ढलती शाम के साथ हो रहे अँधेरे में छिप,उसी पुरानी सरकारी स्कूल के पीछे बहने वाले बड़े नाले के किनारे बनी आधी दीवार पर बैठ, अवि अपने सबसे करीबी दोस्त संतोष,सत्या के साथ 1.50 रूपये की पार्टी मना रहा था। 50 पैसे की शिन्गदाना की पूड़िया, 50 पैसे की चकली और 50 पैसे की मसाला नल्ली। एक दूसरे से मन की बात बताते हुए और इन चटर - मटर की चीजों को खाते हुए दोनों को बड़ा मजा आ रहा था।12 साल के अवि और 10 के सत्या के बीच 4 साल से बड़ी गहरी दोस्ती थी। अक्सर महीने में 2 - 3 बार दोनों की ऐसे पार्टी हुई करती थी। हर पार्टी का पैसा, समय और जगह एक ही होता, लेकिन हर बार खुशी और मजा ज्यादा।
इस1-5 रूपये की कुछ खास बात थी। यह उन दोनों के शरारती दीमाग के मेहनत की देन थी। अवि जिस गली में रहता था, उस गली के लोगों का व्यवहार मिलनसार था। अक्सर वहां पड़ोस की औरतें अवि को कुछ सामान दूकान से लाने के लिए भेजा करती थी। संकोच से अवि कभी मना नहीं करता और काम किये जाता था। अवि और सत्या ने मिलकर इसका फायदा लेने की तरकीब निकाल ली। सामान लाने के लिए दिए गए रूपयों में से 50 पैसे तक की चोरी हुई करती थी याने 4 रूपये की दही 3.50 रुपए की होती थी और बचे 50 पैसे दोनों की जेब में। इस तरह 1.50 रूपये जमा हो जाने पर पार्टी हुआ करती थी।1 साल से ज्यादा हो चुके थे और इसी तरह दोनों की गुप्त पार्टी हुआ पार्टी की जाती रही।
पड़ोस की बीबी एक लम्बे कद की दमदार और जोरदार महिला थी। बूढ़े होने पर भी उसने अपने रुवाबदार मिजाज को बरसों से कायम रखा था। अवि को देख उसने 4 रूपये थमाते हुए कहा - जा लोगा की दूकान से 4 रूपये का बेसन ले आ। अवि ने 50 पैसे की अपनी कमाई लेते हुये 3.50 रूपये के बेसन ला दे, खेलने भग गया। कीड़े पड़े बेसन ने बीबी को नाराज कर दिया। उसने अवि के घर पहुँच उसकी माँ से उसके होने के बारे में पूछा। अवि को ना पा, वह खुद ही लोगा के दूकान पहुँची और बेसन लौटा दिए। बदले में मिले 3.50 रूपये ने बीबी के तेज दीमाग को फौरन अवि की चालाकी का सन्देश दे दिया। 10 मिनट में ही यह कहानी अवि के माँ के कानों में थी। देर शाम लौटने पर अवि के1 साल पुराने इस व्यवसाय का माँ की 4 चपेटों से अंत हुआ।
स्कूल के पीछे के उसी नाले की दीवार पर बैठ दोनों दोस्त बिना किसी पार्टी के आज बतीया रहे थे और बीते पार्टियों की यादों से मजे लिए जा रहे थे।
इस1-5 रूपये की कुछ खास बात थी। यह उन दोनों के शरारती दीमाग के मेहनत की देन थी। अवि जिस गली में रहता था, उस गली के लोगों का व्यवहार मिलनसार था। अक्सर वहां पड़ोस की औरतें अवि को कुछ सामान दूकान से लाने के लिए भेजा करती थी। संकोच से अवि कभी मना नहीं करता और काम किये जाता था। अवि और सत्या ने मिलकर इसका फायदा लेने की तरकीब निकाल ली। सामान लाने के लिए दिए गए रूपयों में से 50 पैसे तक की चोरी हुई करती थी याने 4 रूपये की दही 3.50 रुपए की होती थी और बचे 50 पैसे दोनों की जेब में। इस तरह 1.50 रूपये जमा हो जाने पर पार्टी हुआ करती थी।1 साल से ज्यादा हो चुके थे और इसी तरह दोनों की गुप्त पार्टी हुआ पार्टी की जाती रही।
पड़ोस की बीबी एक लम्बे कद की दमदार और जोरदार महिला थी। बूढ़े होने पर भी उसने अपने रुवाबदार मिजाज को बरसों से कायम रखा था। अवि को देख उसने 4 रूपये थमाते हुए कहा - जा लोगा की दूकान से 4 रूपये का बेसन ले आ। अवि ने 50 पैसे की अपनी कमाई लेते हुये 3.50 रूपये के बेसन ला दे, खेलने भग गया। कीड़े पड़े बेसन ने बीबी को नाराज कर दिया। उसने अवि के घर पहुँच उसकी माँ से उसके होने के बारे में पूछा। अवि को ना पा, वह खुद ही लोगा के दूकान पहुँची और बेसन लौटा दिए। बदले में मिले 3.50 रूपये ने बीबी के तेज दीमाग को फौरन अवि की चालाकी का सन्देश दे दिया। 10 मिनट में ही यह कहानी अवि के माँ के कानों में थी। देर शाम लौटने पर अवि के1 साल पुराने इस व्यवसाय का माँ की 4 चपेटों से अंत हुआ।
स्कूल के पीछे के उसी नाले की दीवार पर बैठ दोनों दोस्त बिना किसी पार्टी के आज बतीया रहे थे और बीते पार्टियों की यादों से मजे लिए जा रहे थे।
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