विट्ठल राम साहू '' निश्छल ''
बिगन अंगना के सब घर इंहा, त तुलसी के कहां गंध।
सासन ह अब कर डरिस चीर हरन संग अनुबंध।।
पीरा बादर बनके बगरगे, कहाँ मिलही सुख के धूप।
सोनहा मिरगा के हे इंहां करोड़ करोड़ प्रतिरुप।।
कहां मया के बोली इहां, अब सुसके पीपर के छांव।
चौपाल तक मजहबी होगे हमर गाँव - गाँव।।
जउन मन ये राज ल बना दीन दुकान।
आज उकरे घर म साजे हावय गुलदान ।।
सुसकत हवय सुख, अब व्यथा सुनाथे गीत।
बस हमर अपराध इही, तोर संग जोरेन पीरीत।।
पता:
मौवहारी भाठा,
वार्ड नं. - 18,
महासमुन्द - 493 - 445
मो. - 09977543153
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें