राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ' बन्धु '
हरीश जब कार्यालय से लौटा। माँ को उदास देखकर पूछा - मम्मी,क्या बात है। आज तुम उदास लग रही हो?
- क्या कहूं, बहू अब मेरी कोई बात नहीं सुनती। वह वही करती है जो उसे ठीक लगता है। हमारे कहने का उस पर कोई असर नहीं होती। मन की पीड़ा को बेटे के समक्ष उगल दिया।
- क्या करुं मम्मी, पढ़ी - लिखी, बड़े घर की बेटी होने के कारण मेरा भी कहना कहाँ सुनती है। उल्टा मुझसे ही सारे काम करवाने की इच्छा रखती है। उसे जब पैसा चाहिए तभी ढंग से बात करती है। अपनी विवशता बता रहा था कि उसकी पत्नी का कर्कश स्वर गूंजा - अब वहीं खड़े होकर भाषण देते रहोगे या अन्दर भी आओगे? सुबह जो काम कहे थे उसका क्या हुआ? हंगामा न हो जाए यह सोचकर हरीश पत्नी की ओर बढ़ गया।
उसके जाते ही माँ सोचने लगी - यह तो स्वयं पत्नी से घबराता है। उसे समझायेगा कैसे ... ? वह दुखी हो उठी, आगे का जीवन ऐसा ही कटेगा? उसकी दृष्टि कमरे में रखी देवता की मूर्ति पर चली गई। भरी आँखों से उसने कमरे की बत्ती बुझा दी।
- क्या कहूं, बहू अब मेरी कोई बात नहीं सुनती। वह वही करती है जो उसे ठीक लगता है। हमारे कहने का उस पर कोई असर नहीं होती। मन की पीड़ा को बेटे के समक्ष उगल दिया।
- क्या करुं मम्मी, पढ़ी - लिखी, बड़े घर की बेटी होने के कारण मेरा भी कहना कहाँ सुनती है। उल्टा मुझसे ही सारे काम करवाने की इच्छा रखती है। उसे जब पैसा चाहिए तभी ढंग से बात करती है। अपनी विवशता बता रहा था कि उसकी पत्नी का कर्कश स्वर गूंजा - अब वहीं खड़े होकर भाषण देते रहोगे या अन्दर भी आओगे? सुबह जो काम कहे थे उसका क्या हुआ? हंगामा न हो जाए यह सोचकर हरीश पत्नी की ओर बढ़ गया।
उसके जाते ही माँ सोचने लगी - यह तो स्वयं पत्नी से घबराता है। उसे समझायेगा कैसे ... ? वह दुखी हो उठी, आगे का जीवन ऐसा ही कटेगा? उसकी दृष्टि कमरे में रखी देवता की मूर्ति पर चली गई। भरी आँखों से उसने कमरे की बत्ती बुझा दी।
पता - 331, निराला नगर, निकट हनुमान मन्दिर,
रायबरेली - 229001
मोबाईल : 09005622219
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