कविता सिंह ''वफा ''
हर तरफ चली है बात अपनी शनासाई की
साथ ही बात है अब तेरी बेवफाई की।
अब भी वही रात है चांदनी भी फैली है
पर सियाही कितनी है शब तेरी जुदाई की ।।
तस्कीन - ए - दिल था फिर से आमद का तेरे
कैसे कहूँ भूल गया बात थी रुसवाई की !!
रूदाद - ए - ग़म कह न सकी ख़त्म आशिकी का
बात दूर तक़ गई है तेरी आशनाई की !!
तुझमें '' वफ़ा '' थी नहीं कोई कहाँ माना ये
लोग जानते थे बात तेरी मसीहाई की ।।
साथ ही बात है अब तेरी बेवफाई की।
अब भी वही रात है चांदनी भी फैली है
पर सियाही कितनी है शब तेरी जुदाई की ।।
तस्कीन - ए - दिल था फिर से आमद का तेरे
कैसे कहूँ भूल गया बात थी रुसवाई की !!
रूदाद - ए - ग़म कह न सकी ख़त्म आशिकी का
बात दूर तक़ गई है तेरी आशनाई की !!
तुझमें '' वफ़ा '' थी नहीं कोई कहाँ माना ये
लोग जानते थे बात तेरी मसीहाई की ।।
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