अपनी प्रतिभाओं को कब पहचानेगी छत्तीसगढ़ सरकार
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद ऐसा प्रतीत होने लगा था कि वर्षों से दबी कुचली छत्तीसगढ़ की प्रतिभाएँ मुखरित होंगी और मान-सम्मान पाने में उनक लिए कहीं कोई रूकावट पैदा नहीं होंगी। मैं छत्तीसगढ़ी लोकसंस्कृति, कला और साहित्य के क्षेत्र में नि:स्वार्थ भाव से सृजनरत विभूतियों की ओर छत्तीसगढ शासन का ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा। इन क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ की प्रतिभाएँ पहले भी मुखरित होती रही हैं परन्तु पृथक राज्य बनने के बाद तो इन्होंने अपनी प्रमिभा का पुन: पूरे दमखम के साथ लोहा मनवाया है। छत्तीसगढ़ में ऐसी-ऐसी प्रतिभाएँ हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पूर्व से ही छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति, कला और साहित्य के उत्थान में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भी लोक संस्कृति,कला और साहित्य के इन प्रतिभाओं का सम्मान न हो पाना हमारा दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है? विद्वानों ने कहा है - जो राज्य अपनी प्रतिभाओं का सम्मान करना नहीं जानती, उसका पतन अवश्यंभावी है।
’ विचार वीथी ’ के पिछले कई अंकों में मैंने इस मसले को उठाया है, पर चाटुकारों से घिरी सरकार के कानों में जूँ तक नहीं रेंगी। इस विषय पर पुन: कलम चलाने के पीछे मेरा उद्देश्य सही प्रतिभाओं को सामने लाने का है ताकि स्मृतिहीनता तथा दृष्टिहीनता की शिकार शासन का ध्यान इन प्रतिभाओं की ओर जा सके।
छत्तीसगढ़ का ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति , लोक साहित्य तथा इनसे जुड़ी प्रतिभाओं को भव्य मंच प्रदान कर इसकी चमक और आभा को राज्य ही नहीं देश के कोने कोने में बगराने वाली संस्था ’चंदैनी गोंदा’ के बारे में न जानता हो ? छत्तीसगढ़ का बच्चा-बच्चा इसके बारे में जानता है, नहीं जानती है तो केवल यहाँ की सरकार, और सरकार चलाने वाले लोग। इस संस्था के अमर शिल्पी दाऊ रामचंद्र देशमुख को शासन की ओर से क्या वह सम्मान मिल पाया जिसका कि वे हकदार हैं। छत्तीसगढ़ी नाचा के मदन निषाद, फिदाबाई जैसे अनेक अमर कलाकार जिनकी प्रतिभाओं के आगे बॉलीवुड के भी बड़े-बड़े अभिनेता और निर्देशक नतमस्तक होते थे, क्या उन्हें अब तक वह सम्मान मिल पाया है जिनका कि वे हकदार हैं? नाचा में जब खड़े साज का युग था तब से कमर में हारमोनियम बांधकर छत्तीसगढ़ी लोकगीतों को मधुर स्वर देने वाले खुमान साव आज भी संगीत साधना में लीन हैं, उन्हें आज कौन नहीं जानता। अब तक छत्तीसगढ़ शासन उन्हें सम्मानित क्यों नहीं कर सकी है ? पच्यासी वर्ष की अवस्था में भी संगीत-साधना में रत तथा दाऊ रामचंद्र देशमुख की अमर कृति ’चंदैनी गोदा’ को जीवित रखने वाला संगीत का यह महान साधक अपने आत्मस्वाभिमान को ताक में रखकर शासन से सम्मान की याचना करे, छत्तीसगढ़ शासन क्या यही चाहती है? छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति कला और साहित्य को शिखर तक पहुँचने वाले खुमानलाल साव की प्रतिभा आखिर और कब तक तिरस्कृति, उपेक्षित और अनादरित होती रहेगी?
छत्तीसगढ़ में तिरस्कृत, उपेक्षित और अनादरित होने वाली प्रतिभाओं में छत्तीसगढ़ी भाषा के साहित्यकार भी शामिल हैं। जब पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का मानचित्र भी परिकल्पना में नहीं आया था, जब यहाँ के तथाकथित शिष्ट लोग छत्तीसगढ़ी को भाषा तो क्या बोली मानने और बोलने में भी अपमानित महसूस करते थे, उस समय छत्तीसगढ़ी संस्कृति और सभ्यता को छत्तीसगढ़ी भाषा में ही सहेज कर रखने के प्रयास में और छत्तीसगढ़ी भाषा की अस्मिता के लिये संघर्ष के आह्वान में, छत्तीसगढ़ी भाषा में ’गरीबा’ महाकाव्य की रचना करने वाले राजनांदगाँव जिला के ग्राम भंडारपुर करेला के निवासी पं. नूतन प्रसाद शर्मा आज भी साहित्य साधना में रत हैं, पर ऐसी प्रतिभा को पूछने वाला आज यहाँ कौन है?
टेलिविजन आज सामाजिक जीवन का आवश्यक और अभिन्न अंग बन चुका है। भारत के हर क्षेत्रीय भाषा का अपना कम से कम एक चैनल तो अवश्य है, परंतु बड़े खेद का विषय है कि छत्तीसगढ़ी भाषा का अपना कोई भी चैनल टेलिविजन पर मौजूद नहीं है। ऐसे में छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के वैश्विक प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित इंटरनेट की पत्रिका ’गुरतुरगोठ’ के संपादक संजीव तिवारी का हमें आभारी होना चहिये। विगत पाँच वर्षों से वे अपने अभियान में समर्पित भाव से जुटे हुए हैं। इस कार्य हेतु 14 - 15 सितंबर 2013 को वे नेपाल की राजधानी काठमांडु में वहाँ के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मानित होने जा रहे हैं, हमें संजीव तिवारी पर गर्व है, उन्हें कोटिश: बधाइयाँ। हमें उस दिन और अधिक गर्व महसूस होगा जिस दिन छत्तीसगढ़ की सरकार उन्हें सम्मानित करेगी। पता नहीं हमारी प्रतिभाओं के लिए ऐसा दिन आयेगा भी या नहीं ।
राज्योत्सव के अवसर पर बालीवुड के सितारों को चंद घंटे की प्रस्तुतिकरण के लिए राजकोष से करोड़ों रूपये बाँटने वाली छत्तीसगढ़ की सरकार पता नहीं कब अपनी प्रतिभाओं को पहचान पायेगी, सम्मानित कर पायेगी। सम्पादक
अगस्त 2013
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें