संतोष श्रीवास्तव सम
दो चिड़ियाँ मेरे आँगन में
पंख फड़फड़ाती
और लिपटती
प्रेम तत्व की
अंग लगाती
आँगन पर पड़ती
शीत की धूप
खूब खिलाती
उनका रुप
बड़ी उछलती
फर - फर करती
इठलाती है
उड़ती है
दो चिड़ियाँ है
पर बीच की जैसी
घेर रही है
सारा आँगन
अथाह उत्साह
जगा रही है
भाव एक सा
लेती है
दो चिड़ियाँ मेरे आँगन में
जीवन की उमंग
बताती है।
पंख फड़फड़ाती
और लिपटती
प्रेम तत्व की
अंग लगाती
आँगन पर पड़ती
शीत की धूप
खूब खिलाती
उनका रुप
बड़ी उछलती
फर - फर करती
इठलाती है
उड़ती है
दो चिड़ियाँ है
पर बीच की जैसी
घेर रही है
सारा आँगन
अथाह उत्साह
जगा रही है
भाव एक सा
लेती है
दो चिड़ियाँ मेरे आँगन में
जीवन की उमंग
बताती है।
बरदे भाटा, कांकेर
जिला - कांकेर (छ.ग.)
जिला - कांकेर (छ.ग.)
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