इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

सोमवार, 24 अगस्त 2015

तीजा

नंदकुमार साहू

सिव-सती के मया पिरित ल, बेद-पुरान ह गाथे।
सबे जनम म पारवती ह, सिवजी ल पति पाथे।
अमर पति पाए बर देवी, करिस तपसिया भारी।
तब ले अपन सुहाग के खातिर, तीजा रहिथें नारी।

तिजिहारिन मन करत रहिथें , तिजहारा के अगोरा।
पन्दरा दिन के अघुवाही, हो जाए रहिथे जोरा।
सुरता आथे ननपन के, सखी-सहेली के नाँव।
नंदिया-तरिया, घाट-घठउंदा, बर-पीपर के छाँव।

ओरी-पारी आगू-पाछू सबके तिजहारा आ गें।
जम्मों तिजिहारिन मन ए दे, मइके म जुरियागें।
दूज के रतिहा किंजर-किंजर के करू भात ल खाथें।
तीज के निरजला बरत ल, हँसी-खुशी रहिजाथें।

चउथ मुंधेरहा चरबज्जी ले, चाबे लगे मुखारी।
नहाखोर नवा लुगरा पहिने, पूजा के करे तियारी।
पारबती अऊ सिव ल सुमर के, मन के साध पुराथे।
मया-दुलार मिले मइके ले, तीजा के चिनहा पाथे।

ठेठरी, खुरमी, सूजी, सिंघाड़ा, ले, भर जाथे थारी।
अरपन करके भोग लगाथें फेर करथें फरहारी।
तिजिहारिन दीदी-बहिनी के, दुएच् टप्पा बोल हे।
मइके के चेंदरा अऊ, पसिया घला अमोल हे।
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ग्राम - मोखला
पोष्‍ट - भर्रेगांव, जिला - राजनांदगांव (छ.ग.)

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