- श्यामलाल चतुर्वेदी
जब आइस बादर करिया ।
तपिस बहुत दू महिना तऊन सुरूज मुंह तोपिस फरिया ।
जउन समे के ढ़ंग देख के,
पवन जुड़ाथे तिपथे ।
जाड़ के दिन म सूरार् हो,
आँसू निकार मुँह लिपथे ।।
गरम के महिना झाँझ होए,
आगी उगलय मनमाना ।
तउने फुरहुर सुघर चलिस,
जैसे सोझुआ अनजाना ।।
राम भेंट के संवरिन बुढ़िया कस मुस्िकियाइस तरिया,
जब आइस बादर करिया ।
जमो देंव्ह के नुनछुर -
पानी बाला सोंत सुखागे ।
थारी देख नानकुन लइका -
कस पिंरथिवी भुखागे ।
मेघराज के पुरूत पुरूत के,
उलझत देखिन बुढ़वा ।
' हा ! ददा बाँच गे जीव कहिन,'
सब डउकी, लइकन, बुढ़वा ।
' नइ देखेन हम कभू ऐंसो कस, कुहुक न पुरखा परिया '
जब आइस बादर करिया ।
रात कहै अब कोन ? दिनों म,
घपटे हे अंधियारी ।
करिया हंड़िया केंरवँछहा कस,
करिस तोप के कारी ।
सुरूज दरस के कोनो कहितिन,
बात कहां अब पाहा ?
' हाय हाय' के हवा गइस,
चौरा ही ही हा हा।।
खेत खार म जगा जगा, सरसेत सुनांय ददरिया,
जब आइस बादर करिया ।।
का किसान के सुख कइहा,
बेटवा बिहाव होए जइसे ।
दौड़ - धूप सरजाम सकेलंय ,
काल लगिन होइ अइसे ।
नांगर ,बिजहा, बैला, जोंता,
नहना सुघर तुतारी ।
कांवर टुकना जोर करैं,
धरती बिहाव के तियारी ।
बस कस बिजहा छांट पछिनय ,
डोला जेकर कांवर ।
गीत ददरिया भोजली के,
गांवय मिल जोंड़ी जांवर ।।
झेंगुरा धरिस सितार बजाइस,
मिरदंग बेंगवा बढ़िया ।
बजै निसान गरज बिजली -
छुरछुरी च लाय असढ़िया ।
राग - पाग सब माढ़ गइस हे, माढ़िस जम्मों घरिया,
जब आइस बादर करिया ।।
हरियर लुगरा धरती रानी,
पहिर झमक ले आइस ।
कोतरी बिछिया मुंदरी कस,
फेर झुनुक झेंगुरा गाइस ।
कुंड के चँउक पुराइस ऐती,
नेंग म लगे किसानिन ।
कुछ पूछिहा बुता के मारे,
कहिथें - हम का जानिन ।।
खाली हाथ अकाम खड़े,
अब कहां एको झन पाहा ।
फरिका तारा लगे देखिहा,
जेकर घर तूं जाहा ।
हो गै हे बनिहार दुलम, सब खोजय खूब सफरिहा,
जब आइस बादर करिया ।।
पहरी उपर जाके अइसे,
बादर घिसलय खेलय ।
जइसे कल्लू परबतिया संग,
कर ढ़ेमचाल ढ़पेलय ।
मुच मुच ही दांत सही,
बिजली चमकय अनचेतहा ।
जगम ले आंखी बरय मुंदावय ,
करय झड़ी सरसेतहा ।।
तब गरीब के कलकुत मातय ,
छान्ही तर तर रोवय ।
का आंसू झन खंगै समझ,
अघुवा के अबड़ रितोवय ।
अतको म मुस्िकयावय ओहर,
लोरस नवा समे के ।
अपन दुख के सुरता कहां ?
