इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शनिवार, 30 अगस्त 2014

चोर अंकल, पुलिस अंकल

लोक बाबू 
शहर में उन दिनों चड्डी-बनियान वाले चोरों का बड़ा आतंक था। ये घरों से चड्डी-बनियान चोरी नहीं करते थे, मगर चोरी के समय ये लोग सिर्फ इन्हें ही पहने होते। इनके हाथें में डंडा या लोहे की रॉड होती। रॉड से ये घरों के ताले तोड डालते और जरूरत पड़ने पर इनका हथियारों की तरह इस्तेमाल भी करते। इनके पूरे शरीर पर सरसों का तेल मला होता, ताकि दूसरे की हाथों की पकड़ से फिसलकर भागने में सहूलियत हो। सरसों के तेल का एक फायदा और होता था; इन्हें अवसर की प्रतीक्षा में घंटों वीरान अंधेरे कोने में अधनंगे दुबके रहना पड़ता था। सरसों के तेल की तीखी गंध से इन्हें मच्छर नहीं काट पाते थे। घरों में घुसते समय ये चेहरे पर कपड़े लपेट लेते, ताकि इन्हें पहचाना न जा सके। ये गरीब लोग थे। बड़े-बड़े धन्ना सेठों के यहाँ चोरी की इनकी औकात नहीं थी। मध्यम, निम्नमध्यम वर्ग के नौकरीपेशा लोग अक्सर इनका शिकार हुआ करते। इन चोरों के भी अपने अलग-अलग गिरोह और इलाके थे। मंदी, गरीबी और बेरोजगारी की मार ने इनकी संख्या में इजाफा किया था।
चड्डी-बनियान वालों के आतंक से लोगों ने अपने घरों के लकड़ी के दरवाजों के सामने लोहे की सलाखों वाला अतिरिक्त गेट भी लगवा लिया था। फिर भी लोग घर छोड़कर जाते तो किसी न किसी को निगरानी के लिए जरूर कह जाते। दरवाजे और गेट पर दो-दो ताले लगते। निगरानी के लिए कुत्ता पालने का चलन आम होने लगा था। कहना मुश्किल था कि वे कुत्ते की देखभाल करते थे या कुता उनकी। अंधेरा घिरते ही ज्यादातर लोग घरों में समा जाते। सोने के पहले दरवाजे की सिटकनी और ताले अवश्य जांच लेते। कुछ प्रायवेट कालोनियों के लोगों ने मोहल्ला समिति बना ली थी। पाली-पाली से रात्रि में पुरुषों का दल गस्त करता था।
ऐसी ही नई कालोनी भिलाई और चरोदा के बीच बस रही थी। फिलहाल गिने-चुने मकान ही थे। चरोदा की अपेक्षा भिलाई के अधिक करीब होने से इसे भिलाई का ही हिस्सा माना जा रहा था। अभी भीतरी पक्की सड़कों का अभाव था। खेती योग्य काली मिट्टी की जमीन थी। बरसात में मकान से बाहर निकले नहीं कि पांव भारी हो जाते थे। कीचड़ और दलदल की वजह से वाहनों की सवारी भी स्थगित रहती। कामचलाऊ दो-तीन कच्ची सड़कें जरूर बन गई थी, परन्तु बरसात में वे ज्यादा साथ नहीं दे पाती थीं। रहवासियों को उम्मीद थी कि राजधानी रायपुर और औद्योगिक नगरी भिलाई के बीच की यह खाली जगह शीघ्र ही पूरी भर जायेगी। आखिर राष्ट्रीय राजमार्ग भी तो यहीं से गुजरता है। यहाँ रेल्वे स्टेशन भी है। कालोनी के पूर्ण विकसित होते तक अभी कुछ वर्ष थोड़ा कष्ट झेलना तो पड़ेगा ही। मगर चड्डी-बनियान वाले चोरों के आतंक से, जो पूरे इलाके में पसरा था; शाम होते ही यह छोटी-सी कालोनी भी दहशत में आ जाती।
इस अनाम कालोनी में पंद्रह-बीस मकान बने थे। इन्हीं में दो मकान ऐसे थे जो पास-पास तो थे, किन्तु दोनों का मुख विपरीत था। एक में इसाई परिवार रहता था, दूसरे में हिन्दू। हिन्दू परिवार में कुल जमा चार लोग रहते थे; पति-पत्नी और इनकी दो लड़कियाँ। अभी गर्मी का मौसम था। स्कूल-कॉलेज बन्द थे। बड़ी लड़की श्वेता बी. कॉम. प्रथम वर्ष की परीक्षा देकर मामा के घर बिलासपुर चली गई थी। छोटी लड़की, जिसका नाम मीनाक्षी था और जिसकी सहेलियाँ जिसे चिढ़ाने के लिए अक्सर Óआ..क्छीÓ कहा करती थी, कक्षा चौथी में थी। पिता रामजी सोनी विद्युत मंडल में क्लर्क थे। भिलाई में ही ऑफिस था। कहते हैं, पास-पास हो मकान और दुकान तो काहे की थकान। बैंक से हाउसिंग लोन लेकर उन्होंने गत वर्ष ही यह मकान बनवाया था। मगर मकान मनमाफिक बन पाता इसके पहले ही ऋण में प्राप्त रकम खत्म हो गई और बाउण्ड्री आधी-अधूरी रह गई। दीवारों पर केवल चूना ही पुत सका। घर के आगे-पीछे के दरवाजे पर लोहे का अतिरिक्त दरवाजा भी नहीं लगवा पाये थे। रूपयों की और दरकार थी, किन्तु अब कहीं से कुछ मिलने की गुंजाइश नहीं थी। किसी के मकान में रहने के बनिस्बत किराया बचाकर अपने मकान में रहना उन्होंने श्रेयस्कर समझा। कुछ बचत होगी तो अधूरे काम पूरे कर लेंगे। यहाँ चले आये। अब एक साल पूरा होने को आया था।
पत्नी सीधी-सादी और नितांत घरेलू महिला थी। थोड़ी पढ़ी-लिखी थी, इसलिए खाली समय में वह बच्चों की पाठ्य  पुस्तकें और अखबार पढ़ा करती। पड़ोसी इसाई परिवार से उसकी बातचीत ज्यादा नहीं थी। पड़ोसी पति-पत्नी सरकारी नौकरी में थे। उनके एक लड़का और एक लड़की थी। लड़का बड़ा था और दो साल पहले उसे भी रायपुर में अच्छी नौकारी मिल गई थी। उनका मकान सुंदर, मजबूत, सुरक्षित और बड़ा था। मजबूत बाउण्ड्री के अंदर बड़ा बगीचा था। उनके पास कार थी, कीमती कुत्ता था और काफी बैंक-बैलेंस थी।
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रात अंधेरी थी। गरमी से त्रस्त लोग टेलीजिन में मौसम का हाल जानकर मानसून के आने का इंतिजार कर रहे थे। बादल बिना बरसे दायें-बायें होने लगे थे। चोरों का गिरोह रात ग्यारह बजे उस कालोनी से जरा दूर सूखे नाले में पहुँचा। वहीं, अंधेरे में छिपकर कालोनी की गतिविधियों पर नजर जमाये रहा। दिन को जिन दो मकानों को उन्होंने चिन्हित किया था, उनसे भौकते कुत्ते, चौंधियाती रोशनी, जागते लोग और चलते टेलीविजन ने उन्हें पुनर्विचार पर विवश कर दिया। मगर अब खाली हाथ लौटने, या कहीं और धावा बोलने और पकड़े जाने को वे तैयार नहीं थे। दो घंटे उन्होंने वहीं आश्रय बनाये रखा। खूब सोचा, एक-दूसरे को धकियाया, कोसा। अंत में उन्होंने Óजोय जगन्नाथÓ का उद्घोष किया और उठ खड़े हुए। डण्डा-रॉड उठाया और रामजी सोनी की अधबनी बाउण्ड्री के अन्दर प्रविष्ट हुए।
