कविता
संदीप भारती '' होरी ''
जब तुम्हारी जिन्दगी
कोई नाग का वंशज डसे
गीत भर लेना अदिबो उम्र की मधु प्याली में
हर तरह का विष उतर सा जायेगा
ऑसू के संग - संग लहू की लाली में
एक नया आसव स्वत: घुल जायेगा।
जब तुम्हारी जिन्दगी
भय का नया विस्तार हो
मौत को मजहब बना इंकलाब कर देना
खून की बूंदों पर ताज - ओ - तख्त क्या टिक पायेगा
बौरेगा जन का ह्रदय फिर प्यार की अमराई में
झूमेगा मन सरसों किसी चाह की फगुनाई में।
संदीप भारती '' होरी ''
कोई नाग का वंशज डसे
गीत भर लेना अदिबो उम्र की मधु प्याली में
हर तरह का विष उतर सा जायेगा
ऑसू के संग - संग लहू की लाली में
एक नया आसव स्वत: घुल जायेगा।
जब तुम्हारी जिन्दगी टीसता हुआ कोई घॉव हो
प्यार एक उजड़ा हुआ वीरान कोई गॉव हो
प्यासे होठों पर पड़ा हो आह का सागर
तप रहे सिर से जुदा हो नम्र वक्षस्थल
ढूंढना मेरा पता अक्षर के इस संसार में
दर्द का हर द्वार खुलता जायेगा।
प्यार एक उजड़ा हुआ वीरान कोई गॉव हो
प्यासे होठों पर पड़ा हो आह का सागर
तप रहे सिर से जुदा हो नम्र वक्षस्थल
ढूंढना मेरा पता अक्षर के इस संसार में
दर्द का हर द्वार खुलता जायेगा।
जब तुम्हारी जिन्दगी
भय का नया विस्तार हो
मौत को मजहब बना इंकलाब कर देना
खून की बूंदों पर ताज - ओ - तख्त क्या टिक पायेगा
बौरेगा जन का ह्रदय फिर प्यार की अमराई में
झूमेगा मन सरसों किसी चाह की फगुनाई में।
- पता - विष्णु मंदिर के पीछे,कहरा पारा, जांजगीर,जिला - जांजगीर - चांपा (छग)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें