी आई तो कालिंदी ने कहा - आप आगे बैठिए, मैं केतन के साथ पीछे बैठ जाऊँगी। नन्हें केतन को लाड़ - प्यार से पुचकारने के बाद मैं कमल के साथ वाली सीट पर जा बैठा। साइड मिरर में देखा तो पीछे केतन फोर व्हील ड्राइव मैं बैठा हुआ था और गाड़ी स्टार्ट कर रहा था। एक अजीब - सी मुस्कान मेरे चेहरे पर छा गई।
- क्यों बे, सपने बुनने लग गया क्या? कमल की आवाज ने मुझे चौंका दिया।
- हाँ यार तू बिलकुल ठीक है। मैंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा। गुजरते रास्ते, गाड़ियाँ, इमारतें, गोल चौराहे, पुल, अरब महासागर... देखते - देखते मैं मुंबई को धीरे - धीरे भूलने लगा था। कमल की पूछताछ जारी थी के अचानक कालिंदी ने कहा - कमल रेडियो तो चला। मैं समझ गया वो शायद हमारी बातें सुनकर बोर हो गई थीं। रेडियो ऑन करने पर गाना सुनाई दिया - छोड़ आए हम वो गलियाँ ...।
शुक्रवार का दिन मतलब रविवार का दिन। रसोईघर को छुट्टी। वैसे भी कालिंदी को खाना पकाना पसंद नहीं था। दोनों मियाँ - बीवी होटल से ही खाना मंगा लेते या होटल जाकर खा लेते। कपड़े वॉशिंग मशीन में धुल जाते। घर पर एक श्रीलंकन आया आ जाती जो बाकी सारे काम कर देती। कालिंदी नौकरी करती थी एक जानी - मानी परफ्यूम कंपनी में। घर का सारा काम श्रीलंकन आया से या अपने पति से ही करवाती थी। अब उसे एक और असिस्टेंट मिल गया था, धनेश देसाई। दिन भर मुझे घुमाने - फिराने के बाद रात को चायनीज डिनर खिलाकर जब थके - माँदे हम घर लौटे तो कालिंदी ने एक कागज का टुकड़ा मेरे हाथ थमा दिया- ये रहा आपका बिल। स्नेहपूर्वक उसने कहा। मैंने देखा- मुझपर किए हुए हर छोटे  - मोटे खर्चे का हिसाब अपने सुंदर हस्ताक्षर में लिखकर दिया था उसने।
- बुरा मत मानो धनेश और हाँ ये बात कमल को मत बताना वर्ना खामखाह नाराज हो जाएगा मुझसे। पर तुम जानते तो हो कितना खर्चीला है वह। अगर मैं न होती तो कभी का कंगाल हो चुका होता मेरा पति। मैंने हामी भर दी। विजिट विसा चार्जेस इतना, ब्रेकफास्ट इतना, लंच इतना, डिनर इतना, कुल मिलाकर इतने दिरहम। उसी पल मुझे लगा कि एक बिल मुझे भी देना चाहिए - ब्लॅक लेबल, शिवास रिगल, इतने दिरहम। सारे खर्चों का हिसाब। मुझमें और कालिंदी में फर्क सिर्फ इतना था कि वो फलाना परफ्यूम कंपनी के बिलिंग डिपार्टमेंट में काम करती थी और मैं जो कुछ भी छोटी - मोटी कमाई करता था। सारी कमाई अपने दोस्तों को खिलाने - पिलाने में खर्च कर देता था। न कभी बाबूजी को पता चलता था न मनीष भैया को।
मैंने अपने आप से कहा - दुबई तक मैं कमल की वजह से ही तो आया और आगे चलकर पता नहीं कितने एहसान वो करेगा मुझपर। दोस्ती की आबरू रखने के लिए दूसरे दिन सुबह ही मैंने रुपए और डॉलर्स एक्स्चेंज कर कालिंदी के हाथों थमा दिए। उसने कहा - थैंक्यू, अरे इसकी इतनी क्या जल्दी थी? आराम से दे देते। जल्दी उसे नहीं थी पर मुझे थी। अगर देर करता तो दोस्ती मुझसे रूठ जाती। कुछ दिन यों ही गुजर गए। मैं आवेदन भेजता रहा। कुछ इंटरव्यू के फोन आए। वही नकारात्मक उत्तर आपको दुबई का अनुभव नहीं है। यहाँ एम.कॉम. या सी.ए. की जरूरत है। कहाँ अकाउंटिंग पैकेज है हमारे पास, आप ज्यादा तनख्वाह की माँग कर रहे हैं। इतनी तो हम अपने मैनेजर को भी नहीं देते। अब इसी तन्ख्वाह में जॉइन कर लो, बाद में देखेंगे। हम जरूर कुछ करेंगे। दिन भर घर बैठता फोन का इंतजार करता।
मेरी हरकतों से कमल और केतन ज़्यादा परेशान थे। कालिंदी कहती पता नहीं मुझे तो इसकी बातें ही समझ में नहीं आतीं। दिन भर टीवी देखता रहता है। कपड़े नहीं धोता, पानी - बिजली पहले इतना बिल नहीं आता था। मैं तो सोच रही हूँ उससे कहूँ कि केतन को संभाले ताकि क्रेच का खर्चा बच जाए। कमल कहता था - तुम्हें जो करना है करो, मुझसे मत पूछो। दो - चार बार तो कालिंदी केतन को मेरे हवाले कर चली गई। मुझे बेबी सिटिंग का कोई अनुभव नहीं था। बच्चे ने मुझे इतना तंग किया के मैं सोच में पड़ गया के आखिर ये लोग मुझसे चाहते क्या हैं? थोड़े ही दिनों में बात सामने आ गई। कालिंदी ने अबकी बार हिसाब में कमरे का किराया भी जोड़ा था। मेरा माथा ठनका। खुद तो कंपनी के दिए हुए फ्लैट में रहते हैं और मुझसे किराए की उम्मीद। मैंने सोचा अब बहुत हो गया। इस सोच का कारण यह भी था के बाबूजी के दिए हुए रुपए और डॉलर्स अब कम ही बचे थे। शुरुआत में फोर व्हील ड्राइव का लुत्फ उठाया था मैंने पर बाद में टैक्सी, बस, आबरा (बोट )और नजदीकी जगहों पर ये ग्यारह नंबर की बस (अपने दो पैरों की तरफ इशारा करता है) से जाने लगा। मैंने अपना फैसला उठकर सुना दिया - मैंने अपने लिए रहने की जगह ढूँढ ली है कल चला जाऊँगा। कमल कुछ नहीं बोला - ठीक है, जैसे तेरी मर्ज़ी। हमसे जितना बन सका हमने किया आगे तू जाने। तुझे चाहिए तो मैं तेरे नये मकान तक छोड़कर आऊँ।
मैंने कहा - नो थैंक्स यार, मैं खुद चला जाऊँगा। कालिंदी ने कहा था - कभी - कभार आते रहना। मैंने कहने के लिए कह तो दिया था-जरूर आऊँगा पर मेरा मन वहाँ जाने के लिए कभी नहीं माना और न ही कभी मैं वहाँ गया। अपना बैग उठाया टैक्सी में डाला और कहा - मुर्शिद बाजार देरा। टैक्सी में रेडियो पर गाना बज रहा था पुरानी फिल्म का - सबका है तेरी जेब से रिश्ता, तेरी जरूरत कोई नहीं। बचके निकल जाए इस बस्ती में करता मोहब्बत कोई नहीं।
टैक्सी रुकी। खुदा हाफिज़ कह कर टैक्सी वाला किराया लेकर चला गया। मैंने दूसरे माले तक का सफर सीढ़ियों से ही तय किया। लिफ्ट थी मगर आउट ऑफ ऑर्डर का बोर्ड टंगा हुआ था। पुरानी बिल्डिंग दूसरे माले पर 207 के बाहर नेम प्लेट थी मिसेस सुनीता पुनवानी। मैंने दरवाज़े पर दस्तक दी। सुनीता आँटी ने ही दरवाजा खोला - आओ, अंदर आओ धनेश। ये रहा तुम्हारा कमरा। किसी चीज़ की तकलीफ  हो तो जरूर याद करना मुझे। तीसरावाला जो बेड स्पेस है वो तुम्हारा है। सब काम पर गए हैं। मैंने पूछा - आपके मिस्टर सुनीता आँटी मेरा मतलब है पुनवानी अंकल ... बिना किसी झिझक के उसने कहा - जुमेराह जेल में हैं। टेक्स्टाइल मार्केट में अपनी दूकान थी। कर्ज़े अदा न कर पाने की वजह से पुलिस केस हो गया। घर चलाने के लिए मुझे कमरे किराए पर देने पड़े। बस गुज़र - बसर ज्यों - त्यों हो ही जाता है। एक बेटा है मेंटली रिटार्डेड। एक बात कहूँ बेटा जिंदगी से कभी हारना नहीं चाहिए,जिंदगी को हराना चाहिए। मैंने कहा - सॉरी आँटी आपको... उसने कहा - कोई बात नहीं बेटा। जाओ तुम आराम करो।
मैं अपने में कमरे में आया, मतलब इस कमरे में आया। उस दिन से लेकर आजतक इसी कमरे में हूँ। क्या कहा? मैंने कमरा कहा इस बात पर आपको हैरानगी तो जरूर हुई होगी। क्योंकि दिखने में ये किसी अस्तबल से भी बदतर है। जानता हूँ, मानता हूँ आपकी बात को मगर एक बात बता दूँ आपको, यहाँ इंसान बसते हैं। ऐसे इंसान जिनमें इंसानियत नामकी चीज अभी तक बाकी है। आइए मैं आपका परिचय करा दूँ इन पाँच इंसानों से - इन पाँच बेडस से।
नंबर 1 है जयदीप भट्टाचार्य कोलकाता से आया हुआ एक बंगाली। पढ़ा - लिखा डबल ग्रेज्युएट उम्र 37 साल। अल फलाह कैफेटेरिया में वेटर की नौकरी कर रहा है। तनखा 800 दिरहम्स टिप अलग। शादी - शुदा है। दो बच्चे हैं। परिवार कोलकाता में है। आठ साल से परिवारवालों से मिला नहीं। कोल्हू के बैल जैसे काम करता है। तनखा मिलते ही परिवारवालों को भेज देता है। टिप के पैसों से किराया और खुद के दूसरे खर्च उठाता है। पढ़ने का बहुत शौक रखता है। अंग्रेज़ी किताबें पढ़ता है। ये जो बिखरी हुई किताबें हैं न, उसकी हैं।
नंबर 2 बलराम मेनन उम्र 30 साल। नॉवेल्टी ऑडियो वीडियो कैसेटस शॉप में नौकरी। गाने सुनने और गाने का बड़ा ही शौकीन। रात को सोते समय या अकेले में वॉकमन सुनता रहता है। मोहम्मद रफी साहब के गाने मतलब दूसरा कोई उनके जैसा नहीं गा सकता। सोनू निगम मिमिकरी आर्टीस्ट है वगैरह - वगैरह। उसके साथ कोई रफी साहब के खिलाफ  एक लफ़्ज़ नहीं बोल सकता। अगर ये बाथरूम चला जाए तो यहाँ रेडियो लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
