इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

सोमवार, 21 अगस्त 2017

पनही

सत्‍यनारायण पटेल 

चार .पाँच दिन से भिड़कर पूरण ने एक जोड़ी पनही तैयार की थी। उसके बाप.दादा भी पटेलों के लिए पनही और पटलनों के लिए बाणा गढ़ते. गढ़ते ही मरे.खपे थे। यह पूरण का ख़ानदानी काम था। पनही में एक.एक टाँका बहुत मन से टाँकने के बाद पूरण उन्हें चमकाने में जुटा था।
पूरण की बाखल में पनही व बाणा और लोग भी गढ़ते थे। लेकिन पूरण के हाथों के हुनर की बात कु़छ  अलग ही थी। गाँव वाले कहतेए पनही ढोर की खाल से नहींए बल्कि हिरदे की खाल से गढ़ता है। खासकर गाँव के खास पटेल यानी मुखिया के पैरों को केवल पूरण के हाथों गढी़ पनही ही जँचती।  किसी और के हाथों गढी़ पनही पटेल को हड़की टेगडी़ ;  पागल कुतिया द्ध. सी दूर से ही भमोड़ने ; काटने द्ध दौड़ती। पूरण के बाखल वाले भी पूरण जैसी पनही गढ़ने की कोशिश करतेए पूरण से पूछते और उसकी पुरानी ड़िजाइन की देखा.देखी गढ़ते भी। लेकिन वे उसके काम के आस.पास भी नहीं पहुँच पाते। पूरण की पनही तारों भरे आसमान में शुक्र की तरह क्षण में चीन्ही जा सकती थी। उस दिन भी उसने पटेल के लिए नई ड़िजाइन की पनही गढ़ी थी। देने जाने से पहले उन्हें चमका रहा था।
पटेल शौकीन मिज़ाज था। उसे एक सरीखा स्वाद लगातार नहीं भाता। ज़ायका बदलते रहना पटेल के स्वभाव का हिस्स था। वह खान.पानए रहन.सहन के तौर.तरीक़े ही नहींए बल्कि खेती.बाड़ी में फ़सलों की कि़स्में उपजाने का ढंगए गाय. बैल व भैंस तक की नस्लें बदल.बदलकर ख़रीदता. बेचता। उसे नई.नई  व  ख़ूबसूरत चीज़ें भातीं। उसे चीज़ों की परख भी थी। पूरण यह सब जानता था इसलिए जब भी पनही की नई जोड़ी गढ़ताए बिल्कुल नई कि़स्म की ही गढ़ता।
सबेरे से काम में भिड़े पूरण ने गरदन तक ऊँची नहीं की थी। एक जगह बैठे.बैठे कूल्हे जलने लगे थे। जब बीड़ी की तलब बेकाबू हो गईए तो उसने कान के पीछे खोंसा बीड़ी का अद्दा निकाला। अद्दे का मुँह हल्के से दबायाए फूँका और ओठों के बीच रखने से पहले अपनी बैराँ ; पत्नी द्ध पीराक से बस्ती ; चिंगारी द्ध माँगी।
पीराक चूल्हे पर रोटी सेंक रही थी। उसने बग़ैर कुछ बोले अग्गुन में धरी एक पतली लकड़ी से चूल्हे के भीतर से चिंगारी खींची और हाथ से पकड़कर पूरण की ओर उछाल झट से अँगुलियाँ पानी में डुबायीं और फिर से रोटी पलटने लगी।
पीराक आख़िरी रोटी सेंकने के बाद टापरे से बाहर सेरी में जाकर एक टूटा टोपला नरेटी की रस्सी से बाँधकर ठीक करने लगी। पूरण बीड़ी पीकर फिर अपने काम में जुट गया।
पहले पूरण अपने लिए भी बढ़िया पनही गढ़ना और पहनना चाहता था। उसने अपने ब्याह की बखत एक जोड़ी पनही अपने लिए गढ़ी भी थीए जिसे कभी.कभार परगाँव या हाट बाज़ार जाते बखत गाँव से बाहर आड़े.छुपके पहनता और गाँव की सीमा लगते ही उतारकर थैली में रख लेता। इससे  पनही पहनने की हरस भी पूरी हो जाती थी और गाँव के पटेलों के सामने नीची जाति के लोगों का पनही नहीं पहनने के रिवाज का मान भी रह जाता था।
लेकिन एक बार ?सा हुआ कि पूरण पीराक को पीहर से ला रहा थाए गाँव की सीमा अभी काफ़ी दूर थी कि रास्ते में अनायास ही पटेल के सामने पड़ गया। पूरण को पनही पहना देख पटेल फूँफाया और मुँह भर गालियाँ बकीं। तब पटेल का मन तो हुआ कि वहीं पनही से मार.मार कर पूरण का कचूमर बना देए लेकिन पटेल जल्दी में था। ज़्यादा कुछ न कर उस बखत पूरण को जाने दिया। साँझ को लौटते ही भरी पंचायत में पूरण को नाक रगड़कर माफी माँगने और पूरे गाँव में झाड़ू लगाने की सजा दी। उस दिन के बाद पूरण ने कभी पनही में पैर नहीं डाला।
पूरण का मन पटेल जैसे लत्ते.कपड़े पहनने का भी होताए पर उसके पास धोती के केवल दो टुकड़े थेए जिसे बदल.बदलकर पहनता। फतवी तो एक ही थी। फतवी में चिलड़े ; कपड़ों में होने वाली जूँए द्ध पड़ जाते। जब चिलड़े काँख में काटते वह मन लगाकर न काम कर पाता और न ही रात में चैन से सो पाता। इसलिए वह टापरे में रहते अक्सर फतवी नहीं पहनता था।
पूरण की बैराँ की दशा और भी ख़राब थी। उसके लुगड़े में कई जगह थेगली लगी थी और पोलका छन.छन कर फट रहा था। एक जोड़ी कपड़ों की वजह से वह नदी पर नहाने नहीं जाती थी। टापरे पिछवाड़े भी नहाती तो अँधेरे में नहातीए ताकि आते.जाते या पटेलों के खेतों में काम करते लोग उघड़ा बदन न देख सकें। जब आठ.पन्द्रह दिन में लुगड़ा.पोलका धोना होताए रात में ही धोती। जिस रात अपने कपड़े धो देतीए उस रात पूरण की धोती का एक टुकड़ा लपेट कर सोती।
पूरण और पीराक का एक ही छोरा था दृ पाँच बरस का परबत के लिए हमेशा पीराक थेगलियाँ जोड़ दृजोड़कर कुछ न कुछ बना देती और यों पहनाती मानो एकदम नए कपड़े पहना रही हो। असल में उन्होंने परबत को कभी सपने में भी नए कपड़े नहीं पहनाए थे
पूरण  को पनही गढ़ने के बदले पटेल लोग जो अनाज देतेए उसमें कभी पूरा पेट ही नहीं भरता थाए कपड़ों की तो सोचना भी दूर ! जब पूरण व पीराक के कपड़े गलकर तार.तार हो जाते और बदन नहीं ढँक पातेए तब कोई दया दिखाता और पनही के बदले अनाज के साथ.साथ उतरन.पुतरन के कपड़े भी दे दिया करताए जिन्हें सुई.धागे से वे अपने नाप का बना लेते।
उस दिन जब पूरण तैयारशुदा पनही लेकर बाहर निकलाए पीराक की आँखें चौंधिया गईं। वह आँखों के आगे हाथ से छाँव करती बोलीए श्पनही असी चिलकी.री है कि पटेल अपनी मूँछ का काला.धौला बाल अलग.अलग गिन लेगो। आज बात करो जोए एक जोड़ी पनही का बदले एक सेर अनाज कम पड़ेए थोड़ो.घणू बढ़यी दे तो नजए नी बढ़ावे तो अड़बी मत पड़जो। जसै.तसै घसरो ;कामद्ध चली रियो है।श्
श्घसरो तो कीड़ा.मकौड़ाए जन.जानवर को भी चलेए पर3श् पूरण ने पीराक से कहा नहींए केवल सोचाए श् मैंने पनही गढ़ने में जो माथा दृपच्ची कीए उसके बदले पटेल की पृ्री फ़सल भी कम है। वह पेट भरने पुरता दे देए यही बहुत है ।श् पर प्रकट में पूरण बोलाए श्पहला पटेल को मन देखूँवाँए नज रहा तो बात करूँवाँ।श्
पूरण पनही की नई जोड़ी लेकर गाँव के नुक्कड़ पर चाय की गुमटी के सामने से गुजर रहा था। तभी देवा बा ने हाँक दीए श्? पूरण्या नीची घोग ; गरदन द्ध से कहाँ जा रहा हैए याँ आ।श्
गुमटी के पास बिछे तख़त पर देवा बा और उनके सरीखे फ़ुरसतिये ताश खेल रहे थे। उनाले ; गर्मी द्ध  के दिनों में या घनघोर बरसाती झड़ी में ; जब खेतों में काम नहीं होता या किया नहीं जा सकता द्ध लोग ताश खेलते। जिन लोग की औलादों ने बड़े होकर खेती.बाड़ी का कामकाज सँभाल लिया थाए वे देवा बा की तरह काम के झंझट से मुक्त हो चुके थे। हर मौसम में सबेरे से साँझ तक चौखड़ीए देहला पकड़ और छकड़ी जैसे ताश के खेल खेलते। एक दृदूसरे को कोट देने पर चाय पीते.पिलातेएसेव.परमल खाते.खिलाते। ताश खेलने वालों के धूप व बरसात से बचाव के लिए तख़त के ऊपर तुअर की साँटीए बाँस की चिपटए मोम पप्पड़ आदि से बनाया टटर तना रहता। तख़त के ऊपर बैठे लोगए आते.जाते लोग को टोका.टोकी कर पूरे गाँव की रमूज ; सूचना.जानकारी द्ध लेते रहते। उस दिन भी देवा बा ने ?सा ही कुछ सोच पूरण को हाँक दी थी और जब वह नजदीक आ गयाए तब देवा बा ने पूछाए श् पनही किसके लिए ले जा रहा है घ् श्
श्पटेल साब का वास्ते बणई है हुजूर।श् पूरण गरदन झुकाए हुए ही बोला। देवा बा ताश फेंटते . फेंटते अपने सामने बैठे भिड़ू की ओर बाईं आँख झपकाते बोलाए श्पूरण्याए पनही तो घणी ज़ोरदार दिखी री है। या जोड़ी म्हारे दी दे और अभी म्हारा बदन को यो कुर्तो तू ली लेए बोल मंजूर है।श्
पूरण कुर्ते का सुन न चौंकाए न ललचाया और न ही पलकें उठाईं। एक बार उसने नई डिज़ाइन की पनही गढ़कर पटेल के पड़ोसी छगन को दे दी थी। जब पटेल ने छगन के पाँव में नई डिज़ाइन की पनही देखीए वह छगन से कुछ नहीं बोलाए लेकिन उसके बाल सुलग उठे थे। उसने पूरण को बुलवाया और पनही से मार.मारकर बाबरा ; माथा द्ध फोड़ दिया था।
उसी दिन पूरण ने अपनी धोती के पल्लू में गाँठ बाँध ली थी कि नई डिज़ाइन की पहली जोडी पटेल को ही देगाए लेकिन उस बात को याद कर  लोग यदा.कदा छेड़ा करते और देवा बा ने भी शायद वही बात याद कर चुटकी ली थी। लेकिन पूरण गरदन ऊँची किए बग़ैर धीमे स्वर में बोलाए श्आप भी हुज़ूर मज़ाक़ उड़ाते होए पूरा गाँव जानता हैए नवी डिज़ाइन की पहली जोडी पटेल साब पहनते हैं।श्
देवा बा ने ताश फेंटकर बाटँ दी और वह तुरूप छापने की ताक में थाए पूरण की ओर देखे बग़ैर कहाए श्चल जा पटेल को हो पहना दे।श्
पूरण फिर पटेल के घर की तरफ़ बढ़ा और चलते.चलते रास्ते में पीराक की अनाज बढ़ाने की बात याद कर सोचने लगाए पीराक से कह तो दिया कि बात करूँवाँए लेकिन पटेल ने कभी किसी हाली ; बंधुवा मजदूर द्ध व दाड़क्या ; छुट्टा मजदूर द्ध तक का पयसा.अनाज नहीं बढ़ाया। बाप.दादों के ज़माने से वही चला आ रहा है। बाक़ी के लोग भी पटेल की देखा.देखी ही देते हैं। पनही का अनाज बढ़ाने की बात सुन भड़क न उठेए वरना दूध के साथ में दोणी भी गई समझो।
पूरण इन्हीं ख़यालों में उलझता.सुलझता छगन के घर के क़रीब पहूँचा तो पटेल की सेरी में पटेल के सामने उसका हाली खड़ा दिखाई दियाए जिसे वह जाने किस वजह से या बेवजह गलियाँ बक रहा था।
पूरण को दूर से माजरा कुछ कम समझ में आ रहा था। वह थोड़ा और आगे बढ़कर छगन के घर के सामने इमली के झाड़ की ओट में बैठ गयाए ताकि पटेल की नज़र में आए बग़ैर उसकी बात सुन सके। पटेल व हाली के बीच एक खाट भी बिछी थीए पर पटेल खाट पर नहीं बैठ रहा था। वह ग़ुस्से भरे क़दमों से आठ.दस क़दम आगे और इतना ही पीछे धम्म.धम्म चल रहा था। उसके पैरों में फून्दे डिज़ाइन की बोलने वाली पनहियाँ थीं। फून्दे पनहियों की नाथनों पर कभी दायेंए कभी बायें दो चोटियों में गूँथे लाल रिबन के फूँदों की तरह झूलते। वह जब गालियाँ नहीं बकताए चुप रहताए उस क्षण पनहियों की आवज़ पूरण तक भी आती।
यह बोलने वाली पनहियाँ भी पूरण ने ही गढ़ी थीं। पूरण ने इनके तलवों के बीच बबूल का एक.एक बीज ?सा जमाया था कि इन्हें पहन जब पटेल चलताए तब इनसे फूटता स्वर कानों में मिठास घोलता थाए लेकिन उस दिन पनहियों से किसी के दम घुटने का स्वर निकलता सुनाई पड़ रहा था। पूरण यह सब देख.सुन सोचने लगाए चौघड़िया खराब लगता है। पटेल ख़ूब खीझा हुआ है। अभी पनही भी ख़राब बता सकता हैए जाऊँ कि नहीं जाऊँ।
पूरण का डाँवाडोल मन एक जगह नहीं टिक रहा था। पनहियाँ गढ़ने में उसने अपनी तरफ़ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी। देवा बा ने भी पनहियों को अच्छी बताया थाए लेकिन उसने मन ही मन बुदबुदाया दृ भरोसा की भैंस पाड़ा भी जण सकती है। वो एक पनही हाथ में उठा देखने लगा दृ इस बार उसे पनही की नाथन पर टँके फूल पीराक की आँखें लगे। पनही का ऊपरी हिस्सा जिसके नीचे पाँव का पँजा रहताए वह पूड़ी.सा दिखा। पनही की कमर का कटाव देखए वह मुग्ध हो गया और पैर की एड़ी ढँकने वाला भाग देख फिर पीराक आँखों में उतर आई। लेकिन पनही के तलवे में एड़ी व पँजों के नीचे ठुकी नाल छूकर पूरण काँप उठाए पिछली बार नाल से फूटा बाबरा याद हो आया। फिर जैसे भीतर से ही किसी ने हिम्मत बँधायी दृ पनहियाँ खराब नहीं हैंए बल्कि जँचने पर पटेल अनाज भी बढ़ा सकता है।
उसने आख़िरी बार पनहियाँ औंधी. चीती कर धैर्य  से देखीं और हिम्मत भरे क़दम पटेल के घर की ओर बढ़ाता ख़ुद से बोलाए श्अब जो होगाएसो होगा।श्
पटेल ख़ाट पर बैठा चाय पी रहा था। पूरण उसके नज़दीक पहूँचा और झुककर हाथ जोड़ता बोलाए श्पगे लागूँ हुज़ूर।श्
श्हूँए बना लायाए देखता हूँ खड़ा रह ज़रा।श् पटेल कप.बस्सी खाट के नीचे धरकर बोला। खाट पर बैठा पटेल चाय के बाद हथेली पर तमाखू दृ चूना रगड़ने लगा। अच्छी तरह रगड़कर ऊपर.ऊपर की बड़ी पत्तियाँ चिमटी में लीं और बारीक को हथेली से झटकारा। फिर बड़ी पत्तियों को बाएँ गलफ़े में दबाया और तमाखू  वाली हथेली जाँघ पर पोंछी।
पटेल का मुँह जल्दी ही तमाखू के रस व थूक से भर गया। उसने दाँतों के बीच से पिचिर्रर्र कर थूकाए कुछ छींटे पनही पर गिरे। पनही भी पटेल की और थूक भी पटेल काए लेकिन जब थूक पनही पर गिरा तो पटेल ने पहले पनही और फिर पूरण की ओर यूँ घूरा जैसे पूरण से कोई अपराध हो गया हो। पूरण ने घूरने का मतलब समझा और पनही पर पड़ा थूक झटपट फतवी से पोंछ दिया।
थूक पोंछना अनदेखा कर पटेल बोलाए श्लाए पनहियाँ देए पैर डालकर देखूँ ज़रा।श्
पटेल पैर डालने से पहले एक पनही हाथों में लेकर परखने लगा। उसे पनही की नाथन पर टँके फूल पटेलन के कानों के सुरल्ये लगे। एड़ी में ठुकी नाल छूकर बरबस ही मुँह से निकलाए श्खींचकर किसी को मार दो तो जीव निसरी जाए।श्
पनही की सिलाई व तलवों के टाँके देख बुदबुदायाए श्साले ने टाँके ?से ग़ज़ब टाँके जैसे ज्वार के दाने चिपका दिए।श् फिर पनही धीरे से धरती पर धर पहनी तो पटेल के चेहरे पर उभरे सुख से लगाए जैसे मखमल से गढ़ी पनही पहन ली है।
पूरण आशंका से भराए पनही जाँचते.परखते पटेल के चेहरे पर बनती.बिगड़ती सिलवटों को समझने की कोशिश कर रहा था। वह कभी पटेल की मूँछए कभी आँखें देखता और सोचताए पटेल क्या बोलेगाए कोई खामी न बता दे। लेकिन पटेल को कोई खामी नज़र नहीं आई और वह गदगद होता बोलाए श्छिनाल का पूरण्याए तू है तो कारीगर को मूतए इमे कोई दो राय नहीं।श्
पटेल को ख़ुश देखए पूरण के मन में पीराक की कही बात टाँगें पटकने लगी। उसने हिचकते.हिचकते अनाज बढ़ाने की बात कहीए लेकिन अपनी बात कहते ही उसके मन में आया कि यूँ ही कहाए पटेल ख़ुश हैए वैसे भी कुछ न कुछ देगा ही। वह ख़ुद पर खीझाए घड़ी भर सबर नहीं कर सका।
पटेल ने अनाज बढ़ाने का सुना तो उसकी लम्बी नाक भट्टी में तपे हल का लाल कुश्या बन गई। आँखें फैलकर पाड़े की आँखों के बराबर हो गई। पनही से पैर ?से झटककर बाहर खींचे जैसे पैरों में बिच्छू ने डंक गचा दिया हो और तन्नाकर बोलाए श्बता दी अपनी जात। एक सेर अनाज कम पड़ेए तो क्या एक जोड़ी पनही का मणभर लेगा घ् कुछ भी करोए तुम ढेड़ियों का पेट नहीं भरता।  सालों की नेत ;नियत द्ध ही खराब है। हमारे ढोर मरने पर तुम्हें खाल मोफ़त में मिलती है। खाने को मांस मिलता है। ढोरों के हड्डे बेच पइसे झोड़ते होए फिर भी एक सेर अनाज कम पड़ता है घ् ?सी क्या सोना की पनही गढ़कर लाता हैए और भोसड़ी सोना की भी गढ़ी होय तो उमे दियो बालाँगा घ् श्
पटेल के जी में जो आया अंट.शंट बकता रहा। इतना गंदा.भद्दा कि पूरण के कान लाल हो गए। पूरण को उम्मीद न थी कि ख़ुश दिखता पटेल अचानक भुर्राल्या ; चक्रवात की तरह ग़ुस्सा द्ध हो जाएगा। पटेल के ग़ुस्से से हड़बड़ाए पूरण ने सोचाए श्अब क्या करूँ घ् कह दूँए हुज़ूर आफ़त पड़ी री थी तो कह दिया। नहीं बढ़ाना चाहो तो मत बढ़ाओ। पर भुर्राल्या मत होओए म्हारो छोटो.सो छोरो हैए दया करो माई.बाप।श्
जब यही सोचा हुआ कह्ने को पूरण ने मुँह खोलाए तो मुँह से निकलाए श्ढोर घीसने के काम में इतरो ही तमारे नज़र आवे तो तम करोए म्हारे नी करनू है।श् और तेज़.तेज़ क़दमों से टापरे की ओर बढ़ चला।
पूरण की बात पटेल का कलेजा छेद गई। उसे उम्मीद न थी कि पनही गढ़ने वाला उसे ?सा जवाब देगा। वह तत्काल कुछ करताए तब तक पूरण जा चुका था। पटेल के भीतर आग लगी थीए तभी सामने उसका ग्वाल आ गया। ग्वाल क़स्बे से साइकिल पर रखकर खली का बोरा लाया थाए उसने पूछाए श्हुज़ूर यो थैलो काँ धरूँ घ्श्
श्थारी माई की उकपे धर देए चोर का मूत ढेड़िया मालम नी हैए हमेशा थैलो काँ धरे है।श् पटेल बोला और ग्वाल की पीठ पर सड़.सड़ दो.तीन पनही जड़ दी।
पटेल जब अपनी सेरी में भुर्राल्या हो रहा थाए छगन अपने घर में बैठा.बैठा खाना खा रहा था। उसके कानों को पटेल की आवाज़ अस्पष्ट.सी छू रही थीए जिससे छगन यह तो समझ गया था कि पटेल किसी पर भुर्राल्या हो रहा हैए लेकिन किस पर और क्यों घ् यह उसे सम्पट नहीं पड़ी थी। वह खाने के बाद पटेल के ओसारे में आयाए तब तक हालीए पूरणए ग्वाल जा चुके थे। पटेल अकेला खाट पर बैठा था। छगन माहौल में अजीब कि़स्म कि गर्माहट महसूसता दबे सुर में बोलाए श्राम.राम काकाश्
पटेल ने झुलसाए शब्दों में जवाब दियाए श्राम दृराम ए आ बैठ छगन।श् छगन छरू फुटे लम्बे.चौड़े डील.डोल के अलावा गाँव में पटेल की बराबरी का किसान था। पटेल.सा रोबीला और मनमौजी  नहींए पर काले दिल का ज़रूर वो हरे.भरे झाड़  के गोड़ में छाँछ डाल कब सुखा देए पता ही नहीं चलता। वो साँझ.सवेरे फ़ुरसत मिलते ही पटेल के पास आकर बैठ जाता। वे एक.दूसरे के परिवारएग्वाल और हाली तक की बातें आपस में करते। दोनों की उम्र में दस.बारह बरस के फ़क़र् के बावजूद उनके बीच घी.गाकर.सा हेत ; प्रेम द्ध था। पूरण और बाखल के लोगों की नज़र में वे बबूल के ?से  काँटे थेए जिनके मुँह दो और कमर एक  थी।
छगन अपने कुर्ते की जेब से जर्दे की डिबिया निकाल खाट पर बैठा और हथेली पर जर्दा मसलता पटेल की ओर देखने लगा। पटेल कहीं खोया हुआ लग रहा था। उसके भाल की कुछ ज़्यादा ही सिकुड़ी रेखाओं के पीछे भी कुछ सुलगता.सा महसूस हो रहा था।
श्कोई उलझन है काकाश्ए छगन ने पूछा।
श्ढ़ेड़िये ज़्यादा मुँहज़ोर हो गए हैं छगनए आजकल आग मूत रहे हैं और अंगार खा रहे हैंए  इनकी जल्दी ही कोई टाँणी  करना पड़ेगी।श् छगन की हथेली से चिमटी भर जर्दा लेकर अपने गाल और गलफ़े के बीच धरकर बोला।
श् या बात तो साँची है काकाए जिसे देखो वो अवँलाता ; ?ंठता द्ध हैए टाँणी नहीं की तो वो दिन दूर नहींए जब ढेड़िये हमारे माथे पे मूतेंगे।श् छगन ने अपने निचले होंठ व दाँतों के बीच जर्दा दबाने के बादए सहमति में मन भर का माथा हिलाते हुएा कहा।
श्आज ही3 तू ज़रा अपनी बलन के छोरों को बुला।श् पटेल ने शब्दों को चबाया।
श्ज़रा धीरपय से काम लो काकाए काम असो करो कि खेत से डूंड खोदई जाए और न बख्खर की पाज टूटे न बोठी होये।श् छगन ने कुछ सोचते हुए कहा।
पूरण ताव.ताव में पटेल से जो कह आया थाए उससे ख़ुद बहुत डरा हुआ था। वह न टापरे में बैठ पा रहा थाए न दूसरी पनही गढ़ने को सोच पा रहा था। अपनी ग़लती और पटेल के ख़ौफ़ के संबंध में सोचते.सोचते पसीने से भीग रहा था। ?सी हालत में उसे कच्ची भीत पर माँडने माँडती पीराक के हाथए गोबर की बजाय कीचड़ में सने नज़र आए और उसे समझ ही नहीं आया कि पीराक कीचड़ से भीत पर क्या कर रही है घ्
पूरण को देख पीराक ने दुरूख व चिंता से उबराते हुए हाथ धोएए पानी का गिलास लायी। अपने सोच में गुम पूरण ने गिलास ठीक से पकड़ा नहीं और गिलास उसके हाथ से छूट पड़ा। आँगन में फैला पानी पूरण को ख़ून दिखा और वह चीख़ने लगा।
पीराक ने धूजते हाथों से पूरण क माथा छुआए वो तप रहा था। उसे बुख़ार आ गया था। पूरण को जब कभी बुख़ार आताए उसे बुरे.बुरे सपने आते। कुछ भी बड़बड़ाता। कभी पीराक के सीने में मुँह छुपाताए कभी हाथ में राँपी लेकर सोता। कभी भैंसे पर सवार यमराज को अपनी ओर आता देखता और पीराक से कहताए श्यमराज के भैंसे को मार उसकी खाल ; चमड़े द्ध से पटेल के लिए पनहियाँ बनाऊँगा।श् कभी उसे भैंसे पर यमराज की जगह पटेल ही नज़र आता और वह डरकर बचाओ.बचाओ चिल्लाता और पीराक की छाती में मुँह गड़ाता। पूरण उस दिन भी ?सी ही अजीबो.ग़रीब हरकतें कर रहा था।
पीराक के लिए यह सब नया नहीं था। वह इससे पहले भी पूरण को ?सा करते देख चुकी थीए लेकिन उस दिन पूरण कुछ ज़्यादा ही भयावह हरकतें कर रहा था। घबराकर वह पड़ोसियों के टापरों पर गईए लेकिन कोई नहीं था। सब दाड़की ; मजदूरी द्ध गए थे। सोयाबीन की कटाई का सीजन था। लोग ढूँढ़े नहीं मिल रहे थे। पूरण साँझ तक छादरी पर लेटा रहा और पीराक पानी गालने का गलना भिगा.भिगाकर पूरण के करम पर धरती रही।
रात पड़े पूरण को देखने व मिलने उसके दो.तीन पड़ोसी आए। पूरण की बात सुन.समझ उसे ढाँढ़स बँधाया कि अब जो कह दियाए सो कह दिया। आख़िर कोई कब तक चुप रहेए एक न एक दिन तो बोलना ही पड़ता हैए ज़्यादा फ़िकर मत करए पूरी बाखल वाले तेरे साथ हैंए आगे जो होगाए सब मिल कर निपटेंगे।
हालाँकि पूरण के भीतर की धुक.धुकी मिटी नहीं थी। वह भीत से टिका बैठाए पीराक और परबत की ओर टुकुर.टुकुर देख रहा था। कुछ महीने बीत गए थे। किसी हाली और दाड़क्या की पिटाई नहीं हुई। पूरण से भी किसी ने कुछ नही कहा। किसी का ढ़ोर.डंगर नहीं मरा। किसी पर मूठ ; एक तरह टोना.टोटका द्ध मारने का आरोप नहीं लगा। एक तरह से सब कुछ ठीक.ठाक चलता रहा।
सुख पूजा का दिन नज़दीक था। जब भी गाँव में सुख पूजा की जातीए तब गाँव भेरू को रँगा जाताए नारियल चढ़ाया जाताए अगरबत्ती लगाई जाती और उसके ऊपर दो खंभों में टाँणा ; एक लंबी रस्सी में लाल कपड़े में नारियल आदि द्ध बाँधा जाता। टाँणे के नीचे से सभी ढोर.डंगर निकाले जाते। सुख.पूजा ढोर.डंगरों की सलामती के लिए हर साल की जाती। जब तक टाँणे के नीचे से सभी के ढोर.डंगर न निकल जातेए तब तक गाँव में किसी के घर में चूल्हा नहीं जलता।
पूजा के बाद पहले पटेल के घर के ऊपर धुआँ उठताए फिर और लोगों के घरों में  भी चूल्हे सुलगाए जाते। अगर किसी और के घर के ऊपर पटेल के घर से पहले धुआँ उठता नज़र आता तो उसे दंडित किया जाता। हालाँकि जिन लोगों के यहाँ स्टोव थे और जिन्हें उठते ही चाय पीने की आदत थीए वे बड़ी फ़जर में दूध.दुहने के वक़्त ही दूध.चाय उबालकर पी लेते थे।
देवा बा को उठते ही दो कप चाय लगती और नहीं मिलती तो उनका दिन आगे नहीं सरकता। वे घंटे.घंटे पर चाय पीने के आदी थे। गुमटी के तख़्त पर ताश खेलते रहने और चाय पीते रहने से यह आदत पड़ गई थी।
सुख पूजा की सुबह देवा बा के चौथे छोरे की बैराँ ने स्टोव जलाने की ख़ूब कोशिश कीए लेकिन स्टोव नहीं जलाए ख़राब हो गया था। बहू ने चूल्हे पर चाय उबाल दी और देवा बा ओसारी में खाट पर बैठा चाय पी रहा था।
छगन ने देवा बा के घर के ऊपर धुआँ उठता देखए झट से पटेल को भी बताया था। उसी बखत छगन सहित दो.तीन लोगों को साथ लेकर पटेल देवा बा से बोलाए श्आप बुजुर्ग ?सा करेंगेए तो गाँव में कौन नियम.क़ायदे मानेगा। आपको पंचायत का दंड भरना पड़ेगा।श्
देवा बा देव.दाड़म और पूजा.पाठ को अंधविश्वास और लोगों को ठगने के धंधे से ज़्यादा कुछ नहीं मानते थे। वे न कभी मंदिर जाते और न ही गाँव में होने वाले भजनोंए कथाओंएगरबों आदि में जाते। सुख पूजा के दिन टाँणे नीचे से अपने ढोर.डंगर भी नहीं निकलावाते। अब जो ये ढ़ोंग.धतूरा नहीं मानताए उसके लिए कैसा नियम और कैसा क़ायदा घ्
देवा बा ने यही बात पटेल और उसके साथ आए लोगों को समझाने की कोशिश कीएलेकिन पटेल मानने को तैयार नहीं था।  उसका कहना था दृआप नहीं मानतेएन मानेंएगाँव के और लोग तो मानते हैं। आपको गाँव के नियम दृ क़ायदों का ख़याल रखना पड़ेगा। और वह देवा बा से दंड भरवाने की ष् घई ष् ; जिद द्ध पकड़ने लगा।
देवा बा को पटेल से कोई डर दृ धमक तो थी नहींए न ही वह खेती दृ बाड़ीए पैसे दृ कौड़ी या जाति में पटेल से कम था। उसका परिवार भी काफ़ी  बड़ा था। वह अड़बी पड़ जाए तो पटेल से पटेली भी छीन सकता था। लेकिन उसे यह सब पसंद नहीं था। जब लाख समझाने पर भी पटेल नहीं मान रहा थाए तब देवा बा खाट पर से उठा और अपनी धोती की एक काँछ ऊपर उठाकर बोलाए श् लो उखाड़ते बने तो उखाड़ लो।श्
पटेल और उसके साथ आए लोगों को तूती दृ सा मुँह लेकर लौटना पड़ा था।
सुख पूजा के दिन पटेल और छगन टाँणे के नीचे खड़े होते।एक के पास दूध और दूसरे के पास गोमूत्र की बाल्टी  होती। एक तरफ़ से ढ़ोरों पर नीम की डाली से दूध और दूसरी ओर से गोमूत्र छींटते। सुख पूजा के तीन.चार दिन पहले गाँव में डोंडी फिरवा दी जातीए ताकि लोग पहले से तैयारी कर लेंए क्योंकि पूजा के दिन धार नहीं चलाई जाती। ढोरों का निराव एक दिन पहले काटकर रखना पड़ता। घर में सब्जी.भाजी भी काटकर रखते या फिर उस दिन ओसरा बनाते। ओसरा यानी बेंगनए भिन्डी आदि को सूखा कर रख लेतेए और जब इनका सीजन नहीं होता। जब हरी साग पैदा नहीं होतीए तब सूखी साग को पहले भीगा लेतेए ताकि वह फिर से हरी हो जाए और फिर पका लेते।  जिनको ओसरे नहीं बनाने होतेए वे दाल.बाटी भी बनाते। कुछ भी ?सा करतेए जिससे धार न चलानी पड़े। सुख पूजा के दिन धार न चलाने का नियम था। इसलिए भूल से भी न तोड़ना होता थाए यदि कोई तोड़ता तो फिर खामियाजा भी भोगता।
एक बरस पूरण से यह भूल हो गई। उसे याद नहीं रहा और सबेरे.सबेरे ही पनही गढ़ना शुरु कर दिया। जब पीराक ने टोकाए श् आज धार चलाना बंद है।श् तो घबरा गया। वह दौड़कर पटेल के पास गया और सब कुछ सच.सच बता दिया। पटेल ने सारी बात सुन.समझ कहाए श्पूरण्या तूने नियम तोड़ाए पाप कियाए लेकिन अनजाने में किया और उसका पछतावा भी है तुझे। तू ?सा करना कि दो बरस तक मेरी और गाम के महाराज की पनही मोफत में गढ़नाए ताकि तेरा पाप घट जाए और तुझे नरक का मुँह न देखना पड़े।श्
जब भी सुख पूजा होतीए ?से तमाम नियम.क़ायदे होते और उनका पालन करवाया जाता। लोग पालन करते भी। देवा बा सरीखा तो बिरला ही होता।
उस बरस सुख पूजा के तीन.चार दिन पहले गाँव में भयानक संकट आया हुआ था। पटेल ही नहींए बल्कि हर किसान पर जैसे दुरूख के बादल फट पड़े थे। हरेक के कोठों में ढोर.डंगर महुए की भाँति टपटप टपक रहे थे और किसी को कुछ समझ़ नहीं आ रहा था।
छगन ढोरों की बीमरियों के मामले में अच्छा.खासा जानकार था। वह गाभिन गाय.भैंस का बाखरु बैठालनेए पेट में बछड़ा उलझ जाए तो सुलझाने और ढोरों को डाम देकर ठीक करने में माहिर था। यानी वह बग़ैर भणा.गुणा ; पढ़ा.लिखा द्ध ढोरों का डॉक्टर था। लेकिन जब गाँव के अच्छे.भले निराव खातेए चरते बागोलते ढोरों का गला सूजनेए गले से घर्र.घर्र की आवाज़ आने लगी और अचानक गिरकर मरने लगेए तब छगन भी कुछ नहीं समझ पाया। क़स्बे वाले डिग्रीधारी डॉंक्टर ने कहाए श् शायद गलघोंटू ह़ै श् और वह एक तरफ़ से सभी ढोरों को सुई खोंसने भिड़ गया। फिर भी क़ाबू पाते.पाते गाँव के लगभग आधे ढोर.डंगर लुढ़क गए।
पूरण उन दिनों भी बीमार था। जब से पटेल से कहा.सुनी हुईए वह कभी पूरी तरह ठीक नहीं रहा। जब ढोर.डंगर मर रहे थेए उसी दौरान एक दिन पूरण अपने टापरे पीछे बैठा बीड़ी पी रहा था। वह बरसात का दिन था। पीराक टापरे पीछे के खाळ ; बरसाती नाला द्ध किनारे मेहँदी गाड़ रही थीए ताकि बरसात के पानी से खाळ ज़्यादा चौड़ा न हो। परबत भी वहीं गीली मिट्टी से पनहियाँ गढ़ने का खेल खेल रहा था। तभी टापरे के सामने किसी ने हाँक लगाईए श्पूरण्याए जलूका काँ मरी गयो ! श्
पूरण ने पटाक से छगन की आवाज़ पहचान ली और दौड़ताए हकबकाता टापरे के सामने आ गया। पूरण को देख छगन अपनी आँखें छोटी.बड़ी करता बोलाए श् पूरण्याए तू घर में आराम से पड़ा.पड़ा पाद रहा है और उधर हमारे ढोर.डंगर लुड़कते जा रहे हैंए डॉकटर का कहना हैए अगर फटाफट मरे ढोर नहीं हटवाए तो कोई बड़ी बीमारी भी फैल सकती है। तू सीधा माजना से अपनी जात वालों को लेकर जल्दी आए न आया तो फिर पटेल का सुभाव तो तू जाणे है।श्
छगन को जो कहना थाए वह कह गया। पूरण चिंता में पड़ गया। मौक़े पर मिले दो.तीन लोगों को बात बताई तो वे बिदक गए। उनमें से मंगू ने कहाए श् पूरण दाए तू चौमासा की पनही.सा लचर.लचर मत करे। उनके ढोर उनको ही घीसने दे।श्
पूरण समझ नहीं पा रहा थाए लोगों को कैसे समझाए। उसी की वजह से लोगों ने पटेलों के ढोर न घीसने का तय किया था। वही टूटकर लोगों को ढोर घीसने का कहेगाए फिर कल उसकी किसी बात पर कैसे भरोसा करेंगे घ् लेकिन लोगों से बात तो करनी पड़ेगी। गाँव में देवा बा सरीखे लोग भी रहते हैंए जो सुख.दुरूख में मदद भी करते हैं। पटेल के कारण गाँवभर से दुश्मनी मोल नहीं ली जा सकती। छगन तो धमकाकर भी गया है और वह कोई कोरी धमकी नहीं है। अभी चार दिन पहले ही पड़ोसी गाम के पटेल ने एक जवान छोरे को झाड़ पर लटकावा दिया। कोई कहता हैए पटेल के यहाँ ग्वाल था और उसके संबंध पटेल की राँडी छोरी से थे। कोई कहता हैए पटेल के संबंध ग्वाल की कुँआरी बहन से थे और वह पेट से थी। उसने अनाज में रखने की गोली खाकर जान दे दी। इसी बात के पीछे पटेल व ग्वाल में ख़ूब खरी.खोटी कहा.सुनी हुई और ग्वाल ने पटेल के ढोर चराने से मना कर दिया था।
सचाई क्या थीए ये तो मरने वाला या मरवाने वाला ही बता सकता हैए लेकिन मरा तो ग्वाल ही है। अगर हम ढोर घीसने नहीं जाएँगे और पुरानी बात पर अड़े रहेंगेए तो यहाँ का पटेल क्या हमारी पूजा करेगा घ् ढोर तो घीसने पड़ेंगे। ठीक हैए थोड़ी घणी कहा.सुनी हो गईए लेकिन हमेशा के लिए ख़ानदानी काम से मुँह थोड़े फेरा जा सकता है। ?सी बखत में अगर उनकी मदद नहीं करेंगेए तो वे गाँव में रहने देंगें घ् पूरण के मन में चलती यही सब बातें उसने अपने पड़ोसी और उस बखत बाखल में जो भी मिलाए उसे समझाने और राजी करने की कोशिश की। थोड़ी माथा.पच्ची और चक.चक के बाद मंगूएगेंदाए गंगू सहित आठ.दस लोगों को राजी भी कर लिया और वे लोग ढोर घीसने की रस्सीए बाँस आदि सामन लेकर गाँव में पहुँचे।
पटेल के घर सामने उन लोगों का हुजूम जमा थाए जिनके कोठों में एक.एक दो.दो ढोर मरे पड़े थे। ख़ुद पटेल की मुर्रा भैंसेंए जर्सी गाय मरी थीए जिससे पटेल दुरूखी ही नहींए बल्कि पृ्रण सहित बाखल वालों पर भयानक ग़ुस्सा भी थाए जो ख़बर देने के बावजूद काफ़ी देर से पहुँचे थे।
पूरण को घूरते हुए पटेल छूट बोलाए श् आ गया तूए तेरी तो घणी लम्बी नाक थी। मेरे आगे दाल न गली तो ढोरों पर टोने.टोटके शुरू कर दिए। अब ढोरों की खाल ; चमड़ेद्ध से पनही का घाट पूरा करेगा घ्श्
पटेल की बात सुन पूरण के साथी गंगूए मंगूए गेंदा आदि मन ही मन पटेल की माँ दृ बहन एक करने लगे और पृ्रण भय और आश्चर्य से गूँगा बना खड़ा था। कुछ देर बाद जब बोलने का सोचा तो लगा जैसे ज़बान काठ हो गईए फिर भी बहुत ही हिम्मत व मुश्किल से भर्राय्र सुर में बोलाए  श्हम टोना.टोटका नहीं जानतेए और जानते भी तो ढोरों पर क्यों करते घ् ढोरों ने हमारा क्या बिगाड़ा घ्श्
पटेल बात पकड़ अपने ढंग से अर्थ गढ़ने में माहिर था। वह जमा हुए लोगों और जवान छोरों को उकसाने के अंदाज़ में बोलाए श्सुनाए क्या बक रहा हैए ढोरों पर टोना.टोटका क्यों करे घ्  उन्होंने क्या बिगाड़ा घ् मतलब हम पर करेंगे घ् हमने एक जोड़ी पनही के बदले अपनी जायदाद इनके नाम नहीं लिखीए इसलिए अब हमारा मांस खाएँगे और हमारी खाल उधेड़ कर पनही बनाएँगे।श्
श् यानी महीने भर पहले देवा बा का छोरा3श् छगन को जैसे किसी राज़ का पता चल गया। वह अचरज से आँखें फैलाता बोलाए श्वह जामण की डगाल फटने से गिरा थाए डगाल को इन्होंने ही मूठ मारी होगी !श्
श्और क्या घ्श् पटेल ने छगन के सुर में सुर मिलायाए लेकिन मन ही मन बुदबुदायाए किस करम खोड़ले का नाम ले लिया। वह वहीं खड़ा हैए कहीं सफाई न देने लगेए और पटेल ने देवा बा की ओर झूठी मुस्कान से देखाए उसकी आँखों ने जैसे देवा बा से कहा.तुम हमसे मिलकर नहीं चलतेए फिर भी हम कितना ध्यान रखते हैं।
देवा बा अभी थोड़ी देर पहले ही आकर भीड़ में खड़ा हुआ था। उसने वही बात सुनी.समझी थीए जो उसके पोते के संबंध में कही थी। उसने पटेल की झूठी मुस्कान को कोई तवज्जो नहीं दी और पटेल की आशंका के अनुरूप ही बोलाए श्जामण का झाड़ ही कच्चा होता है। उसकी डगाल भड़ से फट जाती है। फिर मेरा पोता भी कम नहीं था। वह अपनी गलती से ही गिरा और मरा। उसे किसी ने मूठ.ऊठ नहीं मारी। ष्ष्
देवा बा की बातों से पूरण की हिम्मत बढ़ गई। वह पटेल को भरोसा बाँधने के लिए पीराक और परबत की सौगंध खाता बोलाए श्हुज़ूर हम काम के अलावा कुछ नहीं जानते श् वह रस्सी और बाँस दिखाता बोलाए श् अब भी ये लेकर ढोर घीसने ही आए हैं।श्
श्ख़बर देने के कितनी देर बाद आया है तू घ्श् पटेल ने देवा बा की बात व मौजूदगी को अनदेखा किया और पूरण को घूरता बोलाए श्तू क्या समझता हैए तेरे बग़ैर हमारे ढोर कोठे में ही सड़ते रहेंगे घ्श्
पटेल ने वहाँ ख़डे नई उम्र के छोरों को भाँपने की नज़र से देखा दृ उनका ख़ून उबाल खा रहा थाए छोरों ने बचपन से नीची जाति के लोगों को पटेलों के आगे झुकते देखा थाए इसलिए उन्हें भी पूरण का बोलना हजम नहीं हो रहा था। पटेल ने गर्व से गरदन हिलाई और छोरों में जोश भरता बोलाए श्हमारे एक से एक कलदार छोरे हैंए मरे ढोरों को बैलगाड़ी मेंए टैक्टर में भरकर गाँव बाहर फेंक देंगे और जला भी देंगेए ताकि3श् पटेल बाखल वालों पर हिकारत भरी नज़र घुमाता बोलाए 3श् तुमको ढोरों की खालए मांस और हड़के तक न मिल सकें।श्
श् तो फेंकने दो हम क्यों आधी रोटी पे दाल लाँ3श् पूरण का पड़ोसी गंगू बेधड़क होता पूरण से बोला।
पूरणए देवा बा और पटेल की बातों से छगन को लगाए पटेलों के छोरों को ही ढोर घीसने पड़ेंगे और उसकी आँखों के सामने अपने छोरों का ढोर घीसने का दृ्श्य उभरा। उसने सोचाए ढोर घीसने की बात आस.पास के गाँवों में बसे पटेलों को मालूम होगी। गाँव भर की नामोसी होगी। इस गाँव में कोई पटेल अपनी छोरी नहीं ब्याहेगा। यहाँ की छोरी को अपनी बहू या बैराँ नहीं बनाएगा। गाँव की औड़क हीए ष्ढोर घीसने वाले पटेलों का गाँवष्ए पड़ जाएगी। छ्गन ने पटेल को हाथ पकड़ भीड़ से एक तरफ़ ले जाकर अपना सोचा बताया और कहाए श् अपन ढोर.वोर नहीं घीसेंगे।श्
श्देख छगनए अगर अपनी जात वालों को ढोर घीसने की नौबत पड़ी भी तोए अपन थोड़ी घीसेंगे। अपनी जात में भी कई ग़रीब.ग़ुरबे हैं। पइसा देंगेए तो वे घीसकर फेंक आएँगे।श्
श्गरीब हैं  तो क्या वे ढेड़ियों का काम करेंगे घ्श् छगन बोला।
श्सब करेंगे छगनए जात पइसे से बड़ी थोड़ी है घ्श् पटेल बोला।
श् नहीं.नहींए अपनी जात वालों का ढोर घीसना ठीक नहीं। अपन ?सा कुछ करें कि ढोर ढेडिये ही घीसें और माथा भी नहीं उठावें।श् छगन बोला।
पटेल भी यही चाह रहा थाए लेकिन उसके  पाँसे उलटे पड़ रहे थे। वह झुँझलायाए श् तू देख तो रहा हैए ढेड़िये रत्तीभर झुकने को राजी नहीं। पूरण्या तो लेण पर आ गया हैए पर उसके साथ आए लौंडेए उनकी क़द से लंबी ज़बान है।श्
श् तो ज़बान के छोटी करने का बारा में सोचोए छोटी जात से ज़बान लड़ई के क्यों अपनो मान घटावाँ घ्श् छगन बोला।
जब छगन और पटेल के बीच ये बातें हो रही थींए तभी उधर देवा बा का बड़ा छोरा आया। उसने देवा बा को भीड़ से अलग ले जाकर कहाए श्क्यों इनी टेगड़ा लड़ाई में टेम खराब करोए अपना घर चलो। यहाँ और किसी से कुछ खरा.खोटा बोलने में आ जाएगा। अपने ढोर तो हम चारों भाई खाळ में फेंक आए।श् देवा बा अपने छोरे के साथ घर चले गए।
पृ्रण ने गेंदाए गंगूए मंगू आदि  अपने साथियों को समझाना चाहाए श् अड़बी मत पड़ोए अपना तो करम में ही ढोर घीसनो लिख्यो है।श् लेकिन पूरण के साथी पटेलों के मन माफ़िफ झुकने को तैयार न थेए वह उन्हें न समझा सका।
श्तो ढोर नहीं घीसोगे घ्श् वापस भीड़ में लौटे पटेल ने उन्हें घूरते हुए पूछा।
