इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

सोमवार, 25 मार्च 2013

अफसोस

                                                                - मनोज आजि़ज  -
पढाई -लिखाई ख़त्म होते ही राघव गाँव- घर छोड़ कर, किसी काम की तलाश में शहर में ही रहने लगा।
रांची- धनबाद घूम कर जब राघव कोई अच्छी  नौकरी नहीं पा सका तो गुजरात जा कर ठीकेदारी का काम ही करने को उतारू हो गया । वह चला भी गया और दो-तीन सालों में अच्छी -खासी पूंजी जमा कर लिया।
अब गाँव आने पर उसके इत्र- पावडर के इस्तेमाल  से पूरा गाँव जान जाता था की राघव घर से निकला है।
माँ- बाप बेटे की शादी के लिए कई जगह लड़की भी देखने लगे । इस मुद्दे पर बेटे की हाँ् भी नहीं और न भी नहीं। गुजरात में रहने के वक्त फोन से माँ - बाप से बातचीत कर लिया करता था। उन्हें अगर कोई जरुरत पड़े तो फौरन पैसे भेज दिए जाते। गाँव के हर किसी की नजर में राघव एक होनहार लड़का था ।
एक जगह लड़की पसंद आने पर राघव को फोन से खबर की गयी। एक हफ्ते में राघव की चिठ्ठी आयी। राघव जो कल तक हर बात पर फोन करता था अब अचानक चिठ्ठी भेजने पर माँ - बाप सकते में। पिता ने काफी मसक्कत कर चिठ्ठी पढ़ी ।
माँ एक तरफ बेटे की चिठ्ठी की बात सुनने के लिए घर के बाहर झाड़ी में खाने के लिए लिया गया अन्न को फेंकते हुए थोड़ी सी पानी से ही हाथ धोकर घर के अन्दर आ बैठी। तब तक चिठ्ठी पढ़ी जा चुकी थी और राघव के पिता उस कागज के टुकड़े को बेरहमी से मोड़ कर कटे हुए पुआल के ढेर की ओर फेंक दिया। फिर कहने लगे..  हमारा बाबू, बेटा बाप हुआ है। और श्वसुर का नौकरी करता है। समझी न! घर-जमाई!
तुम भी जानती होगी .. आशा में मरता किसान और ध्यान में मरता जोगी। अच्छा ही हुआ कि  जमीन अभी तक बेचा नहीं ।
ऐसा कह कर राघव के पिता खटिया लेकर आंगन में जाकर लेट गए और रिसते हुए आँखों को अपने दाहिने हाथ से ढके रहे । माँ भी सर झुका, पल्लू को भिंगोती रही।
                                                                                पता. आदित्यपुर .2,जमशेदपुर .14

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें