इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

छत्तीसगढ़ी राजभाषा और एकरूपता ?



आखिरकार छत्तीसगढ़ी को संविधान के अनुच्छेद 345 के तहत अध्यादेश लाकर राजभाषा का दर्जा देने की प्रक्रिया शुरू हो ही गई। छत्तीसगढ़ी को राजभाषा बनाने से जो  खुशी छत्तीसगढी के जानकारों को हुई उतनी ही पीड़ा उन्हें हुई जो यह कभी नहीं चाहते थे कि छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिले। अब आवश्यकता है छत्तीसगढ़ी को समृद्धिशाली बनाने का। इसके लिए छत्तीसगढ़ी रचनाकारों को छत्तीसगढ़ी में साहित्य लिखने के अतिरिक्त उद्योग, व्यवसाय, विज्ञान पर भी छत्तीसगढ़ी में सृजन आवश्यक है। यह भी आवश्यक है कि समाचार पत्रों, फिल्मों में भी छत्तीसगढ़ी शब्दों का अधिकाधिक मात्रा में प्रयोग किया जाये। बेहतर तो यही होगा कि आकाशवाणी केन्द्रों द्वारा छत्तीसगढ़ी पर ही विविध कार्यक्रम रखा जाये जिससे आम जन तक छत्तीसगढ़ी सही मायने में पहुंच सके। इसके लिए दूरदर्शन केन्द्र को भी ध्यान देने होगें इसके अतिरिक्त प्राथमिक शिक्षा से ही छत्तीसगढ़ी को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये।
छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण को लेकर भी अनेक बातें सामने आने लगी है। पूर्व में छत्तीसगढ़ी का प्रयोग बोली के रूप में किया जाता था इसी का परिणाम था कि जो जिस क्षेत्र का रचनाकार था वह अपने क्षेत्र के आमबोल चाल का उपयोग साहित्य मे करता था  जिससे छत्तीसगढ़ी में एकरूपता नहीं आ सकी मगर अब जबकि छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा देने की प्रक्रिया शुरू हो ही गई है तो छत्तीसगढ़ी में एकरूपता लाना आवश्यक है क्योंकि अलग अलग जिलों में अलग - अलग छत्तीसगढ़ी वाक्यों, शब्दों का प्रयोग किया जाता है। अब मानकीकरण करके एकरूपता लाने से ही छत्तीसगढ़ी का विकास संभव है। तथा इसी से ही छत्तीसगढ़ी को 8 वीं अनुसूची में शामिल कर पूर्ण रूप से राजभाषा का दर्जा दे पाना संभव है।इस हेतु विभिन्न जिले के छत्तीसगढ़ी  जानकारों, साहित्यकारों, विद्वानों, को एक मंच पर लाना होगा और उनके द्वारा ही निर्धारण करना होगा।
राजकाज की भाषा बनने के लिए एकरूपता आवश्यक है। छत्तीसगढ़ी के अनेक रूप है। छत्तीसगढ़ के अन्य - अन्य क्षेत्रों में अलग - अलग प्रकार के छत्तीसगढ़ी का प्रयोग किया जाता है। मगर अब छत्तीसगढ़ी को प्रशासनिक, तकनीकी, वाणिज्य, बैंकिंग, कृषि, कानून कोर्ट, कचहरी, आदि आदि क्षेत्रों में प्रयोग में लाना है। इसके लिए जल्द से जल्द मानककोष बनाने की जरूरत है ताकि पूरे छत्तीसगढ़ में एक ही प्रकार के छत्तीसगढ़ी को इन स्थानों में प्रयोग में लाया सके।
बहरहाल,संविधान के अनुच्छेद 345 के तहत छत्तीसगढ़ी को अध्यादेश लाकर राजभाषा का दर्जा देने की प्रक्रिया सरकार द्वारा की गई वह छत्तीसगढ़ के लिए गौरव की बात है तथा सरकार बधाई के पात्र है ......।
फरवरी 2008
सम्‍पादक

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