चोरों की संख्या पाँच थी; चार जवान और एक बुजुर्ग। सभी दुबले-पतले और साँवले। बुजुर्ग आज इनके साथ अनिच्छा से आया था। उसकी नातिन ÓलालीÓ बीमार थी। उसे तेज बुखार था। सोये-सोये वह अपने माता-पिता को याद कर बड़बड़ाने लगती। उसे उसकी ही चिंता सता रही थी। माता-पिता की छोड़ी हुई बच्ची के लिए अब वही सब कुछ था। मगर घर में खाने के लाले पड़े थे। इलाज की बात तो दूर रही।
गाँव में घर क्या बनाया, वह कर्जे में डूब गया। कुछ कमाने, कर्जा छूटने वह भिलाई आया था। मगर यहाँ भी नियमित मजदूरी नहीं मिल रही थी। गाँव का साहूकार गाँव के उसके दो एकड़ खेती कब्जे में कर लेने वाला था। इस चोर की तीन संतानें थी। शादीशुदा बड़ा लड़का काम के लायक होते ही कहीं भाग गया। बहू भी अपनी बच्ची को छोड़कर मायके चली गई। संतानों में बड़े लड़के के बाद दो लड़कियाँ थी। दोनों ही शादी के लायक हो गई थी। पत्नी अपाहिज थी। चोरी तो मजबूरी थी। इन नवजवान चोरों के साथ वह भी शीघ्रता से कुछ पा लेना चाहता था। पन्द्रह दिनों की यहाँ-वहाँ की छानबीन के बाद आज का दिन और यह इलाका तय किया गया था। अब इन्कार करने का सवाल ही नहीं था।
मगर प्रतीक्षा से निराश हो रहे उस बुजुर्ग ने एक जवान से कहा - ÓÓतुमने तो कहा था, ये नौकरी वाले लोग हैं, जल्दी सो जाते हैं?ÓÓ
ÓÓहाँ, नौकरी वाले तो हैं। पक्का पता किया है। अब खूब गर्मी है, इसलिए जल्दी नींद नहीं आती होगी। ........  उस घर में कुत्ते का पता दिन में नहीं चला था। साला, देखो रात में कैसे रह-रहकर भौंक रहा है।ÓÓ
ÓÓतुम्हारे शरीर की गंध उसे मिल गई होगी। चार दिन से नहाये नहीं हो।ÓÓ दूसरे जवान ने पहले को छेड़ा।
पहला नाराज हो गया था, कहा - ÓÓतुम्हारे शरीर से तो गुलाब महकता है।ÓÓ
थोड़ी देर चुप्पी रही। तीसरा जवान बोला - ÓÓऔर उस दूसरे घर में, जो भारी मालदार लगता है, हाथ साफ  करना और मुश्किल लगता है। वह घर नहीं किला है। देखो तो, अब रात में गार्ड आकर बैठा है।ÓÓ
निराश और चिंतित  बुजुर्ग ने सलाह दी - ÓÓअगर आज संभव नहीं लगता तो जाने दो। फिर कभी, कहीं और कोशिश करेंगे।ÓÓ
जवानों को बुजुर्ग की सलाह पसंद नहीं आई। एक ने कहा - ÓÓअब निकले हैं तो खाली हाथ नहीं जायेंगे। ...... लगता है तुम्हें ÓलालीÓ की चिंता हो रही है।ÓÓ
ÓÓहाँ, ÓलालीÓ बहुत बीमार है। मगर फिर भी, जब ....।
 ÓÓऐसा करते हैं, सामने एक छोटा मकान बिना बाउण्ड्री का दिख रहा है, वहीं चलते हैं। वहाँ ज्यादा कुछ मिलने की उम्मीद तो नहीं है मगर जब निकले हैं तो रात बेकार क्यों जाने दें। क्यों चाचा?ÓÓ
ÓÓहाँ, ठीक है। मगर याद रखना, ज्यादा मारा-मारी नहीं करना। अधिक लालच में नहीं आना।ÓÓ
ÓÓहाँ चाचा। जैसे आप कहेंगे, वैसा ही होगा।ÓÓ
