संयम - जाल
पंछी बन उड़ना मैं चाहूँ
संयम - जाल कसे रे !
इच्छाओं का सागर फैला
जीवन के घट - घट में,
प्यासा कैसे फर्क करेगा
पानी औश् पनघट में,
जल बिन मछली ज्यों तरसूँ मैं
सावन अंग डसे रे!
रूप निहारूँ दरपन में या
छबि देखूँ साजन की,
साथी मौन खड़ा है मेरा
बात करूँ क्या मन की,
नागफनी - सी चुभती रातें
बोझिल हुए सवेरे
शब्दों में कह डाली मैंने
व्यथा कथा क्षण - क्षण की,
हाथों की रेखाएँ बाँचूँ
या पोथी जीवन की,
छन्द - छन्द से गीत गूँजते
मन आँगन में मेरे,
झूमती बदली
सावन की रिमझिम में झूमती उमंग
बदली भी झूम रही बूंदों के संग
खिड़की पर झूल रही जूही की बेल
प्रियतम की आँखों में प्रीति रही खेल
साजन का सजनी पर फैल गया रंग
पुरवाई आँगन में झूम रही मस्त
आतंकी भँवरों से कलियाँ है त्रस्त
लहरा के आँचल भी करता है तंग
सागर की लहरों पर चढ़ आया ज्वार
रजनी भी लूट रही लहरों का प्यार
शशि के सम्मोहन का ये कैसा ढंग
पंछी बन उड़ना मैं चाहूँ
संयम - जाल कसे रे !
इच्छाओं का सागर फैला
जीवन के घट - घट में,
प्यासा कैसे फर्क करेगा
पानी औश् पनघट में,
जल बिन मछली ज्यों तरसूँ मैं
सावन अंग डसे रे!
रूप निहारूँ दरपन में या
छबि देखूँ साजन की,
साथी मौन खड़ा है मेरा
बात करूँ क्या मन की,
नागफनी - सी चुभती रातें
बोझिल हुए सवेरे
शब्दों में कह डाली मैंने
व्यथा कथा क्षण - क्षण की,
हाथों की रेखाएँ बाँचूँ
या पोथी जीवन की,
छन्द - छन्द से गीत गूँजते
मन आँगन में मेरे,
झूमती बदली
सावन की रिमझिम में झूमती उमंग
बदली भी झूम रही बूंदों के संग
खिड़की पर झूल रही जूही की बेल
प्रियतम की आँखों में प्रीति रही खेल
साजन का सजनी पर फैल गया रंग
पुरवाई आँगन में झूम रही मस्त
आतंकी भँवरों से कलियाँ है त्रस्त
लहरा के आँचल भी करता है तंग
सागर की लहरों पर चढ़ आया ज्वार
रजनी भी लूट रही लहरों का प्यार
शशि के सम्मोहन का ये कैसा ढंग
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