इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शुक्रवार, 20 मई 2016

तकरार अउ विद्रोह

समीक्षा -  यशवंत
          आजादी के सिपाही ल गुलाम बनाय के राखीन, तभे जन-जन मन गाइन।
          ‘कोन ला मिलिस आजादी काकर भाग रे, 
          जोंधरा के रोटी म आमारी के साग रे।‘ 
स्वतंत्रता कोनो देश ला अहिंसा ले नइ मिलय। एकर बर जम्मों - आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, नैतिक, धार्मिक अउ कतको कारक जुड़े रथे अउ अड़बड़ लड़ाई-भिड़ाई होथे। बलिदान दे ला परथे। कतको ता भूल-बिसर के दबे रहि जाथै। जीव के बाजी लगाय के, बलिदान दे के देश ला आजादी मिलिस आवे। अइसन स्वतंत्रता ला जोंधरा के रोटी अउ आमारी के साग म रंगो डारिन। जे आजादी ला मलाई-महुँवा कस झोरत हें, ये कोन हावे?
          ’राम नाम के लूट हे, लूट सकय त लूट, अंतकाल पछताबे प्राण जाही छूट।‘
        येला अध्यात्म म जोड़ देथे। जेमा कोनो अपन हक झनीजताय सकय। काबर के धरम के आड़ म हिमालय असन ढोंग लुका जाथे। जइसे अब पोप फ्रांसिस हर मदर टेरेसा ला ‘संत‘ घोषित करइया हावय।‘‘ मदर टरेसा हर सरग अउ खुदा के अस्तित्व म संका सुरू कर दे रिहिस। उंकर आसन (मउत तीर) पहुँचगे रहाय। लोगन के सेवा काम ला सुरू करिस। ये हर अइसन कालखंड रिहिस जब वो हर ईश्वर ला ‘न ता अपन हिरदे म या चर्च म‘ महसूस करे रिहिस। ये मुस्कान ह एक तरह ले मुखैटा हावय जे हर जम्मो ला ढाक लेथे। मंय अइसने बोलत रहेंव के मोर साफ हिरदे खुदा के संग म पिरित करत रहिथय। फेर तुम्हन उंहिचे होतेव ता कहितेव -‘का पाखंड हावय‘1 समाज सेवा या संत - सुभाष तगाडे, समयान्तर फरवरी 2016 पृ. 23
          ये बात ला अपन तीरेच के संगवारी रेवरंड ब्रायान कोलो डीजचुक ला लिखे रिहिस। मोला अतकाच बताय के हावय के कइसन घोर सेवा अउ संघर्ष करइया मइनखे ला धाम विसेस के ‘रोल माडल‘ बनावत हे। भारत म ‘राम‘ लघो अब, करम करइया मइनखे ला पाखंड धरम म लपेट के लूट के योजना आवय। करम जुच्छा नोहे। तभे त करम परान सपूत बीरनारायन के बलिदान ला गोहराथन। हर ले बर गोली ला नइ डर्रान। पीसीलाल यादव ललकार के कहिथय-
कतका दम बदूक गोली म, परछो एकर देख लेबो रे।
हिमालय कस बजूरतन, छाती म अपन छेंक लेबो रे।
(पृ. 13)
          करम करे अउ पछताय। पहिलिच ले पछताय मा का फायद! सुघ्घर बदलाव बर कवि के विश्वास हावय के जवान अउ किसान एकर ले दूंर नइ भागय! चोला हर जियत ले माटी के नोहेच। जम्मो रसमन म करम अउ अपन हक ला ले बर संघर्ष नइये, ता वो चोला, बसंत कतको आवय मातेच नइ सकय। अइसन मइनसे बर बसंत सुक्खा नरवा आय। जेमा रद्दा ता बनथे, फेर भोधरा-भोथरहा। समाज म जम्मा बराबर कइसे होही? ये कर बर सामाजिक संघर्ष के गोठ कविता म नइ होही ता वोकर मान तरिया के रतालु(कमल) फूल असन असन आवय। मन के जम्मों आनंद (संतुष्टि) बर फुल ला तोड़ेच ला लागथे। मइनखे-मइनखे एक समान बर संघर्ष करे ला परही। बसेती के रं म रंग डारबो तभे मात बनही। मतलब चूरत अंगाकर रोटी तोर संकागेहे तेहर मोर। मस्का -पालिस करे के नोहय सोझ पीसी कहिथे-