पहले वाले दो जवानों ने बुजुर्ग को दिलासा दिया। उन्हें उम्मीद थी कि बुजुर्ग अपनी बेटी उन्हें ब्याह देगा।
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आते ही चोरों ने अंधेरे में घिरे, सोनी जी के मकान के आगे-पीछे के दोनों दरवाजों पर राडों से ताबड़तोड़ वार किया। सामने के दरवाजे पर बुजुर्ग चोर था; पीछे के दरवाजे पर शेष चारों। उनके वार में बला की ताकत थी। पीछे का दरवाजा राडों के वार और लातों के धक्के से चरमराकर टूट गया। सोनी परिवार घबराकर उठ बैठा। सोनी जी बिजली ऑन करने दौड़े। मगर इतने में उन चारों का गृह-प्रवेश हो चुका था। बिजली जली ही थी कि चारों ने रामजी सोनी को धर दबोचा। एक ने उनकी पत्नी का मुँह बंद कर दिया। बच्ची चीखती इसके पहले ही चौथे चोर ने बच्ची का भी मुँह बंद कर दिया। उन्होंने आपस में कुछ इशारा किया। बच्ची को संभालने वाला चोर बच्ची को लिए-लिए सामने के दरवाजे की ओर बढ़ा और उसकी सिटकनी खोल दी। सामने के दरवाजे पर खड़ा बुजुर्ग चोर भी अंदर आ गया। उसने आदेशात्मक स्वर में कुछ संकेत किया। शेष चोरों ने पति-पत्नी का मुँह और हाथ कपड़े से अच्छी तरह बांध दिये और एक कमरे में धकेलते हुए चलताऊ भाषा में कहा - ÓÓहोशियारी करोगे तो जान से जाओगे। चुप्पे पड़े रहो। अलमारी की चाबी कहाँ है, बताओ?ÓÓ
राम जी सोनी ने बताने में थोड़ी देर की तो उनके हाथ एठ दिये गये। पत्नी ने घबराकर अलमारी के ऊपर ही चाबी पड़ी होने का इशारा किया। एक चोर ने इशारा समझकर चाबी का पता लगा लिया। उसने झट अलमारी की सारी चीजें उथल-पुथलकर बाहर कर दी। साढ़े चार सौ रूपये नगद के अलावा चांदी के कुछ जेवर, हल्के वजन की सोने की दो चूड़ियाँ, नाक और कान के आभूषण इन्हें मिले। बाकी सब कपड़े लत्ते और कुछ मकान, जमीन, बीमा, नौकरी संबंधी कागजातों का पिटारा था। शेष मकान में कीमती और कम वजन का चुराने और उठाकर ले जाने योग्य उन्हें कुछ न मिला।
पति और पत्नी एक कमरे में बंधे पड़े थे। बच्ची को बुजुर्ग चोर ने अपने कब्जे में कर लिया। उसका मुँह एक हाथ से दबाये वह दीवान पर बैठ गया। बाँकी चोर यहाँ-वहाँ और तलाशी ले रहे थे।
बुजुर्ग चोर ने अचानक अपनी हथेली में बच्ची के आँसू महसूस किये। उसने बच्ची का दबाया मुँह थोड़ा ढीला करते हुए कहा - ÓÓअरे! रोती है क्या? हम तुमको कुछ नहीं करेगा। तुम्हारे माता-पिता को भी छोड़ देंगे। बस, चिल्लाना मत।ÓÓ
बच्ची चोर की हथेली के अन्दर से  होठ फड़फड़ाकर बोली - ÓÓचोर अंकल, आप हमारे घर क्यों आये हो? हमारे घर तो ज्यादा रूपया भी नहीं है।ÓÓ
ÓÓमगर हमारे पास तो इतना भी नहीं है।ÓÓ चोर ने कहा और बच्ची के मुँह पर से अपनी हथेली हटा ली। एक हाथ वह अब भी बच्ची की कमर पर रखे था, ताकि वह कहीं भाग न जाय।
बच्ची के आँसू थम गये और चकित आँखों से वह इधर-उधर आते-जाते चोरों को देखने लगी। चोरों के बारे में उसने बहुत सुना था। डरती भी थी, किन्तु इन चोरों को देखकर उसे ज्यादा डर नहीं लग रहा था। जवान चोर ले जाने योग्य सामान बुजुर्ग चोर के सामने लाकर पटक रहे थे। एक जवान चोर उन्हें गठिया रहा था।
ÓÓआप जॉन और अग्रवाल अंकल के यहाँ जाते तो आपको बहुत सामान और रूपया मिलता। उनकी लड़की मेरे दीदी की सहेली है। वही बताती है कि उनके यहाँ कितना रूपया और सोना है।ÓÓ लड़की ने साहस कर सलाह दी।
ÓÓठीक है, अगली बार हम तेरे को अपने साथ ले जायेंगे। तू बताना, कहाँ-कहाँ रूपया-सोना है।ÓÓ बुजुर्ग को उसकी बातों में मजा आया। लगा, उसकी ÓलालीÓ उससे बात कर रही है।
ÓÓनहीं-नहीं मैं आप लोगों के साथ नहीं जाऊँगी। आप लोग दूसरों को बहुत मारते-पीटते हैं। मुझे भी मार डालोगे।ÓÓ
अब की बुजुर्ग चोर ने कोई जवाब नहीं दिया। इतने में अलमारी से निकाले गये जेवर एक कपड़े में बाँधते देख बच्ची ने बुजुर्ग चोर से कहा - ÓÓइन गहनों को मत ले जाओ चोर अंकल, श्वेता दीदी की शादी के लिए माँ ने इन्हें बनवाकर रखा है। अगले साल ही तो शादी है। आप भी आना। देखना, इन्हें पहनकर श्वेता दीदी कितनी अच्छी लगेगी। ...... लेकिन आप लोग ये ले जायेंगे तो वह क्या पहनेगी?ÓÓ
बुजुर्ग चोर कुछ देर सोचता रहा, फिर उस चोर को जो सामानों की गठरी बना रहा था, संकेतों में कुछ कहा। वह चोर नाराज हो गया। बुजुर्ग चोर उठा और उसने एक चपत उसे लगा दी। फिर गहनों वाली छोटी गठरी को उठाकर स्वयं दीवान पर बच्ची के पास रख दिया। इस बीच बुजुर्ग चोर के चेहरे पर बँधा कपड़ा खुल गया और बच्ची ने उसका चेहरा देख लिया। बोली - ÓÓचोर अंकल, आप तो मेरे ताऊ के समान लगते हैं। उनके भी दाढ़ी-मूँछ के बाल पक गये हैं, तो पूरा साफ कर लेते हैं। नाक के नीचे थोड़ी सी मूँछ छोड़ देते हैं, बिंदी जितनी, आपके समान।ÓÓ
बुजुर्ग चोर ने जल्दी से अपने चेहरे पर फिर कपड़ा कस लिया। बच्ची को फिर उसने अपनी गोद में बिठा लिया। इतने में एक चोर चांदी की एक मूर्ति उठा लाया। मूर्ति बुजुर्ग चोर के हाथों में देकर वह फिर कुछ ढूँढने चला गया। वह मूर्ति कृष्ण की थी। कृष्ण बाँसुरी बजा रहे थे और उसके चेहरे पर मुस्कान थी। बच्ची ने मूर्ति देखी तो मचल गई - ÓÓचोर अंकल, यह तो भगवान कृष्ण कन्हैया की मूर्ति है। माँ कहती है कि बचपन में कृष्ण भी चोर थे। माखन चोर। मगर वह तो भगवान थे, पता नहीं भगवान होकर वे चोरी क्यों करते थे। मगर आप चोर होकर दूसरे चोर को क्यों चुरा रहे हैं। सुबह होगी तो माँ इन्हें ढूँढेगी।ÓÓ
बुजुर्ग चोर के चेहरे पर हँसी आ गई। वह मूर्ति भी दीवान पर गहनों की गठरी के पास रख दी गई। इतने में एक चोर बड़बड़ाता हुआ आया, जो बाहर निगरानी करने में लगा था। उसने सबको सतर्क किया ........ ÓÓलगता है, पड़ोस के घर में पता चल गया है। मैंने ऊँचे स्वर में टेलीफोन करते सुना है। शायद पुलिस को बुला रहा हो। उसका कुत्ता बाहर जोरों से भौंक रहा है। जल्दी भागों।ÓÓ
