इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

लोमड़ी की तरह नहीं, शेर की तरह बनो

एक बौद्ध भिक्षु भोजन बनाने के लिए जंगल से लकड़ियां चुन रहा था कि उसने कुछ अनोखा देखा। उसने एक बिना पैरों की लोमड़ी देखी जो ऊपर से स्वस्थ दिख रही थी। उसने सोचा कि आखिर इस हालत में ये लोमड़ी जिन्दा कैसे है
वह अपने विचारो में खोया था कि अचानक हलचल होने लगी। जंगल का राजा शेर उस तरफ  आ रहा था। भिक्षु भी तेजी से एक पेड़ पर चढ़ गया और वहां से देखने लगा।
शेर ने एक हिरन का शिकार किया था और उसे अपने जबड़े में दबा कर लोमड़ी की तरफ  बढ़ रहा था। उसने लोमड़ी पर हमला नहीं किया, बल्कि उसे खाने के लिए मांस के टुकड़े भी दे दिए। भिक्षु को यह देखकर और भी आश्चर्य हुआ कि शेर लोमड़ी को मारने की बजाय उसे भोजन दे रहा है।
भिक्षुक बुदबुदाया। उसे अपनी आँखों पर भरोसा नही हो रहा था। इसलिए वह अगले दिन फिर वहीं गया और छिप कर शेर का इंतजार करने लगा। आज भी वैसा ही हुआ। भिक्षुक बोला कि यह भगवान के होने का प्रमाण है। वह जिसे पैदा करता है, उसकी रोटी का भी इंतजाम कर देता है। आज से इस लोमड़ी की तरह मैं भी ऊपर वाले की दया पर जिऊंगा। वही मेरे भोजन की व्यवस्था करेगा।
यही सोचकर वह एक वीरान जगह जा के बैठ गया। पहले दिन बिता। कोई नहीं आया। दूसरे दिन कुछ लोग आए पर किसी ने भिक्षुक की ओर नहीं देखा। धीरे - धीरे उसकी ताकत खत्म हो रही थी। वह चल - फिर भी नहीं पा रहा था। तभी एक महात्मा वहां से गुजरे और भिक्षु के पास पहुँचे।
भिक्षु ने अपनी पूरी कहानी महात्मा को सुनाई और बोला - आप ही बताए कि भगवान मेरे प्रति इतना निर्दयी कैसे हो गया ? किसी को इस हालात में पहुंचाना पाप नही है?
- बिलकुल है। महात्मा जी ने कहा- लेकिन तुम इतने मुर्ख कैसे हो सकते हो? क्यों नहीं समझते कि ईश्वर तुम्हें उस शेर की तरह बनते देखना चाहते थे, लोमड़ी की तरह नहीं।
जीवन में भी ऐसा ही होता है कि हमें चीजे जिस तरह समझनी चाहिए उसके विपरीत समझ लेते हैं। हम सभी के अंदर कुछ न कुछ ऐसी शक्तियां हैं जो हमें महान बना सकती हैं। जरुरत है उन्हें पहचानने की,यह ध्यान रखने की कि कहीं हम शेर की जगह लोमड़ी तो नहीं बन रहे हैं।

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