अनामिका
उन्होंने कहा - हैण्ड्स अप
एक - एक अंक फोड़कर मेरा
उन्होंने तलाशी ली।
मेरी तलाशी में क्या मिला उन्हें ?
थोड़े से सपने मिले और चाँद मिला-
सिगरेट की पन्नी - भर
माचिस - भर उम्मीद
एक अधूरी चिठ्ठी जो वे डी कोड नहीं कर पाए
क्योंकि वह सिंधु घाटी की सभ्यता के समय मैंने
लिखी थी -
एक अभेद्य लिपि में
अपनी धरती को-
हलो धरती, कही चलो धरती।
कोल्हू का बैल बने गोल - गोल घूमें हम कब तक?
आओ, अगिन बान - सा छूटें
ग्रहपथ से दूर।
उन्होंने चि_ी मरोड़ी
और मुझे कोच दिया कालकोठरी में।
अपनी कलम से लगाता
खोद रही हूं तबसे
कालकोठरी में सुरंग।
एक तरफ से तो खुद भी गई है वो पूरी।
ध्यान से जरा झुककर देखो -
दीख रही है कि नहीं दिखती
पतली रोशनी
और खुली खिली घाटी।
वो कौन है कुहरे से घिरा ?
क्या हबीब तनवीर -
बुंदेली लोकगीत छीलते - तराशते,
तरकश में डालते।
नीचे कुछ बह भी रहा है।
क्या कोई छुपा हुआ सोता है।
सोते का पानी
हाथ बढ़ाने को उठता है
और ताजा खुदी इस सुरंग के
दौड़ आती है हवा।
कैसी खुशनुमा कनकनी है -
घास की हर नोंक पर।
उन्होंने कहा - हैण्ड्स अप
एक - एक अंक फोड़कर मेरा
उन्होंने तलाशी ली।
मेरी तलाशी में क्या मिला उन्हें ?
थोड़े से सपने मिले और चाँद मिला-
सिगरेट की पन्नी - भर
माचिस - भर उम्मीद
एक अधूरी चिठ्ठी जो वे डी कोड नहीं कर पाए
क्योंकि वह सिंधु घाटी की सभ्यता के समय मैंने
लिखी थी -
एक अभेद्य लिपि में
अपनी धरती को-
हलो धरती, कही चलो धरती।
कोल्हू का बैल बने गोल - गोल घूमें हम कब तक?
आओ, अगिन बान - सा छूटें
ग्रहपथ से दूर।
उन्होंने चि_ी मरोड़ी
और मुझे कोच दिया कालकोठरी में।
अपनी कलम से लगाता
खोद रही हूं तबसे
कालकोठरी में सुरंग।
एक तरफ से तो खुद भी गई है वो पूरी।
ध्यान से जरा झुककर देखो -
दीख रही है कि नहीं दिखती
पतली रोशनी
और खुली खिली घाटी।
वो कौन है कुहरे से घिरा ?
क्या हबीब तनवीर -
बुंदेली लोकगीत छीलते - तराशते,
तरकश में डालते।
नीचे कुछ बह भी रहा है।
क्या कोई छुपा हुआ सोता है।
सोते का पानी
हाथ बढ़ाने को उठता है
और ताजा खुदी इस सुरंग के
दौड़ आती है हवा।
कैसी खुशनुमा कनकनी है -
घास की हर नोंक पर।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें