इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शुक्रवार, 26 मई 2017

अपनी -अपनी किस्‍मत

शिवराज गुजर 

हे भगवान कौन से जन्मों के पापों की सजा दे रहा है मुझे? यह गंदगी भी मेरी छाती पर ही छोड़नी थी। पूरा घर गंदगी से भर दिया इस बुढ़िया ने। बीमार सास को गालियां देते हुए नाक बंद कर घर में घुसती मिसेज शर्मा नौकरानी पर चिल्लाई। कांताबाई! अरी कहां मर गई तू भी।
तभी बगल वाले कमरे से आई सास ने पीछे से कुर्ता खींचते हुए  पुकारा - बहू!
- हट बुढ़िया दूर रह, अभी फिर से नहाना पड़ेगा मुझे। सास को धक्का देते हुए मिसेज शर्मा बोली। तभी नौकरानी पर नजर पड़ी। कांताबाई,  यह तो दिन भर गंदगी करेगी, तू तो साफ कर दिया कर।
अभी और कुछ कहती, उससे पहले ही कांताबाई बोली - लेकिन मालकिन आज तो मां जी ने कुछ भी गंदगी नहीं की। एक दो बार हाजत हुई भी थी तो मुझे बुला लिया था तो मैं टॉयलेट में करा लाई थी।
- तो फिर यह गंदगी?
- अपने डॉगी को दस्त लग गए हैं।
- अरे बाप रे मेरा बेटू।  क्या हो गया उसे? मिसेज शर्मा चीखती सी बोली । तभी चूं - चूं करता डोगी उनके पास आ गया । मिसेज शर्मा उसे पुचकारते हुए उसके पास बैठने लगी, तो कांताबाई बोली - मालकिन कपड़े गंदे हो जाएंगे।
- अरे हो जाने दे, कपड़े कोई डागी से बढ़कर है क्या?
कहते हुए मिसेज शर्मा वहीं बैठ गई और डोगी पर हाथ फेरने लगी। अब कमरे से गंदगी और बदबू गायब हो चुकी थी। दूर से यह सब देख रही साथ डोगी की किस्मत से रश्क कर रही थी। शायद भगवान से दुआ मांग रही थी,अगले जनम मोहे कुतिया ही कीजो।

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