नंबर 3 अब मैं हूँ, मगर मुझसे पहले एक ललित पंडया नामक गुजराती लड़का रहता था। नाइट क्लब से हर रात, रात क्या सुबह के चार बजे लौटता था। मसाफी की बोतल में पानी नहीं सिगरेट के टुकड़े पड़े मिलते। अपने परिवार से दूर रहने का ग़म उसे सताता था इसलिए उसने नौकरी छोड़ दी पर उसके मालिक ने चोरी का इल्ज़ाम लगाकर उसे पुलिस के चक्करों में लगा दिया। अंत में तंग आकर ये जो खिड़की देख रहे हैं ना आप, यहाँ से छलाँग लगाकर उसने अपनी जान दे दी। नंबर तीन का ये बेड वैसै भी पनौती ही माना जाता है। मुझे ललित के बारे में तीन दिन बाद पता चला।
नंबर 4 जॉर्ज जोसेफ  इंश्योरेंस कंपनी में कमिशन बेसिस पर नौकरी करता है। सूटेड - बूटेड। ये 26 साल का नौजवान बात करने में बहुत ही चालाक है। शादी हुई नहीं है और न ही कभी करने का इरादा है। पूछो तो कहता है अरे यार सैलरी वाली जॉब थोड़े ही है और फिर कमिशन न मिली तो नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या। चलिए कोई तो एक समझदार आदमी है इस दुनिया में। इसकी दार्शनिक बातें सुनकर मैं सोचता।
नंबर 5 गुलज़ार चाचा। उम्र 50 साल। पहले प्रायवेट टैक्सी चलाते थे। अब कारलिफ्ट करते हैं। ताल्लुक रखते हैं पाकिस्तान से। जिस तरह अपनी नमाज़ें पढ़ना नहीं भूलते उसी तरह किसी की मदद करने से कभी नहीं चूकते। हर बात में अल्लाह का करम है। अल्लाह का फ़ज़ल है। बीवी के इंतकाल के बाद बेटे को यहाँ लाने की लाख कोशिशें की मगर नाकामयाब रहे। आख़िर में बेटा बगैर वीसा के पासपोर्ट के ओमान की सीमा पार करते वक्त पुलिस के हाथों पकड़ा गया। अब जेल में बंद है। किसी बात का कभी गम नहीं करते। न दुनियावालों से शिकायत करते हैं और न ही अल्लाह से। खुश रहते हैं और सबकी खुशी चाहते हैं।
सब वक्त का कमाल है। वक्त का खेल है। वक्त बदलता रहता है। हम इंसान वक्त के हाथों मजबूर है। अरे हाँ वक्त ( घड़ी की ओर देखता है, फिर खुद से ) अभी थोड़ा वक्त बचा है। थोड़ा काम कर लूँ। (बैग निकालता हैए खोलता है। कुछ चीज़ें यहाँ वहाँ से उठाकर बैग में डालता है। डालते वक्त किसी दूसरे के मोजे या बनियान हाथ में आ जाते हैं। उनका साइज दर्शकों को दिखाकर कहता है - नहीं, ये मेरा नहीं है। हँसता है फिर दर्शकों से) ये सब तो होता रहेगा लेकिन अगर आप बोर होकर यहाँ से उठकर जाने लगें तो मुझे ज़रूर बुरा लगेगा।
हाँ, तो पहले दिन शाम को हम पाँचों निवासी एकत्रित हुए। मुझसे मिलकर सबों ने खुशी जताई। जयदीप ने पहले दिन किताब नहीं पढ़ी सब उसका मज़ाक उड़ा रहे थे। होटल की नौकरी इस कमरे में की पहली बार बलराम ने वॉकमन की बजा रेडियो चलाया। जॉर्ज ने इस फ्रिज में से ( कह कर फ्रीज खोलता है अंदर जॉर्ज ने अपने कपड़े रखे हुए हैं दो - तीन दारू की बोतलें टूथ ब्रश, टूथदृपेस्ट, सोप आदि रखे हुए हैं) जॉनी वॉकर रेड लेबल की बोतल खोली गुलजार चाचा के लिए सुनीता आँटी से माँगकर पेप्सी की बोतल लाई गई। चीअर्स एवरी बडी चीअर्स चीअर्स तब तक खुशी मनाते रहे जब तक के सुनीता आँटी ने दरवाज़े पर दस्तक देकर ये नहीं कहा - कल शुक्रवार नहीं है। काम पर जाना है ना! सुनीता आँटी की आवाज़ में अपनापन था।
