इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

आइंदा अगस्त में आजादी नहीं लेंगे


कुबेर

सरकार ने मंत्रियों और अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई है। समस्या आम है। मामूली है। पर भौंक-भौंककर लोगों ने नींद हराम किया हुआ है। बड़ी मजबूरी है। नींद के लिए भौंकनेवालों का भौंकना बंद करना जरूरी है। समस्या है - ’अस्पतालों में बच्चे थोक के भाव मर रहे हैं।’
मंत्री ने बैठक शुरू करते हुए प्रमुख सचिव से मामले का डिटेल पूछा। 
सचिव ने कहा - ’’सर! सरकारी अस्पताल में कुछ बच्चे मर गये हैं।’’
’’कब?’’
’’इसी महीने में।’’
’’मतलब?’’
’’अगस्त महीने में, सर।’’
’’कितने?’’
’’यही, कोई तीन-चार दर्जन।’’
’’तीन-चार दर्जन? बच्चों के माँ-बाप के कुछ डिटेल हैं?’’ 
’’गरीब थे।’’
’’गरीब थे?’’
’’हाँ सर, ये तो मरते ही रहते हैं। कोई बड़ी बात नहीं थी। लोगों ने बात का बतंगड़ बना रखा है।’’
’’हम भी जानते हैं। पर आप अपनी भाषा ठीक कीजिए। वरना फिर बतंगड़ बन जायेगा। समझा करो यार। मजबूरी है। अमीर-गरीब में फर्क नहीं कर सकते हम।’’ अधिकारी के जवाब से मंत्री महोदय कुछ विचलित से लगे। स्थिर होने के बाद कुछ सोचते हुए उन्होंने फिर कहा - ’’बच्चों का इलाज निजी अस्पतालों में क्यों नहीं कराया गया?’’ 
’’सर! उनके माँ-बाप गरीब थे।’’
’’ठीक है। पर बच्चे राष्ट्र की संपत्ति होते हैं। राष्ट्रीय संपत्ति की हिफाजत जरूरी है। अब से देशभर में किसी भी बच्चे का इलाज सरकारी अस्पतालों में नहीं होगा। डिलीवरी भी नहीं होगी। डिलीवरी और बच्चों का इलाज निजी अस्पतालों में ही होना चाहिए। आदेश जारी कीजिए।’’
’’सर! गरीब माँ-बाप इसे अफोर्ड नहीं कर सकेंगेे।’’
’’तो सरकारी खजाने से अफोर्ड कीजिए न। राष्ट्र की संपत्ति की सुरक्षा राजकोष से हो, इसमें आपत्ति क्या है?’’
’’यस सर।’’
’’और सुनिए। निजी अस्पतालवालों से इसके लिए डील तय कर लीजिए। अच्छे से। समझ गये न?’’
 ’’यस सर, हो जायेगा।’’
’’और सुनिए। क्या पिछली सरकारों के समय बच्चे नहीं मरते थे?’’
’’सर! मरते थे।’’
’’कब-कब मरे, किस-किस महीने में मरे। कुछ डिटेल है आपके पास।’’
’’यस सर। सब अगस्त के महीने में ही मरे हैं।’’
’’तो ये बात है। मतलब, ’अगस्त में तो बच्चे मरते ही है।’ ...... यार ये कैसा घांच-पांच है। बच्चे मरते हैं तो अगस्त में। बाढ़ आती है तो अगस्त में। बाढ़ में लोग मरते हैं तो अगस्त में। पुल, सड़कें और पटरियाँ बह जाती हैं तो अगस्त में। फसले बरबाद होती हैं तो अगस्त में। और हाँ, देश भी तो अगस्त में ही आजाद हुआ था न?’’ 
’’यस सर।’’ 
’’मतलब, इन सबका अगस्त के साथ जरूर कुछ न कुछ कनेक्शन है।’’ 
’’डेफिनिट सर।’’ 
’’तो ढूँढिए न कनेक्शन। देख क्या रहे हैं।’’  
’’सर, मिल गया। कनेक्शन मिल गया।’’
’’खाक मिल गया। हवाई बातों से काम नहीं बनेगा। इस अगस्त कनेक्शन का पता लगाना जरूरी है। जांच कमीशन बिठाइए। और तुरंत रिपोर्ट पेश कीजिए।’’

अगस्त कनेक्शन की जड़ों को ढूँढने के लिए तत्काल ’रूट रिसर्च आयोग’ का गठन किया गया। आयोग में देश हित में सोचनेवाले महान राष्ट्रवादियों, विचारकों और चिंतकों को शामिल किया गया। समस्या की गंभीरता को देखते हुए आयोग ने पूर्ण सहयोगात्मक भाव से दिन-रात एक करके काम किया। दिन-दिनभर पसीना बहाया। रात-रातभर यौगिक साधनाएँ की। देखते-देखते आबंटन का सफाया हो गया। फिर आबंटन मिला। फिर सफाया हो गया। आबंटन मिलते रहे और सफाया होते रहे। आयोग आबंटन से तृप्त होने का प्रयास करता रहा। पर जन्मों की अतृप्त आत्माओं को तृप्ति कैसे  मिलती? डकारों की बौछारे शुरू हो गई। पर तृप्ति मिलती नहीं थी। डकार की आवाजें बाहरवाले न सुन लें इसके लिए विशेष सायलेंसर लगाये गये थे। सायलेंसर की भी बर्दास्त की सीमा होती है। यह सीमा भी जाती रही। बड़ी मजबूरी में आयोग ने सिफारिशें पेश की। सिफारिशों में कहा गया था - 
- देश और अगस्त महीने की कुंडली का मिलान करके देखा गया। हर जगह काल बैठा मिला। अकाल और अकस्मात घटनेवाली घटनाओं के मूल में ये काल ही हैं। काल दोष निवारण हेतु घटना स्थलों पर अविलंब सतत् सालभर तक चलनेवाले धार्मिक अनुष्ठानों को शुरू किया जाना उचित होगा। 
- अगस्त महीने का ’अ’ बड़ा ही अशुभ, अमंलकारी और अनिष्टकारी है। यह असत्य, अहंकार, अकाल और आसुरी शक्तियों का प्रतीक है। देश के समस्त कैलेण्डरों से इस महीने को विलोपित कर देना चाहिए। परंतु ऐसा करना एक क्रांतिकारी कदम होगा। क्रांतिकारी कदम उठाना इस देश की परंपरा में नहीं है। इससेे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। अतः व्यावहारिक रास्ता अपनाते हुए अगस्त के ’अ’ को ’स’ से विस्थापित कर इस महीने का नाम ’संघस्त’ कर दिया जाना उचित होगा। ’स’ सत्य, शुभ, सुमंगल और शक्ति का प्रतीक है। यह संगठन और संघ शक्ति का भी प्रतीक है।
- देश को अगस्त में ही आजादी मिली थी। आजादी के बाद से ही देश तरह-तरह की समस्याओं से घिरा हुआ है। अनैतिक और भ्रष्ट प्रवृत्तियाँ लोगों की मानसिकता में समाई हुई हैं। इन सबके मूल में भी यही, अगस्त का महीना है। इससे सीख ग्रहण करते हुए ’आइंदा अगस्त महीने में आजादी नहीं लेंगे’ ऐसा संकल्प पारित करना चाहिए।

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