श्घीसेंगेए पर पहला अनाज या पइसा ठहरा लोए आप कहें तो ढोर की खाल और हड़के भी लौटा देंगे।श् पूरण के मुँह खोलने से पहले उसके पीछे से मंगू की आवाज आई।
श्मांस भी ले लेना !श् गेंदा बोला।
पूरण के पीछे से आई मंगू व गेंदा की आवाज़ों ने पटेल के माथे पर पत्थर का.सा प्रहार किया। वह तिलमिला उठा। पटेल से इस तेवर में ढेड़ियों को बातें करते देखए वहाँ खड़े पटेलों के जवान छोरों की मु_ियाँ कसा गईं। छोरे दाँत पीसतेए कचकची खाते अपने को जब्त किए पटेल की ओर देख रहे थेए लेकिन जब पटेल ने उनकी ओर देखाए तो यों देखा कि फिर उन्हें किसी आदेश या इशारे की दरकार न रही। उन्होंने पूरण और उसके साथियों की सूखी पसलियों पर घन सरीखे मुक्कों और लातों की झड़ी लगा दी।
पटेलों के तीन.चार छोरेए जिनके घर नज़दीक थेए घर में से कुल्हाड़ीए फर्सीए बल्लम लेकर उन पर टटकेए तो उन्होंने जान बचाकर अपनी बाखल की ओर दौड़ लगा दी। छोरे कुछ दूर तक पीछा कर रूक गए और गालियाँ बकने लगे।
बाखल में साँझ उतर रही थीए लोग दाड़की से लौट रहे थे। पूरणए गंगूए गेंदा और मंगू वग़ैरह आदि हाँफतेए घबराते बाखल में आए तो आसपास के लोग इक_ा हो गए। पीराक भी परबत को गोदी में उठाकर टापरे से बाहर आ गई। उसने सबके चेहरों पर एक नज़र ड़ालीए तो भीतर आशंका भर गई।
श्क्या हुआ घ्श् उसने काँपते स्वर में गंगू से पूछा।
श् मार खाकर भाग आए और क्या हुआ घ्श् गंगू ने चिगांरी उगलते लहजे में जवाब दिया।
श् क्योंए अपने हाथ पटेल के पास गिरवी रख दिए थे घ्श् पीराक ने जैसे जले पर नमक मल दिया।
श् वे हमें ढोर समझ पीट रहे थे और पूरण दा हमारे हाथ पकड़ कह रहा था दृ वे ऊँचे लोग हैंए उन पर हाथ मत उठाओ !श् मार यादकर गंगू के गाल जल उठेए आँखें छलछला गईं।
श् हम तो इसीलिए नहीं गएए अब क्या माजना रहा।श् गेंदा का पड़ोसी बोलाए जिसने पूरण के साथ जाने से मना कर दिया था।
श्तुम क्यों जाओगेए पटेल के यहाँ हाली जो हो !श् गेंदा ने कहा।
श् गेंदा तू मेरे मुँह मत लागए हाली हूँ तो क्या हुआ घ् और तुमने जाकर उनका क्या बिगाड़ लिया घ्श् भीड़ में से गेंदा का पड़ोसी बोला।
श् लड़ोए आपस में एक.दूसरे का माथा फोड़ दोए वहाँ पटेल के सामने जाते पाँव टूटते हैं।श् पीराक ने कहा।
श् तू चुप करए आदमियों के बीच चपर.चपर मत कर !श् पूरण झुँझलाया।श् कहाँ हैं आदमीए यहाँ तो सब कीड़े.मकौड़े हैं। इनकी औलादें भी ?सी ही होंगी। कभी नहीं भणेंगेए कभी पनही नहीं पहनेंगे। जिनगीभर उबाणे पगे ; नंगे पैर द्ध पटेलों की जी हुज़ूरी करेंगे।श् पीराक जलती चिता हो गई।
श्तू चुप करती कि नहीं !श् पूरण चीख़ा।
पूरण की चीख़ से पीराक समझ गई। पूरण को औलाद के नहीं भणने ; पढ़ने द्ध और पनही नहीं पहनने का ताना चुभ गया। पीराक झेंपकर चुप हो गईए लेकिन उसका बदन जलता रहा। उसका सीना इस क़दर ऊपर.नीचे हो रहा था मानो  भीतर अंधड़ घुस गया है और अभी सीना फ़ाड़ डालेगा। उसकी बगल में गेंदा की माँ खडी़ थी। उम्रदराज औरत थीए वह बोलीए श्चुप तू कर पूरणए पीराक सची कहती है। तुम तो अपने बाप.दादाओं की तरह ढोर रहे। तुम्हारी औलादें भी ढोर रहेंगी। अरे तुम काहे के आदमी। ढंग से बैराँ का तन न ढाँक सकोए पेट न भर सकोए अपना हक़ तक न ले सको। अरे ?से दब्बू आदमी के साथ रहने से तो राँडी बैराँ भली।श्
श् तुम लोगों के माथे कटवाओगी।श् पृ्रण बेबस होता चीख़ा।
श् पटेल की पनही पर धरे माथे की क्या आरती उतारेंए ?सा माथा कट जाए तो भलाश्ए पीराक भी अपने को और चुप न रख सकी।
पूरण को कुछ नहीं सुझ रहा थाए वह चुप रहा। मंगूएगेंदा व गंगू भी उनकी बातों से सहमत होकर उनके सुर में सुर मिला रहे थे।
श् अभी तो ढोर कोठों में ही पड़े हैंए वे फिर आ सकते हैं।श् मंगू ने कहा।
श्हम नहीं जाएँगे।श् गेंदा बोला।
श् वे आएँगे तो वापस न जा सकेंगे।श् गंगू बोला और उसके सुर में भीड़ ने भी अपनी आवाज़ मिलाई।
श् मत घीसोए मुझे क्या पड़ी है घ् जब बैराँ ही कहती हैए पटेल की पनही पर धरा माथा कट जाएए तो भलाए फिर मैं क्यों माथा झुकाऊँ घ्श्
पूरण बड़बड़ाता टापरे में चला गया। सब पूरण के टापरे की ओर देखने लगे। वह थोड़ी देर बाद निकला। उसके पाँव में वही पनही थीए जो ब्याह में उसने गढ़ी थीए जिसे पहनने पर पंचायत के सामने नाक रगड़ने और गाँव में झाडू लगाने की सज़ा भोगी थी। उसके हाथ में मरे ढोरों की खाल उतारने वाली एक.सवा फीट की छुरी थी। उसने बैठकर धार करने वाला पत्थर दोनों पाँवों से पकड़ा और उस पर छुरी घीसकर धार करता बोलाए श् अब मेरा मुँह क्या देख रहे होए जाओ टापरे में जो कुछ हो कृ लाठीए हँसिया लेकर तैयार रहोए पटेलों के छोरे आते ही होंगे और हाँए उबाणे पगे मत आजो कोई।श्

साँझ का सूरज पूरण के काले मुँह पर दमक रहा था और पीराक के साँवले गालों पर सुनहरी किरणें मटकी नाच रही थीं।

000

सत्यनारायण पटेल

एम.2 ध्199ए अयोध्या नगरी

; बाल पब्लिक स्कूल के पास द्ध

इन्दौर.452011

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें