इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

बिछुड़े प्रियतम की प्रीति पुरानी है

विद्याभूषण मिश्र 

नई फसल की पूजा होती आई है, मत भूलो पर धरती वही पुरानी है।
साँसों की चुनरी दुलहन ने बदली है, उस बिछुड़े प्रियतम की प्रीति पुरानी है।
टूट चुके दीपक , कितनी बातियाँ बुझीं
किन्तु पुरातन पीड़ा की आरती वही
रथ ने हैं श्रृंगार बदल डाले कितने
किन्तु पुरातन अब तक है सारथी वही
पथिक बदलते रहे और पथ भी बदले, किन्तु कहानी की गति वही पुरानी है।
साँसों की चुनरी दुलहन ने बदली है, उस बिछुड़े प्रियतम की प्रीति पुरानी है।
उस प्रियतम की प्रीति पुरानी है।
है व्याघ्र ने बार - बार पिंजड़े बदले
किन्तु वही स्वर भरता वीर पुरातन है
बिंधे अश्रु - मोती पीड़ा की माला में
पर सुधियों की डोरी वही पुरातन है।
छंद बदल डाले नव - नव नित कविता ने, किन्तु अर्चना प्यासी वही पुरानी है।
साँसों की चुनरी दुलहन ने बदली है, उस बिछुड़े प्रियतम की प्रीति पुरानी है।
उस प्रियतम की प्रीति पुरानी है।
फूलों की डोली बहार ने बदली
रंग बिरंगे आँचल बगिया ने बदले
बार - बार आशा के किसलय लहराये
द्वार हजारों भ्रमरों ने भी हैं बदले
श्रृंगार बदल डाले ऋतुओं ने आ आ के, किन्तु सदा फूलों की गंध पुरानी है।
साँसों की चुनरी दुलहन ने बदली है, उस बिछुड़े प्रियतम की प्रीति पुरानी है।
उस प्रियतम की प्रीति पुरानी है।
पतवारें बदलीं नौकाएं भी बदलीं
अरु धारा की उमर बदलती जाती है।
बार - बार चंचल मन ने निर्णय बदले
और चाल की दिशा बदलती जाती है।
है आशा की घटा सदा बढ़ती घटती, पर पीड़ा की बिजली वही पुरानी है।
साँसों की चुनरी दुलहन ने बदली है, उस बिछुड़े प्रियतम की प्रीति पुरानी है।
पता - 
पुरानी बस्ती, ब्राम्‍हा्रणपारा
मु.पो. - जाँजगीर - 495668 [छ.ग.]

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