इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

सोमवार, 31 अगस्त 2015

छत्‍तीसगढ़ के सरूप

डॉ.चितरंजन कर 

        छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ के डेढ़ करोड़ लोगन के मातृभासा, संपर्क भासा, ये अउ तीर - तखार के उड़ीसा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश,अउ झारखण्ड के इलाका मन म तइहा ले रहत आत छत्तीसगढ़िया मन के भासा ए। छत्तीसगढ़ी के संगे - संग हमर राज म हलबी, गोंडी, कुउख, दोर्ली, परजी, भतरी, उड़िया, मराठी भासा मन के बोलइया मन घलो हवै। जउन मन छत्तीसगढ़ी के बेवहार करथें।
        छत्तीसगढ़ ह हिन्दी भाषी प्रदेश मन के सूची म क बरग म आथे। मतलब ये हे कि छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी हमर राज म सहोदरा बहिनी सही रथें। छत्तीसगढ़ी हो कि कउनो भासा होए, ओ ह तभे बढ़े सकही, जब ओ ह आने भासा मन के संग म संवाद करही। दू या तीन भासा के सम्पर्क म आदान- परदान होबेच करही अउ सब्द मन एती ले ओती जाबेच करही। फेर बियाकरन ह ओकर ले परभावित नइ होवै।
        छत्तीसगढ़ी म हिन्दी, संस्कृत अरबी, फारसी, अंगरेजी, उड़िया, मराठी अउ कउन - कउन भासा मन के सब्द मन आके रच बस गिन हें। फेर ओमन अब छत्तीसगढ़ी के हो गिन हें।
        असल म सब्द मन के जाति, बरग, इलाका धरम अब्बड़ उदार रथे। जेकर कारन ओ मन सुछिंद एती - ओती जात - आत रथें। असली लोकतंत्र भासा म नजर आथे। तभे ओ ह जनसाधारण के पूंजी होथे। तुलसी बबा ह अपन रामचरितमानस म सिरिफ अवधि के सब्द मन के परयोग नइ करे हें, बलकिन अरबी, फारसी, अउ संस्कृत के सब्द मन ल सइघो या अपन भासा के मुताबिक रेंदा मार के अपनाए हें। तभे तो आज रामचरितमानस ह अतका लोकप्रिय होइस अउ कतकोन आने भासा मन म ओकर अनुवाद होइस। अंगरेजी म हमर भासा के हजारों सब्द जस के तस ले लिए गे हे। इही कारन ए कि ओ ह दिन दुनिया म बगर गे हे। भासा ह एक नदी समान हे। ओ ह सुछिंद बोहाथे, तभे ओकर पानी ह निरमल रथे। ओ ल बियाकरन ह बांधे नहिं ओकर बरनन करते, ओकर बेवस्था ह सब्द मन ले बिगाड़े नहिं। भासा के सरूप तब बिगड़थे, जब ओकर बियाकरन ह परभावित होथे। बियाकरन का ओ ह सब्द मन के संरचना अउ वाक्य के संरचना के बेवस्था ए जेन म पुरुषवाचक सर्वनाम, क्रिया अउ अव्यय क्रिया विशेषण समुच्चय बोधक, संबंध बोधक, विस्मयादि बोधकद्ध मन असली होथें। ए मन के सेती भासा ह आने भासा ले अलग साबित होथे, जइसे मैं डॉक्टर करा गे रहैं। कहे म हमर भासा के बियाकरन ह परभावित नइ होए डॉक्टर सब्द अंगरेजी के ए । लेकिन जब मैं के जगह म आई या अहम् कहें जाए या गे रहैं के जगह म हेव गान कहे जाए तब ओ ह छत्तीसगढ़ी नइ रहे सकै।
        छत्तीसगढ़ी म आने भासा के अनेक परकार के सब्द लिए गे हे। ये म व्यक्तिवाचक संज्ञा अउ पारिभाषिक सब्द मन ल हमन जस के तस लेथन, जइसे मंत्री, प्रशासन, राष्ट्रपति, राज्यपाल राष्ट्रसंघ, विश्वहिन्दी परिषद आदि। व्यक्तिवाचक नाम मन ल जस के तस लिखे जाथे। भले ही ओकर उच्चारन हमन अपन अनुसार करथन। जइसे सुरेश ल छत्तीसगढ़ी म सुरेस बोले - पढ़े जाथे, शंकर ल संकर ए क्षमानिधि ल छिमानिधि ए कुरुक्षेत्र ल कुरुच्छेत्र आदि। काबर कि लिखना अउ बोलना अलग - अलग बेवस्था ए। दुनिया म जतका भासा हें, ओ मन के कमोवेश इही हाल ए। हमन जइसे बोलथन, ओइसे न तो लिखन अउ न ही लिखे ल ओइसे पढ़न।
भासा म भेद के कारन अउ कुछु नइ इही उदार मानसिकता होथे। भासा के बेवहार करइया मनखे ए अउ दू झन मनखे एकेच भासा ल एकेच परकार म नइ बोलें। चार कोस म पानी बदले, आठ कोस म बानी, के मतलब केवल छेत्रभेद नो हे ओ ह समाज, व्यक्ति, परिस्थिति भेद घलो आए। जउन भासा के बेवहार - क्षेत्र जतका बड़े होही, ओ म अइसन भेद जादा रही। हिन्दी या अंगरेजी के क्षेत्रभेद ल तो हमन सब जानत हन। महर्षि पतंजलि अपन महाभास्य म अपन समय म अइसन भासा भेद ल चिन्हित अउ बताइन कि गोष् सब्द के गौ, गावी, गोणी, गोपोत्रलिका जइसे भेद जगह - जगह बेवहार होत रहिस। एकर मतलब ये हे कि कउनो भासा अपने - अपने बनै या बिगरै नहीं, ओकर बोलइया मन के अनुसार ओ ह अपन आकार धारन करथे। जतका अउ जइसे भासा के गियान मोला हे, उहीच ह असली ए अउ आने मन के ह ना हे. ए सोच ह दरिद्री के लच्छन ए। भासा के बेवहार क्षेत्र म छोटे - बड़े सबे के हिस्सा अउ अधिकार होथे। तभे भासा ह समाज अउ संस्कृति के भार ल बोहे सकते अउ ओ ल एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी तक ले जाए म सच्छम होथे।
        हमर छत्तीसगढ़ म आने भासा के बोलइया मन जब छत्तीसगढ़ी बोलथें त ओ म अपन भासा या बोली के सब्द मन आबेच करहीं अउ ओकर ले छत्तीसगढ़ी ह पोठात जात हे। छत्तीसगढ़ी के क्षेत्रीय भेद गना, इही आने भासा के हाथ हे, जउन ल छत्तीसगढ़ी बर सुभ लच्छन मानना चाही।
रायपुर (छ.ग.)

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