जो खुशी मुझे अपने परिवारवालों के बीच या फिर केके के घर में नहीं हासिल हुई थी, उस खुशी का एहसास मैं महसूस कर रहा था। दोस्तों मेरी आँखों से आँसू बह निकले। खुशी के आँसू, खुशियों के शहर दुबई में।
दूसरे दिन सुबह बलराम गा रहा था रफी साहब का गाना - आँचल में सजा लेना कलियाँ ... हम पाँचों के बीच बाथरूम सिर्फ एक ही था। सूटेड - बूटेड जॉर्ज ब्रश कर रहा था।
चूँकि बलराम बाथरूम के अंदर गा रहा था। सब उसे आवाज देकर बुला रहे थे - रफी साहब, गाना बंद कीजिए। हमें भी बाथरूम जाने का मौका दीजिए। मुझे कहीं नहीं जाना था। बैठकर तमाशा देख रहा था और मजे ले रहा था। जॉर्ज से पूछ बैठा - अबे तू नहाएगा नहीं क्या? जॉर्ज ने ब्रश नीचे रख कर जवाब दिया -शाम को,अभी थोड़ी ना अपॉइंटमेंट है यार। अभी जाकर क्लाइंटस को फोन करूँगा अपॉइंटमेटस लूँगा।
- तो फिर ये सूट - बूट ...।
- यार जब तक ऑफिशियल ड्रेस पहनकर नहीं बैठूँ ऑफिशियल बात करने का मूड कैसे बनेगा? अरे भैया, बिजनेस की बात करने के लिए वैसा माहौल बनाना जरूरी है।
जयदीप हाथ में किताब लेकर जा रहा था डयूटी पर। मैंने पूछा - ये क्या बोला? वेटर की नौकरी से जब थोड़ी बहुत फुरसत मिल जाएगी ना तो पढ़ लूँगा। पढ़ने का शौक है ना तो पढ़ना थोड़े ही छोड़ूँगा। गुलजार चाचा ने मुझे सलाम कर पूछा - बच्चा तुमको किधर जाने का होगा। मैं छोड़ दूँगा। मैंने कहा - नहीं...
- अरे, डरो मत बच्चा, इधर बैठ के क्या करेगा चलो हमारे साथ तुमको घुमाएगा दुबई का सैर कराएगा। चार दोस्तों से मिलाएगा सलाम - दुआ कराएगा चलो - चलो। मुझे खींचकर साथ ले गए। काफी दिनों से घर पर फोन नहीं किया था। प्रीपेड कार्ड खरीदा फोन मिलाया। बाबूजी, माँ, भाभी, भैया और नीमा सबसे खूब बातें की। सबने यही कहा - निराश मत हो अभी वक्त बाकी है ना विज़ीट विसा एक्स्पायर होने में। उनकी तसल्ली और इन मिसेस सुनीता पुनवानी के चार और किरायेदारों की संगत में कुछ और दिन हँसी - खुशी गुजर गए। यहाँ हर कोई दुखी होने के बावजूद खुश होने का अभिनय बखूबी निभाता था। सुनीता आँटी ने खाना पकाने की सुविधा दी थी। जिसका जो मन करे पकाता खाता और खिलाता। घरों से पार्सल आने पर सब साथ मिलकर आपस में बाँटकर खाते खिलाते। चिठ्ठियाँ पढ़कर सुनाते। एक दूसरे को सलाह देते। टाइमपास के लिए कैरम खेलते, ताश खेलते, शतरंज खेलते। पासवाले कमरे के लड़कों को बुलाकर मैदान में क्रिकेट या फूटबॉल तक खेलने चले जाते। कमरे को अक्सर गंदा ही रखते। पर वक्त मिलने पर मिल - जुलकर सफाई करने का प्रोग्राम बना लेते। फिल्में देखते कभी थियेटर चले जाते।
हमेशा इस बात का ख़याल रखते कि मैं तनहा न रहूँ। मैं भी इतना घुलमिल गया था, पता ही नहीं चला के वक्त कैसे गुजर गया और आज मेरा विजिट वीसा एक्स्पायर होने का दिन आ गया था। मुझे आज वापस जाना है अपने देश - भारत। अपने देश लौटने की खुशी किसे नहीं होती मगर मैं दुखी हूँ। अपनी आयु के पच्चीस सालों में इतना दुखी मैं कभी नहीं हुआ था। क्या वजह थी? दुबई आकर इन तीन महीनों में मैंने जिंदगी का एक अलग रूप देखा है। जीने का एक अलग मतलब पाया है। इस परदेस में रहनेवाले देशवासियों से कितना कुछ सीखा है। हे भगवान, मैं वापस क्यों जा रहा हूँ। क्या करूँगा वहाँ वापस जाकर? फिर वही घर, वही परिवारवाले, वही ताने, वही गिले - शिकवे, शर्माजी की शिकायतें और वही चिकी। इन तीन महीनों में उसने कभी फोन नहीं किया था। भाभी ने बताया था - धनेश, मालूम नहीं किधर रहती है। क्या करती है। ज़्यादा बात नहीं करती। तुम्हारे लिए पूछती तक नहीं। क्या चिकी मुझे भूल गई थी। एक वही तो थी मेरी अपनी जिसपर मैं अपना रोब जमा सकता था। जिसकी दुनिया में मैं और मेरी दुनिया में वो थी। ये क्या हो गया भगवान? अगर मैं नौकरी पाकर वापस जाता तो मेरा वहाँ निश्चय ही स्वागत होता। अब तो मैं ऐसे महसूस कर रहा हूँ जैसे किसी मैदान- ए - जंग से एक हारा हुआ सिपाही लौट रहा हो। हे भगवान मैं सफल न हो सका। एक नौकरी नहीं हासिल कर सका मैं यहाँ? अब क्या मुँह दिखाऊँगा अपने घरवालों को? कितने दुःख की बात है कितनी शर्म की बात ...
कहकर फूटफूट कर रोने लगता है। धीरे धीरे अंधेरा छा जाता है। प्रकाश होने पर कमरे मे युवक अपना समान पैक कर रहा है। टेलिफोन की घंटी बजती है। वह फोन उठाता है।
- हैलो, चिकी क्या बात है। फोन क्यों नहीं किया इतने दिन। आय मिस यू चिकी। विश्वास करो मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है। क्या तुम्हारे हसबैंड को तुम्हारे बेटी की लीगल कस्टडी कोर्ट ने दी? अफसोस हुआ सुनकर। हाँ, मैं आज लौट रहा हूँ। यार मेरी नौकरी का कुछ भी नहीं हुआ। वैसे उम्मीद तो दिखाई है कुछ लोगों ने लेकिन यहाँ से लौटने पर पता नहीं अब ये लोग वीजा भेजेंगे भी कि नहीं। क्या तुम भी यहाँ आना चाहती हो। हम आएँगे। हम साथ आएँगे और काम ढूँढेंगे पर मेरे पास बिलकुल पैसे नहीं हैं। बाबूजी से लिए हुए पैसे भी मैं लौटाना चाहता हूँ। मुझे बेकार रहना पसंद नहीं है। मैं बेरोजगार नहीं कहलाना चाहता मैं नालायक, निकम्मा नहीं हूँ। तुम जानती तो हो यार बस मुझे तुम्हारा साथ चाहिए। मैं तुमसे शादी करूँगा। हम दुबई में रहेंगे इकठ्ठे। सच चिकी, मेरा विश्वास करना। आय लव यू, ओके मैं आ रहा हूँ चिकी बस मेरा इंतजार करना और याद रखना अंधेरा टलेगा फिर दीप जलेगा, फिर दीप चलेगा। (रिसीवर नीचे रखता है )
(पर्दा गिरता है )

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