बइरी ला बिछावव धरती म, काट के राहेर करपा कस।
लेस के रखदव दुस्मन ल, बोइर के छरपा कस।(पृ. 15)
          आजादी के ‘डाला‘ ला मीठ लबरा कोलिहामन बघवा खडरी ओढ़ के गुदा-गुदा ला खावत हे। फोकला-फोकला ला देश के बलिदानी बेशमन बर छोड़त हे। येकरे सेती पीसीलाल लिखथे- ‘डर्रा ही काबर गोला ला?‘ (पृ.14) ये मरजाद बर भगत सिवाजी के सुरता देवाथे। अउ ते अउ तांडव नाच के सलाह देथे।
           ‘मरना आहे घड़ी चा अन जीवाचा आहे पेढ़ी चा।‘ ये मराठी हाना ले जोड़ के देखबो ते सोला आना पीसी कहिथे। सुभास अंदाज म- ‘तुम्हन मोला खून देव मय तुम्हला  आजादी देहूँ‘ येकर बर सबद के पद उज्जर-उज्जर हे तिरंगा धजा सेग बंदूक-बाजा संगेसंग होवय। माँ भुईयाँ म भेद-भाव करइया मन ला मिटाय बर कहिथे। तिल-तिल का मरे के? ढोक-पीट, थुथर-थुथार के मतलब मार के मर।इहर ओजस्तिता के अस्मिता हावय। कविता हावे-
रोज-रोज जीना इहाँ, मरना एक दिन।
तन-मन जीवन करले, अरपन छिन-छिन।
ठउँ का बेरा चूका ले, महतारी के रिन।
अकारथ के जिनगी, माटीबर मरे बिन।
साँस सिरा जाही, कोन जनी कोन दिन।
मरना हे त मर, मातष्भूमि बर सुदिन।(पृ. 16 17)
          अउ छत्तीसगढ़ी संसकिरिति, राखा-भाख, भवगोलिकता, रहन सहन अउ कतको बरनने करथे। प्रकष्ति के विपदा ला कविता म दरज करथे। प्रकष्ति विपदा ‘असाड़‘ हर नेता अउ साहूकार डहान ले थोपे के विपदा के घलो प्रतीक हावे। सामान्य अरथ ले बिसेस अरथ के प्रयोग हावे। ( पृ. 21,22) मोर अपन के कविता हावय-
मोला संग देवव संगी, मय तुम्हला रंग देहूँ।
दरसन चिंगिर चाँगर, नोहे अलवा जलवा।
अमावस के रात म, पुन्नी देखा देहूँ।
           श्रम परंपरा के समर्थक हावय पीसीलाल जी। मिहिनत ले हमन अमावस म पुन्नी के चँदा देख सकथन। अइसन पैडगरी बना सकथन। ओग्गर-सुघ्घर मौलिक कल्पना पीसीलाल करथे-
चंदा निरमल हे रतिया बर, त दिन बर हे सुरूज उज्जर।
मन भीतर अँधीयारी हरे बर, बरत रह जोगनी कस सुघ्घर।। ( पृ. 23)

बिरबीट अमावस रतिहा ह, ओगरी बन जाही।
जेन डगर म परही पाँव, पैडगरी बन जाही।।(पृ.24)
          संघर्ष कर बर? रन ले जूझोबर छत्तीसगढ़ के मइनखे ला काबर लागथे? बंदूक काबर धरे ला परही? काबर? काबर? पष्ष्ठ16 अउ 17 के मिलान पष्ष्ठ 19 ले करबो ता द्वंद्व परिस्थिति निर्माण को जाथे। ‘‘जेन इहाँ आथे पिरित म, इही के होके रही जाथे।‘‘ कइसन पिरित? जेहर बाहिर ले आइस वोकरबर? वोकर अपने मोटरी ला बाँधेबर? इहर के मूल बासिंदा ला चुहुकडार के, ठाढ़े-ठाढ़ सुखाय बर? इंहिचे वर्ग अउ वर्गमन के सिद्धांत उभरथे।2
          कौसिल्या छत्तीसगढ़ के बेटी आय! ये अइसन कथन आवय जेला ओगराय ला परही! कौसल्या छत्तीगढ वाला के कते गढ़ वाला के बेटी आय?
’’कौसल्या जिहाँ के बेटी, कौसल छत्तीसगढ़ कहाइस।’’
’’राजकुमारी कौसिल्या महराजा दसरथ अयोध्यापति ले बिहाव होइस।बिलासपुर जिला म कौसल नाम के बड़ेअसन गाँव हावे जनश्रुति अनुसार इहिंचे के राजा के अेटी रिहिस’’3
फेर साफ नइ होवय के शिवनाथ नदी के उत्तर अउ दक्षिण कोसल नामक कोनो गढ़ हावे।4
          कालीदास कालीन भारत म अवध ला उत्तर कोसल काहत रिहिन। महाभारत अउ हरिवंश पुरान म छत्तीसगढ़ ला ’पूर्व कोसल’ या ’प्राक् कोसल’ केहे गे हे।5 भोलनाथ तिवारी महाभारत अउ पुरान ला इतिहास नइ मानय। इतिहास अभाव अउ जनश्रुति के आधार ले कौसिल्या ला इहाँ के बेटी कइसे कबो? अइसन जनश्रुति नइ हावय के कौसिल्या परिवार वाले कौन हावे, माता-पिता कोन हावय? फेर दशरथ वंश के जनश्रुति हावे ,अइसे लगथे कौसिल्या राम के दाई ला आधुनिक मिथक बनाय जावत हावे जेमा राजपुरूष, सत्ता बर वोट सकेल डारय। कौसिल्या के दासी सुमित्रा रिहिस । अउ छत्तीसगढ़ के बिहाव म दासी भेजे के व्यवस्था घलो हावय का? सुमित्रा हर कौसिल्या संग गेइस ते हर कते कुल बंस रिहिस? सुमित्रा कते गढ़ वाला मन तीर के कौसिल्या के संगवारि रिहिस?6 19-20 फरवरि 2016(कोरबा छत्तीसगढ़ राजभाषा संमेलन) के एक सत्र म एक विचारक ह इहाँ तक ले कहि डारिस कि छत्तीसगढ़ के सबों झन अयोध्यावाला मन के सारा(साला) हवय! कष्ष्ण बर आस्था रखइया मन के का होही ?अंगीकार-स्वीकार कर डरही? आज अवधवाला मन संपूर्ण छत्तीसगढ़ वाला मन सारा-सारी कही अउ छत्तीसगढ़ वाला मन अंगीकार स्वीकार कर डारिहा का? ’’छत्तीसगढिया-सबले बढ़िया’’ जुमला ला मान के? कउन हर मानही? जम्मों मुड़ी ले गोड़ तक अतिआधुनिक मिथक बनावत हावय। ’’राम हमर भाँचा’’ ये हर अब धार्मिक स्अंट के सुपर बम बोटबैंक हो गे हे, जेमा जनता ला गुमराह करे जात हावे। ’’रमायन के अनुसार दण्डकारन्य म श्री राम के लोगन उद्वार करम मन के नेव पड़ीस,महाभारत म चेदिप्रदेसके राजा शिशुपाल के बरनन मिलथे जेकर बध श्री कृष्‍ण ले होय रिहिस।’’7 शिशुपाल हर ता, कृष्‍ण ला वो काल सबसे बड़े व्यक्ति घोसित करे गे रेहिस, येकर विरोध करीस। इही ला कृष्‍ण नइ सहे सकिस अउ शिशुपाल के वध कर देइस। फेर हमन कौसिल्या ला छत्तीसगढ़ के बेटी अउ राम ला भाँचा माने बर सहमत नइ होयेन ता अवध अउ कुरूक्षेत्र वालामन हमर राम नाम सत कर देही? राजभाषा आयोग सम्मेलन ता छत्तीसगढ़ी भासा ला आठवी अनुसूचि म लाय बर बिचार करत रिहिस न के कौसिल्या - राम के धार्मिक मिथक बर! ता फेर राम कौसिल्या के महिमा मंडन काबर करत रिहित? प्रदेश-अउ देश ला कते रद्दा मा ले जाही! जम्मों झन ला आजादी हावे? अतिक्रमन के सबले जियादा आजादी हावे!
   बढ़चढ़ के पीसीलाल कहिथे
सहुँहे राम आके इहाँ, सबरी के जूठा बोइर खाइस।
वाल्मिकी के आसरम म, लवकुश हर शिक्षा पाइन।
      इहाँ अइसन अतिश्योक्ति अलंकार म बात करिथे कि पीसीलाल हर सहुँत देखे हावय! घोर विस्मय होथे के सबरी - भिलनी वाला वंसमन संग, छत्तीसगढ़ रहवइया संग अवध वाला मन कतके सगा जोड़े हावय? सजन बनाय हावय? सजना अउ सजन बनाय म अंतर नइ होय? फेर पाँच हजार साल के छत्तीसगढ़ के नोनीबाबू अनपढ़ - अशिक्षित कइसे रही गेइन ? 1992 - 93 म (मानपुर विकास खंड राजनांदगाँव) कर्मा जंयती सम्मेलन म, रायपुर पधारिस एक महिला सवाल उठाइस के तेली(साहू) समाज के आधा आबादी हर ते इसकूल के दरबाजा ल नइ देखे हावय। शिक्षा राजघराना बर सुरक्षित करे गे रिहिस परजा ला भूरी के बरात मा लगा दे रिहिन। ये फांदा आज घल चलत हावय। एकरे सेती डाँं. चंदेल के सार हावे ’’वर्ग संघर्ष अउ वर्ग मन के द्वन्व्‍दात्मक संबंध के सैद्वात्तिकी ह पीसीलाल जी के गीत म नइ उभरे हावे।’’8
          आखिर कब ले मोर छत्तीसगढ़, मोर मयारू माटी, महतारी, चटनी - बासी के सौदर्य म छत्तीसगढ़ के कवि मटमटात भटकत रही ? 9 कविता क्रमाक चार म छत्तीसगढ़ के जम्मों संस्कृति के प्रगतिशील चिंता म पीसीलाल पहिलिच पद म भटक तको गे हे! का मया हर पिरित ला लूट डारथे ? कदाचिंत मय कही नइ संकव अध पक्का घलो बोल नइ सकव। पहिलि आलोचक ता रचनाकार होथे। वहू चटक जाथे का ?  समीक्षक के डोंगा म जियादा माल-मवेशी बइठिन के डोंगा उलटिस। ता आलोचक, लेखक ला अपन संग घलो डुबो देही। त मोर एक ठन गोठ हावे -  समीक्षा करइया जम्मों डाहर ला देख के कइसन भौतिक तुला म करिहय ? वर्तमान म समीक्षा के मुल प्रमेय इही आय। उज्जर - उज्जर, पझर्रा - पझर्रा बताइन अउ लेमन चूस खाइन ता आलोचना ला गवाइन। हाँ पीसीलाल के लिखइ म मजबूत पैडगरी के तलास जरूर हावे। एमा कवि सफल घलो हावे। इही कवि के प्रवृति जेला पाली म धम्म कहे जाथे, सफलता हावे। सामान्य भाखा म धरम कथे । मोला लागथे छत्तीसगढ़ी आलोचना म अइसन तत्व (प्रकर्षते) के निशात कमी हावय। तास्विक तत्व के शोध परंपरा के बिना कोनो कष्ट ला परखे नइ जा सकय। कन्फ्यूशियस ता केहेच हे ’’एक-एक कृति म सुंदरता हाेथे, फेर कोइ येला देख नइ सकय’’10 हो सकथे मय घलो चूक गे होहूँ। चूक मनखे के स्वाभाविक प्रकर्षते हावय।
     बिंब अउ प्रतीकमन म डूबे कविता ’ठगे आसाढ़’ लगभग उलट भाखा के तीरे - तीर हावय। इही ह जम्मों देश के किसान के हालत ब्यवस्था करइया के नाच बेंदरा नाच तोला पइसा देबो पाँच ला उजागर कर देथे। अइसने पइडगरी बन जाही कविता म तन-मन-धन - मन परंपरा संघर्ष हावे। मूड़ी - मूड़ी कविता पंक्ति हावे-
चिखला के जहाँ धुर्रा उड़े, तपे जेठउरी कस ठाड़।
किसान ला धरलिस अब त, एक कथरी के जाड़।
बादर गरजे जुच्छा अइसे, गली म भुँखरे साँड़।
लाय हन खातु माटी, बीज-भात करजा कांढ़।
चूहे छानी तर-तर पथरा, त सगरी बन जाही।
बिरबिट अमावस रतिहा ह,ओगरी बन जाही।( पृ.23,24)
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पथरा ह उफलावत हवय, बूड़त हावे पोनी रे।
जीते-जियत ये जिनगी, मउत के होगे पुरोनी रे।( पृ.25)
        मनरेगा अउ सत्तादर वाला राशन चनामुर्रा हावय। तड़फ - तड़फ के मइनखे मन के मरन  हरवत हावे। सेकी करील ब्यवस्था बताथे ’कुपोषण’। फेर कारन दूसर हे। इही डहान पीसी जी के इसारा हे। कारखाना के धन ले खेत उजड़त हे। गुंगवा के प्रदूसन, बेइमानी घूस, भ्रष्टाचार ले संसद-विधान सभा म अपन पोगरी-पोगरी जगहा बनावत हे। ’गरीबी हटाबो’ ये नारा 1971 ले चलत हावे फेर अमीर कभू गरीब के बरोबरी तराजू म नइ आइन। मतलब अमीर मन के भूख (लूट) नइ बुझावय। गरीब हर उनाच उना हावथे। नेता मन के बिदेस यात्रा तीरथ बन गे। देश के तीरथ तिरा गे।
मुखिया तोर ले एके ठन सवाल हवय मोर।
जिंनगी के पेट-नीठ में काबर परत हे लोर।( पृ.27)
          इहाँ मुखिया श्लेष म हावे । देश के परधान अउ घर के सियान ।ता सियान के परिवार उबरे कइसे? देश सियान अउ उकर जाला (केबिनेट) सोसन करते च हावे। यादव जी इंकर उप्पर ’ पथरा ला कचार दे’ कविता लिखते।
गोहराव हावे जनता बर-
मनखे हो के तै झन हो लाचार,
लाकतंत्र म संगी सरग निसैनी चढ़ के
हक ले बर देखाय ल परथे अपन सकल
सोसन के मुड़ी म पथरा कचार ( पृ.29,30)
          आम जनता ला धरम के नाम भरमा के लोकतंत्र उप्पर परदा ओढ़ा देथे। लोकतंत्र ला खुदतंत्र म बदल के खुदा बन बइठते। ये समे ला पहिचान येला जनावत हावे। ये कर बर पीसी चेतना जागृत करत हे। तम्मो जनता गोहराथे। तुम्हन ता आगी जइसन संतान हावै। फेर काबर लोकतंत्र मंदिर भसकत हावे तेला दखव हो। सागर-नंदिया जइसन बनव। पृ..31 के कविता जयप्रकास के ’संपूर्ण क्रांति’ ला सुरता करा देथय। जेकर सहारा ले के जनता पार्टी के उदय होइस। आज जेला बीजेपी के नाव ले जाने जाथे।
            फेर कविता हर पारटी के नइ, जनता हक के समरथन करथे। इही यादव जी के मया आय । मानवीय पिरित आय। येमा स्टम् नइये। कबीर के अढ़ाई आखर हावय । जे हर बदलाव लाही।
सौ घाव सोनार के, त एक घव लोहार के।
गली-गली म रक्सा घूमत, लोकतंत्र के मंदिर भसकत। ( पृ .31)
         इहाँ घाँव हर दाँव ला अंलकृत कर देइस। इही कविता के संघर्षके माइ मुड़ी आय । आपस के लड़ई वहू बिना सोचे-समझे जनता कर लेथे तेला चेतावत हे। चेतना बगरावत हे। परचेतना ला घलो जता देथे-
सुने सबे पर गुने न कोनो, तुलसी-कबीर के साँखी।
मनखे हो के मनखे पन के, मनखे करे करेजा फाँसी।
केहे-बोले के बात का हे, दिखत हे आँखी के साँखी।(पृ.32,33)
          इहुँचो पीसी लाल के वैचारिकता म विरोधाभास व्‍दंव्‍द आ गीस। माने दूठन रद्दा धर डारीस। दू डोंगा म पाँव धरइया कोनो डहान के नइ होवय। प्रतिबद्धता होना जरूरी हावय । तुलसी स्वान्तः सुखाय संग क्रांतिकारी कबीर ला जोड़ देइस । येला रचनात्मकता के कमी कहिबो ? नइ। अभी पीसी लाल के कविता म पक्का विचारात्मकता के ठसलगहा के मंजई नइ होय हावे। ’’आलोचना के उद्देश्य हावय जानय अउ जानय’’11 काबर के फेर लहुट जाथे पीसीलाल देस के पीरा म। अउ आघू लिखते। ’देश म बड़ करलई हे’। ( पृ.34) मइ करलई भारत माता के संतान होना नइये । भारत संतान भीतरी बने वर्ण-जात के हावय। देश के असली पीरा ला पीसी़ पकड़िस हे। जेमा हिंदुत्व-हिंदुराष्ट्र बर कोनो जगहा नइये संवैधानिक प्रक्रिया म ‘भारत’ देश के जम्मो दरसन के दरपन हे-भारत माता के बेटा सब, का बाम्हन का डोम?