तत्काल बिजली बन्द कर दी गई। मकान का मुख्य दरवाजा भी बन्द कर दिया गया। अँधेरे में टटोलकर चोरों ने दीवान के नीचे रखी दो गठरियाँ उठाई और पीछे के दरवाजे की ओर लपके। एक जवान का बच्ची की छोटी सायकिल पर ध्यान था। जाते समय उसने झट से उसे अपने कंधे पर लादा और बाहर ले जाने लगा। बुजुर्ग चोर भी बच्ची को वहीं छोड़कर उनके पीछे भागने लगा। मगर बच्ची ने दौड़कर बुजुर्ग चोर की उंगली  थाम ली - ÓÓचोर अंकल, वह तो मेरी सायकिल है, उसे ले जाओगे तो मैं स्कूल कैसे जाऊँगी?ÓÓ
बुजुर्ग चोर ने बच्ची से अपनी उंगली छुड़ाई और अपने दोनों हथेलियों से बच्ची का सिर थामकर उसके माथे को चूम लिया। फिर वह दौड़ा और सायकिल ले जाते जवान चोर के हाथों से सायकिल छुड़ाकर वहीं जमीन पर रख दी। जवान से कहा - ÓÓसायकिल रखोगे तो भाग नहीं पाओगे। पकड़े जाओगे।
पड़ोस का कुत्ता अपने मकान मालक की हद से सोनी जी के मकान के आर्ध बाउण्ड्री के पास आकर बुरी तरह भौंक रहा था।    उस घर के लोग भी पीछे-पीछे टार्च लिए निकल पड़े थे। Óचोर-चोरÓ की आवाज देते हुए वे करीब आने लगे।
ÓÓसोनी जी, सोनी जी।ÓÓ
पडोसियों की आवाज सुनकर बच्ची बाहर आई और जवाब में बोली - ÓÓअंकल, सारे चोर तो चले गये। माँ और पापा  को उन्होंने बाँध रखा है। आप आकर उन्हें खोलिए न। मुझसे गांठ नहीं खुलती।ÓÓ
पड़ोसी ईसाई परिवार आया। उसने राम जी सोनी और उसकी पत्नी को बंधन मुक्त किया। थोड़ी देर में सायरन बजाती पुलिस की दो जीप भी आ पहुँची। कुछ और पड़ोसी भी जाग गए। अच्छा मजमा लग गया। पुलिस जाँच-पड़ताल करने लगी। ......... ÓÓचोर किधर से आये? कैसे दिखते थे? किस भाषा में आपस में बोलते थे? क्या पहना-ओढ़ा था? क्या-क्या सामान चुराकर ले गए। मारा-पीटा तो नहीं? किस तरफ भागे? आदि।
पति-पत्नी ने जल्दी-जल्दी अपने घर के सामानों की सुध ली। रसोई से नया कुकर, टेपरिकार्डर, दो नई साड़ी, साढ़े चार सौ रूपय नकद, फ्रीज से अइसक्रीम और मिठाई का डिब्बा गायब था। कुछ खास सामान नहीं गया था। दीवान पर गहनों की पोटली, कृष्ण की मूर्ति और आंगन में बच्ची की सायकिल पड़ी ही थी। पर चोरी तो चोरी है। चोरी तो हुई ही थी।
घर के तीनों लोगों से पूछताछ करने पर पुलिस ने पाया कि बच्ची ने चोरों को अच्छी तरह से देखा है। अत: राम जी सोनी से बच्ची के साथ पुलिस थाने आने का आग्रह किया। शेष रात्रि भर पुलिस ने सारे रास्ते जाम कर दिये। दूसरे दिन सुबह संदेहास्पद और निगरानीशुदा अपराधियों को थाने उठा लाई। दोपहर पुलिस की जीप राम जी सोनी के निवास पर पहुँची। राम जी सोनी पत्नी और बच्ची के साथ जीप में सवार होकर पुलिस थाने पहुँचे।
पुलिस ने पति-पत्नी को चाय पिलवायी। बच्ची को टॉफी दी। टॉफी खाती हुई बच्ची से थानेदार ने पूछा - ÓÓबेटी, क्या नाम है तुम्हारा?ÓÓ
ÓÓमीनाक्षी ...कुमारी मीनाक्षी सोनी।ÓÓ
ÓÓक्या तुम कल रात के चोरों को देखकर पहचान लोगी?ÓÓ
ÓÓहाँ पुलिस अंकल, मैंने तो उनसे बात भी की थी। उन्होंने मेरे कहने पर दीदी की शादी के गहने, माँ की कृष्ण की मूर्ति और मेरी सायकिल छोड़ दी थी।ÓÓ
ÓÓचोर तुम्हारी इतनी बात मान गये?ÓÓ
ÓÓसब नहीं, सिर्फ  एक चोर अंकल अच्छे थे। मैंने उनका चेहरा देखा था।ÓÓ
ÓÓक्या तुम उस चोर को पहचान लोगी?ÓÓ
ÓÓजरूर पहचान लूँगी पुलिस अंकल।ÓÓ
ÓÓठीक है। बगल के हाल में चलो। सत्ताइस लोगों को हमने संदेह के आधार पर पकड़ा है। इन्हीं में वे चोर भी होंगे। तुम उन्हें जरूर पहचान लोगी। अगर पहचान गई तो तुम्हें बहुत-सी टॉफी और आइसक्रीम भी मिलेगी बिटिया।ÓÓ
अपने माता-पिता और थानेदार के साथ बच्ची बगल के छोटे से हाल में गई। पुलिस वालों ने सभी संदेहास्पद लोगों को कमरे के दीवार के किनारे-किनारे तीन तरफ खड़ा कर रखा था। बच्ची से कहा गया कि वह प्रत्येक का चेहरा गौर से देखे और पहचान करे।
बच्ची ने सभी को गौर से देखा। फिर उसकी नजर कोने में खड़े उस बुजुर्ग चोर पर जाकर अटक गई। यही तो है वह चोर अंकल।
बच्ची को देखकर उस चोर ने अपनी आँखें झुका ली।
थानेदार की कड़क आवाज गूँजी - ÓÓअपना थूथना ऊपर रख साले। चोरी करते समय नजर नीची नहीं होती?ÓÓ
थानेदार की कड़क आवाज सुन सारे संदेही घबरा गए। बच्ची भी पलभर के लिए सहम गई। बुजुर्ग चोर सीधे सामने की दीवार की ओर देखने लगा। बच्ची से आँखें मिलाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। उसकी आँखों में अँधेरा छाने लगा। पुलिस सुबह ही झोपड़ी से उसे उठा लाई थी। पेट में अनाज का एक दाना भी नहीं गया था। अब शाम भी होने को आई। ......उसे शरीर में कमजोरी और सिर में चक्कर महसूस होने लगा। हाथ पीछे कर उसने दीवार थाम लिया ताकि किसी तरह अपने को खड़ा रख सके, वरना थानेदार उसे मार-मारकर अभी नरक पहुँचा देगा।
बच्ची ने उसके चेहरे से अपनी आँखें हटा ली। सरसरी तौर पर उसने अन्य लोगों को भी देखा और थानेदार से बोली - ÓÓपुलिस अंकल, मैंने देख लिया।ÓÓ
शाबास बेटी। थानेदार ने खुश होकर बच्ची की तरफ  एक और टॉफी बढ़ायी और पूछा - ÓÓतो बतलाओ बेटी, वह कल वाला चोर कौन-सा है, जिससे तुमने बात की थी। जिसका चेहरा तुमने देखा था।ÓÓ
अपने परिवार के अंधकारमय भविष्य की कल्पना से वह बुजुर्ग चोर सिहर गया। उसने आँखें मूँद ली। आँखों के कोरों से आँसू ढलक पड़े।
इधर बच्ची ने टॉफी चूसते और आँखे मटकाते हुए कहा - ÓÓइसमें वह चोर अंकल नहीं है, पुलिस अंकल।ÓÓ
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पता - 311,लक्ष्मी नगर, रिसाली,
भिलाई नगर छ.ग. - 490006
मोबाईल : 09977030637

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