इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शनिवार, 29 नवंबर 2014

प्रो. श्‍योराज सिंह ' बेचैन ' की दो कविताएं

प्रो.श्‍योराज सिंह ' बेचैन '

(डॉ. बी. आर . अम्बेडकर को 14 अप्रैल 1990 में भारत रत्न दिये जाने के मौके पर लिखी गयी कविता )
बयालीस बरस बीते
आज़ादी - ए - भारत को
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
आया यह गनीमत है
जम्हूरी हुकूमत में
जातों के झमेलों में
धर्मों के बखेड़ों में
वोटो के लिए चाहे
वाजिब यह इनाम आया।
अब आ के हमें
अपने बाबा का ख्याल आया।
भीष्म की तरह जिनके
गिन - गिन के तीर झेले
धृतराष्ट्र के बेटे थे
कुछ थे मनु के चेले
अफसोस कि जुल्मत पर
अब तक न विराम आया।
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
वर्णों के विभाजन में
गृहयुद्ध जातियों का
फल मिल नहीं रहा था
इंसान को मेहनत का
शोषण के सपोलों ने
था जाल - सा फैलाया
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया
तालीम से पाबन्दी,
रोटी के भी लाले थे
गोरों से कहीं ज्यादा
जालिम ये काले थे
महिलाओं के सिर पर भी
गर्दिश ही का था साया
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
सौ साल हो रहे हैं
बाबा के जन्मदिन को
आसार - ए - मुक्ति अब
दीखे किसी निर्धन को
ये कौन जिन्हें देखो
इस पर भी मलाल आया।
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
मजहूम को इज़्जत दी
अच्छा ही लगा हमको
पर दलितों पे सितम जारी
बाबा पे करम क्यों हैं?
बयालीस बरस बीते
आज़ादी - ए - भारत को
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।


शिखर पर
साहित्य में घाघ
कला में कपटी सियासत में शातिर
मीडिया में मठाधीश
सिनेमा में शिखर पर हैं
संसद में मनोनीत
लोकतन्त्र के
माई - बाप
सर्वेसर्वा
अपने आप
देश के सपने
देश की सुविधाएं
देश के साधन
सब के सब
उनके घर पर हैं
वे शिखर पर हैं।
पता -

1/122,वसुन्‍धरा, गाजियाबाद ( उत्‍तरप्रदेश )201012

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