          हिलिच मय कहिडारे हाँवव, शबरी के संबंध म, अब डोम ला समझ संकथव। बाम्हन - डोम म राेटी - बेटी नइ होय। राम जरूर सबरी के जूठा बोइर ला खाइस फेर तरिया जुच्छा के जुच्छा। जीव छुट्टा मन करथे काँव - काँव फेर जेकरे हाथी तेकरे नाव वाला किस्सा हे। तभेच ’जाग के सपना देखव’ पीसी लिखथे - पहिलि चेता देइस
नरवा कहिथे मय बड़े, नंदिया ल देवँव पानी।
पानी कहाँ ले पाये, नइ जानय नरवा अगियानी।
           इहाँ शब्द आकर्षन संग शब्दार्थ विस्तार के अभिव्यंजना गजब हावेय अज्ञानी बर सोवत सपना के कोनो अरथ नइये। चटनी-बासी वाला मन के घलो खबर लेथे। काली आइन तेमन हमला अबे साले बिर कहिथे। मय साला (सारा) पर चर्चा कर डारे हाँवव । मरजात के नगदी सवाल उठाथे उधारी सवाल चटनी - बासी के जम्मो परिवर्तन करइयामन बर। इही कुबेर के कहानी साला छत्तीसगढ़िया ला सुरता करव। पीसी लाल आंह्वन करथे-
जाग मोर कबीर तहीं, फूंक दे अब आगी।
अउ कबले? तिरही, दुसासन दुरपति के आगी।
तन सुलगत हे आगी, मन होवत हे बागी।( पृ.41,42)
कबीर के जियत क्रांतिकारी सपना देखव-
सुखिया सब संसार है, खावै अउ सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अउ रोवै।
          मतलब कबीर के संगवारी पीसीलाल। कबीर संग मनचो ला जगाय के कारण ? सुघ्घर बदलाव करइया कबीरेच होय हे। फेर कबीर ला महंत मठाधीस मन आज अपन मोटरा सकेल थे। ताना - बाना नइ धरय। ब्यवहार के प्रकृति ला पीसी बताइस।
          जेेन तपथे, तेन खपथे‘, ‘पाही‘, ‘नाचा रातरानी‘ म सब्बो बात सोसन के बताइस। ताकि पढ़े - लिखे अउ सोसन करइया मन साफ आंदोलन सुरू करय। येमा तोर पंथी - मोर पंथी के जरूरत ? जेला एकर आवश्यकता रहिथय तिही हर फुंसी - बनात - बनात घाव के दाव बनाथय। मतलब के जयचंद, मीरजाफर, बिभीषण मन ले बाचे ला परही। परखे ला लागही। नइ ते कुढ़ोय खरही म आगी लगनाच हे! यकर बर गाय अउ गोल्लर ला प्रतीक रूप म प्रस्तुत कर पीसी लाल इसपष्ट करथ के पिरकी हर घाव बन जाथय। जइसे के आज एड्स के जानकारी हरेच इलाज आय। इहीला ’मेंकरा पूरे जाला’ म समझाय गे हे। जम्मों पागा अनुष्ठान म भारत कइसे महान ? अइसने अनेक प्रश्न पीसी जी हर उठाय। हक पाय बर मुकाबला करनाच परही। ‘तब हक मिलही’ धरम अउ वोकर उपर सरधा (श्रद्धा) म डार्राय काबर ? येकरे सेती मूलकदास घलो किहिस हे-
संतन को फतेहपुर सिकरी से काहो काम।
आवत जात पहनिया टूटी बिसर गए हरि नाम।
          अउ लोगनमन हावय सिकरीच डहान पुरस्कार पाय बर मोटाय बर दउड़त हावे। ये हर भूख हावे। गरीब भूख के पेट बर कोनो नइ दउड़य। काबर ? जांगरवाला जम्मों काम - बुता कर भूखेच रहिथे। ओकर मूलभूत आवश्यकता के पूर्ति नइ हावय। आगी कहाँ कमजोर हे।बारे ला लागही फूट के संधना ल मया के डोरी म बाँधे ला लागही। जोखिम उठाय ला परही। येकरबर बिरथा साँस के नइ हिसाब के जरूरत हावे। नइ ते फेर मय्यत हावे। ये जेमन चिन्हारी नइ कर पाइन उहीमन गुलामी के गेरवा म फंदा गेइन। ये करे सेती पाका - पाका गुदा ला दूसर खाथे अउ कइच्चा - कइच्चा ला आम - आदमी पगुराथे। इहिच बर पीसी जबरदस्त चेतना क्रांति के कविता लिखते-
जेन बैरी तोर हक पोटारे हे,
वोला तँय काँचा तिली कस पेरवा। ( पृ.64)
          इही गुलामी के गेंदला म पयावरन घला गेंदला हो गे हावे। ( पृ .35 ग़जल) अइसन गेंदला के आदिवासी वर्ग ला समूल नास करे बर जम्मों योजना विकास के नाम म चलत हे। जगदलपुर म आदिवासी मन के घर द्वार जमीन ला कोनो झन खरीदे,कानून ला धज्जी बनाय के उहाँ गैरआदिवासीमन उगा गेइन। जगलपुर विधानसभा सीट सामान्य हो गेइस।ये जम्मों साजिस के तहत होवत आवे।नक्सलवाद एक डाहान अउ ब्यवस्थावाद दूसर कोती।
           दूनों के के बीच म आदिवासी के नइए सुनवाई! तभे मादर के थाप नंदा गे पिरकी हर घाव करिस। सरगुजा अउ बस्तर राजभाषा के विरोध करथे। अइसन भरवा कोरबा राजभासा सम्मेलन के मेच ले आखरी बेरा  आइस। काबर हावत थे। जे दिन पिछड़ा वर्ग अउ आदिवासी साहित्य हर अपन रागविराग लाबता देही तेन समय ब्यवस्था के चेहरा-मोहरा दूसर होही। काबर के असली नक्सल ला चिन्हे नइ गे हे। एक आदमी, एके वर्ग, एके जाति, एके वर्ण के कोनो मेर कबजा हो जाथय ता नक्सल पनपथे। हर विरोध करइया नक्सल नइये। अहिंसात्मक रूप म जे हर अपनेच ला हरँ कथे, रेगाथें, अपने खिचड़ी पकाथे, पालागी कर पाछू - पाछू किरनी असन चिपके रहिथे वहू नक्सल हावय, फेर दिखय नहीं। ये मन तंगरेगा चलाथय। चना - मुर्रा के लालच खवाथे। अउ अपन बर मत-मन सकेलथे। यहू नक्सल रूप हे। गोली - बारूद धरय नइ फेर समय - समय म लकड़ी चलवाथे, तेल म बद करथे, झूठ आरोप म फँसवाथे। येहा रचनात्मक नक्सलवाद हर आदमी ला आघू बाढ़ेय लानइ देवय। कते नक्सल सेती मांदर थाप हे - जइो अज देसभक्ति के परिभासा गढ़त हे वो मन रामचंद्र शुक्ल के निबंध ल नइ पढ़े हावय। चिरइ चुरगुन ले नदी पहाड़ रूख - राई नरवा अउ पथरा तक ले जे हर पिरेम करही वो हर देशभक्त होही। येकर उलटा पिरेम करइया का नक्सल नइ होही ? एक मात्र छत्तीसगढ़ बर नइ जम्मो देशबर कविता सरल भरवा हावे-
अतियाचारी - अन्यायी ल, देवत हे कोन पंलोदी ?
बाहिर ले आ के बैपारी, बोले औने-पौने बोली।( पृ.68,69)
         बस्तर, सरगुजा हर नइ, देश म जम्मों जगहा अहिसनेच हाल हे। अड़बड़ मामिक कविता लिखिन हे। पीसी लाल हर अब ये पीसी लाल ल कले ’लाल’ कहिबो ? जान सकथन। थोइकन लिखन, जियादा समझन नइ जनइया बर उदाहरण हावै। मायर रॉथ्स चाइल्ड जेहर फ्रैंकफर्ट म 1744 म जनम आइस, के आनी हावै ’’मोला कोनो घला देश के मुद्रा बर नियंत्रण दे देवव, फेर उहाँ कानून कोन मन बनात हे - मोला एकर परवाह नइ रही’’12 अइसन कुबेर-धन मन के सक्सल राज चलत हे। अब कते आवय नक्सल ? दूसरा उदाहरण हे-’’अल्मोड़ा म रानीखेत के द्धारसो डीडा नैंनीसार म जिंदल समूह ल सरकार डाहान ले 353 नाली (7.061 हेक्टर) जमील ला सुक्खा कम 1,196.80 रूपया हर साल के किराया म दे गे हे।’’13 येकर बर उहाँ आंदोलन चलत हे। ता हमन माटी-महतारी चटनी बासी म काबर गूंथ गे हन। पीसीलाल ’लाल’ के कवितइ हावे-
जीयत सबे आजादी ले, कोन जीयत आजादी बर?
देसभक्त मन भूख मरे, बिरयानी आतंकवादी बर।( पृ.70,71)
           पीसीलाल ओनहा - कोनहा के पिरकीमन ला पहिचान करावत हावय। का अइसन प्रगतिशील कविता नइ चलही ? येकरो ले आघू सुचालित-स्वचालित कविता के समे आय गेहे। सुटुर - सुटुर चले के। सोझ - सोझ दु - दु हाथ कर लेवन। अइसन भारत के समे आय गे हे। जेन दिन पिछड़ा वर्ग, एस.सी., एस.टी. अइसन कविता करही वो दिन पीसीलाल यादव दर्शन म डोम - बाम्हन भारत के बेटा - बेटी होही। जे अइसन नइ करिहि वो हर उँहिचेच मार्चपाट गुलामी के कर ही। वोली बेड़िच म आजादी रही। उहिला देखही एकरे बर अदम गोंडवी लिखथय-
ये संगवारी जिनगी ले झन अतिक निरास हो,
सुक्खा घलो हावय नंदिया ता समझ रद्दा होइस।14
           मोला लागथे इही डहान यादव के कविता कदम बढ़ावत हे। लोक नंदाना नइ चाही। तंत्र ला बचाय बर पीसी कलम घीसथे-
काबर बने बइठे हस हिन हर? संगी मुठा बने तैं बाध ले।
सुकसा भाजी कस रमंज के, सोसक बइरी ल राँध दे। ( पृ.76)
इहाँ राग अदम गोंडवी ले आघू - आघू होवत हे।
          सोसन किरनी असन, पेराकांदी जइसन होवत हे ता कइसन महातारी के गीत ला गावत हावन अउ कइसन कौसिल्या के मरजात राखत हावन? सोचे ला परत हे! अउ ये सब लोकतंत्र के नाव म होवत हे! महिलबरा मन ला मारे बर कइसन कविता करय? ठक ले मारे के बात उठाय गे हे। ( पृ.80) ये कविता नवा पीढ़ी म चेतन भर देइस। अइसने बात बिनपेंदी के लोटा वाला साहित्यकार मन बर घलो आवय। चेतना ला जगाय खतिर पृ.. 93 तक के बखान म चिंतन हे। जेला पाठक पढ़ के समझ जाही। एक - एक कारन ल धर डारही।
           माइभाखा के बहुतेच बरनन करे हे पीसी लाल हर। जेमन राजआयोग म हावे, आयोग जे मन ला सम्मेलन सत्र म परिचर्चा करे बर बलाथे। जेला सुनयबर भाग ले बर न्यौता देथे। यदि कोनो उंकर लइका, नाति, पंती अंगरेजी माध्यम म पढ़त हे वोला कोरे परिस्थान झन देवव। ये डहान माइभाखा छत्तीसगढ़ी म, राजभासा आयोग म अउ आयोजन के परिचर्चा म अउ वो डहान खुद परिवार रिस्तेदार लइका खुद अंगरेजी कान्वेंट म ? तब कइसे माइभाखा के बात ? मय मातृभासा के विरोधी नइ हाँवव। पर उपर्युक्त मार विचार म सर्वे करे के जरूरत त हावे फेर देखव राजभासा चिंतन के सरग - नरक!
          थोरकुन चरचा मया-पिरित उप्पर - मोला1979 के खैरागढ़ प्राथमिक शाला के प्रांगन म दूध मोंगरा के गीत सुरता आथे। ‘तोर मया के आगी म मोर तन - मन ह भुंजा केरे‘ ये गीत हर सिरिगार के जइसनो मया बर होवय, फेर येकर आगी म ठाढ़े ठाढ़ जरथे अउ भोगाथे। (सोसित अउ सोसक) तभे त मया के पिरकी ह घाँव होगे। रचना भले देरी ले आइस फेर दुरूस्त आइस। अब ते परेम के नोक म पीसी रेंगत हे। हिम्मत वाला के काम आय गा।
बिचार अउ लहू के मंझोत
हावे एक संक्षिप्त बिजली के चमक
टिके हावे जेकर नोक म परेम।15
(शबर्तो ख्वारोंस की कविताएँः मूल स्पेनी से हिंदी भाषान्तर प्रेमलता वर्मा द्वारा- वनात अंक ग्यारह। इंद्रप्रस्थ भारती अक्टूबर-दिसम्बर 2015 हिंदी अकादमी दिल्ली पृ.07)
            अइसन परेम पीसी हर हरदी - नून - मिरचा ला पीस - थीस के मसाला के सवाद देवथे। अब जेला चुरफुर, कडू सवाद लागथे ते हर पीसीलाल के ‘लाल‘ ला नइ समझ सकय। परेम उप्पर फेर कभू चरचा के चरवाही करबो। चारवाही देखबो। फिलहाल-
मुक्तक म (चर डँड़िया) म खाल्हे के लाइनमन म संग्रह के सार दिखथय-
कतेक ल समझाबे अउ कतेक ला सेझियाबे।
कुकुर पूछी ला सोझियावत, पोंगरी तेड़गा होगे।( पृ.109)
          एक ते कुकुर पूछी सोसन करइया ला बांडा बना देवत। दूसर कुकुर असन नेता के टांग काट देव। सोबिया जाही। भाखा अउ संस्किरिति के रक्षा हो ही।
          संग्रह के विद्रोही तेवर हर हककीत म आनेवाला समे म क्रांति करही। अइने आसा संग  पीसीलाल यादव ला बधाई।
पता
शंकरपुर वार्ड नं. 10 
                                                                                  राजनांदगाँव ( छत्‍तीसगढ़)                                         

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