इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शनिवार, 30 अगस्त 2014

दो व्‍यंग्‍य गज़ल़ें - अशोक ' अंजुम '

( 1  )
आये थे थानेदार जिन्हें कल लताड़ के।
वे ले गये मुहल्ले का खम्बा उखाड़ के।।
हैरत है रेस कछुए ही क्यों जीते बारहा,
देखे नहीं है रंग क्या तुमने जुगाड़ के।
कुनबा जुटा है करने खुदाई यहाँ - वहाँ,
अम्माजी चल बसी है कहीं माल गाड़ के।
बीमा करा लो, कह रही हूं कब से आप से,
बीबी ने कहा रात में मुझसे दहाड़ के।
पहरे पे था रखा जिसे हमने यकीन से,
वो ले गया निकाल के पल्ले किवाड़ के।
किन बन्दरों के हाथ में है संविधान उफ।़
डर है यही कि ये इसे रख दें न फाड़ के।
हर एक शा$ख पे है उल्लुओं का बसेरा,
रख दी है मेरे देश की सूरत बिगाड़ के।
( 2 )
सच रह - रह कर बाहर आया, बोतल खुल जाने के बाद।
दीवानों ने जश्र मनाया, बोतल खुल जाने के बाद।।
सारी कसमें, धरम - करम सब, इधर गये, उधर गये,
पण्डित जी ने मुर्गा खाया, बोतल खुल जाने के बाद।
बाबू टाल रहा था कब से, आज पकड़ में आया तब,
उसने फाइल को सरकाया, बोतल खुल जाने के बाद।
गूँगा बोला पंचम सुर में, लंगड़ा नाचा ठुमक - ठुमक,
और अँधे  ने तीर चलाया, बोतल खुल जाने के बाद।
परिभाषाएँ बदल गयी सब, उल्टा - पुल्टा सब आलम,
घूरे ने गुलशन महकाया, बोतल खुल जाने के बाद।
पल - पल नाक रगड़ने वाला वो चपरासी दफ्तर का,
आज साब जी पर गुर्राया, बोतल खुल जाने के बाद।
वो काकू जिनसे डरते थे सभी लफंगे बस्ती के,
उनने वल्गर लोक सुनाया, बोतल खुल जाने के बाद।
पता - स्ट्रीट 2, चन्द्रविहार कॉलोनी,
नगला डालचन्द, क्वार्सी बाइपास,
अलीगढ़ - 202127 उ.प्र.
मोबाईल : 09258779744,09358218907 

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