भला हो जाए जमे के ।
सुख संगीत सुनावै तरि नरि ना, मोरि ना अरि आ
जब आइस बादर करिया ।।
तपिस बहुत दू महिना तऊन सुरूज मुंह तोपिस फरिया ।
जउन समे के ढ़ंग देख के,
पवन जुड़ाथे तिपथे ।
जाड़ के दिन म सूरार् हो,
आँसू निकार मुँह लिपथे ।।
गरम के महिना झाँझ होए,
आगी उगलय मनमाना ।
तउने फुरहुर सुघर चलिस,
जैसे सोझुआ अनजाना ।।
राम भेंट के संवरिन बुढ़िया कस मुस्िकियाइस तरिया,
जब आइस बादर करिया ।
जमो देंव्ह के नुनछुर -
पानी बाला सोंत सुखागे ।
थारी देख नानकुन लइका -
कस पिंरथिवी भुखागे ।
मेघराज के पुरूत पुरूत के,
उलझत देखिन बुढ़वा ।
' हा ! ददा बाँच गे जीव कहिन,'
सब डउकी, लइकन, बुढ़वा ।
' नइ देखेन हम कभू ऐंसो कस, कुहुक न पुरखा परिया '
जब आइस बादर करिया ।
रात कहै अब कोन ? दिनों म,
घपटे हे अंधियारी ।
करिया हंड़िया केंरवँछहा कस,
करिस तोप के कारी ।
सुरूज दरस के कोनो कहितिन,
बात कहां अब पाहा ?
' हाय हाय' के हवा गइस,
चौरा ही ही हा हा।।
खेत खार म जगा जगा, सरसेत सुनांय ददरिया,
जब आइस बादर करिया ।।
का किसान के सुख कइहा,
बेटवा बिहाव होए जइसे ।
दौड़ - धूप सरजाम सकेलंय ,
काल लगिन होइ अइसे ।
नांगर ,बिजहा, बैला, जोंता,
नहना सुघर तुतारी ।
कांवर टुकना जोर करैं,
धरती बिहाव के तियारी ।
बस कस बिजहा छांट पछिनय ,
डोला जेकर कांवर ।
गीत ददरिया भोजली के,
गांवय मिल जोंड़ी जांवर ।।
झेंगुरा धरिस सितार बजाइस,
मिरदंग बेंगवा बढ़िया ।
बजै निसान गरज बिजली -
छुरछुरी च लाय असढ़िया ।
राग - पाग सब माढ़ गइस हे, माढ़िस जम्मों घरिया,
जब आइस बादर करिया ।।
हरियर लुगरा धरती रानी,
पहिर झमक ले आइस ।
कोतरी बिछिया मुंदरी कस,
फेर झुनुक झेंगुरा गाइस ।
कुंड के चँउक पुराइस ऐती,
नेंग म लगे किसानिन ।
कुछ पूछिहा बुता के मारे,
कहिथें - हम का जानिन ।।
खाली हाथ अकाम खड़े,
अब कहां एको झन पाहा ।
फरिका तारा लगे देखिहा,
जेकर घर तूं जाहा ।
हो गै हे बनिहार दुलम, सब खोजय खूब सफरिहा,
जब आइस बादर करिया ।।
पहरी उपर जाके अइसे,
बादर घिसलय खेलय ।
जइसे कल्लू परबतिया संग,
कर ढ़ेमचाल ढ़पेलय ।
मुच मुच ही दांत सही,
बिजली चमकय अनचेतहा ।
जगम ले आंखी बरय मुंदावय ,
करय झड़ी सरसेतहा ।।
तब गरीब के कलकुत मातय ,
छान्ही तर तर रोवय ।
का आंसू झन खंगै समझ,
अघुवा के अबड़ रितोवय ।
अतको म मुस्िकयावय ओहर,
लोरस नवा समे के ।
अपन दुख के सुरता कहां ?
भला हो जाए जमे के ।
सुख संगीत सुनावै तरि नरि ना, मोरि ना अरि आ
जब आइस बादर करिया ।।
बिलासपुर (छग)
इसका व्याख्या चाहिए मुझे
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