कविता
दुख ऊपर दोहरा
भूखे उठावे
फिकर भर ये
काबर के ओहर गरीब हर ये।
तन हाड़ा - हाड़ा
करजा गाड़ा - गाड़ा
जोत्था के जोत्था
लटलट ले फरे
काबर के ओहर गरीब हर ये।
लहू सुखागे
पोटा अइठागे
दरिद्री के आगी
बंग - बंग ले बरे
काबर के ओहर गरीब हर ये।
कोनो नहीं पूछंता
नहीं कोनो तरंता
हवे कहाँ ककरो
करा समे
काबर के ओहर गरीब हर ये।
जिनगी के गाड़ा
बछुवा के माड़ा
सरी बिपति
ऐखरे बर ये
काबर के ओहर गरीब हर ये।
- पवन यादव '' पहुना ''
दुख ऊपर दोहरा
भूखे उठावे
फिकर भर ये
काबर के ओहर गरीब हर ये।
तन हाड़ा - हाड़ा
करजा गाड़ा - गाड़ा
जोत्था के जोत्था
लटलट ले फरे
काबर के ओहर गरीब हर ये।
लहू सुखागे
पोटा अइठागे
दरिद्री के आगी
बंग - बंग ले बरे
काबर के ओहर गरीब हर ये।
कोनो नहीं पूछंता
नहीं कोनो तरंता
हवे कहाँ ककरो
करा समे
काबर के ओहर गरीब हर ये।
जिनगी के गाड़ा
बछुवा के माड़ा
सरी बिपति
ऐखरे बर ये
काबर के ओहर गरीब हर ये।
ग्राम - सुन्दरा, जिला - राजनांदगांव ( छ.ग.)
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